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पहले मुनीर, अब एर्दोगन, भारत के दुश्मनों की मेहमाननवाजी क्यों कर रहे ट्रंप?

जनता जनार्दन , Jun 25, 2025, 17:18 pm IST
Keywords: पाकिस्तान    भारत   राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन   Pakistan   INDIA  
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पहले मुनीर, अब एर्दोगन, भारत के दुश्मनों की मेहमाननवाजी क्यों कर रहे ट्रंप?

नई दिल्ली: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लंबे समय तक भारत के रणनीतिक साझेदार के रूप में देखा जाता रहा है. लेकिन हालिया घटनाक्रमों ने भारत में कुछ कूटनीतिक हलकों में चिंता बढ़ा दी है. पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर और अब तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन के साथ ट्रंप की बैठकों ने कई सवाल खड़े किए हैं — क्या ट्रंप अपने वैश्विक एजेंडे में भारत की प्राथमिकता को पुनः परिभाषित कर रहे हैं?

ट्रंप की विदेश नीति: प्रो-बिज़नेस, एंटी-एलायंस

ट्रंप के राजनीतिक दृष्टिकोण को हमेशा ही "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत देखा गया है, जिसमें परंपरागत गठबंधनों की जगह सौदेबाजी पर आधारित द्विपक्षीय संबंधों को तरजीह दी जाती है. भारत के साथ ट्रंप प्रशासन के रिश्ते मजबूत रहे, लेकिन कुछ मुद्दों पर टकराव भी सामने आया — जैसे व्यापार में ऊंचे टैरिफ, वीजा नीति, और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अप्रत्यक्ष टिप्पणियां.

अब जब ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन से मुलाकात की है, तो विश्लेषक इसे वैश्विक सामरिक समीकरणों की पुनर्संरचना के रूप में देख रहे हैं, खासकर ट्रंप की 2024 की चुनावी रणनीति के संदर्भ में.

तुर्की और ट्रंप: रणनीतिक समीकरण

हाल ही में NATO समिट के दौरान ट्रंप ने एर्दोआन से अलग से मुलाकात की, जिसमें उन्होंने मध्य-पूर्व, यूक्रेन-रूस युद्ध और गाजा संकट पर चर्चा की. एर्दोआन ने ट्रंप की मध्यस्थता क्षमताओं की सराहना करते हुए कहा कि यदि ट्रंप चाहें तो वे रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

इस बातचीत के दौरान एर्दोआन ने यह भी प्रस्ताव दिया कि तुर्की और अमेरिका मिलकर गाजा में मानवीय संकट को दूर करने के लिए काम कर सकते हैं. दोनों देशों के बीच एक संभावित रक्षा सौदा और व्यापारिक सहयोग की संभावना पर भी चर्चा हुई.

तुर्की की दिलचस्पी: रूस-नाटो के बीच संतुलन

तुर्की की भौगोलिक स्थिति उसे रूस और नाटो के बीच एक सेतु की तरह बनाती है. एक ओर वह NATO का सदस्य है, दूसरी ओर उसके रूस के साथ ऊर्जा, रक्षा और कूटनीतिक संबंध भी गहरे हैं. काला सागर क्षेत्र में तुर्की की सुरक्षा प्राथमिकताएं रूस से सीधे जुड़ी हुई हैं.

ऐसे में, एर्दोआन खुद को एक न्यायसंगत मध्यस्थ के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं — एक ऐसा नेता जो वैश्विक संघर्षों में पुल का काम कर सकता है, न कि पक्षधरता का. यही एर्दोआन की कूटनीति है, और ट्रंप इसके साथ सामंजस्य बिठाते दिखाई दे रहे हैं.

मुनीर के साथ मुलाकात: रणनीति या संकेत?

डोनाल्ड ट्रंप की आसिम मुनीर के साथ बैठक ने भी व्यापक चर्चा को जन्म दिया. ऐसे समय में जब भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपना रखा है, और पाकिस्तान FATF जैसी संस्थाओं की निगरानी में है, ट्रंप का यह कदम कूटनीतिक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है.

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह सिर्फ क्षेत्रीय स्थिरता की रणनीति के तहत एक संवाद की पहल हो सकती है, वहीं कुछ इसे ट्रंप की "ट्रांजैक्शनल डिप्लोमेसी" यानी सौदेबाजी आधारित विदेश नीति का हिस्सा मानते हैं, जिसमें भावनाओं के बजाय हितों को वरीयता दी जाती है.

भारत के लिए विकल्प और संतुलन

भारत को इन घटनाक्रमों को सिर्फ़ व्यक्तिगत नाराजगी के रूप में नहीं, बल्कि बड़े कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है. ट्रंप की विदेश नीति हमेशा से ही अनपेक्षित चालों से भरी रही है, जिसमें गठबंधनों की बजाय व्यक्तिगत समीकरणों पर भरोसा किया जाता है.

हालांकि, भारत के पास भी व्यापक राजनयिक पूंजी है — चाहे वह बाइडेन प्रशासन के साथ संबंध हों, या रूस, फ्रांस, जापान और खाड़ी देशों के साथ गहरे सहयोग. इसलिए भारत को ट्रंप की संभावित वापसी को लेकर अलर्ट रहना चाहिए, लेकिन साथ ही रणनीतिक संतुलन और लचीली कूटनीति बनाए रखनी होगी.

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