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बीच में अटकी भारत-अमेरिका ट्रेड डील, सस्ते दामों पर मक्का-सोयाबीन बेचना चाहता है US

बीच में अटकी भारत-अमेरिका ट्रेड डील, सस्ते दामों पर मक्का-सोयाबीन बेचना चाहता है US

नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौता एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ा है जहां असहमति की दीवारें समझौते की संभावनाओं को धुंधला कर रही हैं. मुख्य विवाद अमेरिका की उस मांग को लेकर है जिसमें वह भारत से मक्का और सोयाबीन जैसे जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क घटाने की बात कर रहा है.

भारत सरकार के लिए यह केवल एक व्यापारिक मुद्दा नहीं है, यह करोड़ों भारतीय किसानों के भविष्य और देश की खाद्य सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है. यदि अमेरिका से सस्ते GM उत्पादों को भारत के बाजार में अनुमति मिलती है, तो स्थानीय किसान प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं. खासकर ऐसे समय में जब भारत पहले से ही ग्रामीण आय और कृषि सुधार के मुद्दों से जूझ रहा है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा

सरकारी सूत्रों के अनुसार, यदि अमेरिकी मक्का और सोयाबीन भारत में बिना भारी शुल्क के आ जाते हैं, तो घरेलू उत्पादों की मांग में भारी गिरावट संभव है. इससे किसानों को आर्थिक नुकसान होगा, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ेगा.

अमेरिका की क्या हैं प्रमुख मांगें?

अमेरिका इस डील के माध्यम से भारत में अपने कई प्रमुख उत्पादों के लिए बाजार चाहता है. इनमें शामिल हैं:

  • जेनेटिकली मॉडिफाइड मक्का और सोयाबीन
  • डेयरी उत्पाद
  • चिकित्सा उपकरण
  • ऑटोमोबाइल और व्हिस्की जैसे उपभोक्ता उत्पाद

इसके अलावा अमेरिका भारत से डिजिटल डेटा के नियमों में लचीलापन और मेडिकल डिवाइसेज़ पर आयात शुल्क कम करने की अपेक्षा कर रहा है.

भारत का पक्ष: संतुलन और संरक्षण

भारत ने व्यापार डील के बदले अपनी शर्तें भी सामने रखी हैं:

  • टेक्सटाइल, चमड़ा, दवाइयों और ऑटो पार्ट्स पर अमेरिका की ओर से आयात शुल्क में छूट
  • खासतौर पर टेक्सटाइल और फार्मा क्षेत्र के लिए ज़ीरो या न्यूनतम 10% बेसलाइन टैरिफ की मांग

भारत अपने कुछ कृषि उत्पादों और गाड़ियों पर सीमित शुल्क छूट पर विचार कर रहा है, लेकिन GM फसलों और डेयरी जैसे संवेदनशील विषयों पर लचीलापन दिखाने को तैयार नहीं है.

9 जुलाई, 2025 की डेडलाइन

यह डील 9 जुलाई, 2025 तक फाइनल होनी थी, लेकिन मौजूदा गतिरोध को देखते हुए समयसीमा का पालन करना मुश्किल लग रहा है. अगर तय समय तक कोई समझौता नहीं होता है, तो अमेरिका भारत से आयात होने वाले कई उत्पादों पर 26% तक का टैरिफ लगा सकता है—जिसका सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ेगा. इसमें खास तौर पर टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, और ऑटो पार्ट्स शामिल होंगे.

बातचीत अब तक कहां तक पहुंची?

जून 2025 में दिल्ली में हुई वार्ता के दौरान कुछ मुद्दों पर सहमति बनी है, जैसे डिजिटल ट्रेड और कस्टम्स प्रक्रियाओं में सुधार. लेकिन जहां एक ओर भारत डिजिटल व्यापार में सहयोग को तैयार दिखा, वहीं GM फसलों और अमेरिकी डेयरी उत्पादों को लेकर भारतीय पक्ष ने सख्त रुख अपनाया है.

सूत्र बताते हैं कि अब बातचीत को तीन चरणों में विभाजित कर अंतिम स्वरूप देने की योजना पर विचार चल रहा है:

  • पहला चरण (जुलाई 2025 तक) – सीमित व्यापार रियायतों पर सहमति
  • दूसरा चरण (सितंबर-नवंबर 2025) – कृषि उत्पादों और डेटा नीति पर गहन चर्चा
  • तीसरा चरण (2026 की शुरुआत) – व्यापक व्यापार समझौता और नियमों का अंतिम रूप.

अगर डील नहीं बनी, तो क्या होगा?

यदि दोनों पक्ष समय रहते किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे, तो व्यापारिक तनाव और बढ़ सकता है. अमेरिका की ओर से टैरिफ बढ़ाने की स्थिति में भारत भी जवाबी कदम उठा सकता है, जैसे अमेरिकी व्हिस्की, मेडिकल डिवाइसेज़ या कृषि उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क.

इसके अलावा भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) का दरवाजा खटखटा सकता है, खासतौर पर अमेरिका के स्टील और एल्युमिनियम टैरिफ के खिलाफ.

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