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एक कविता जो बनी स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा, वंदे मातरम कैसे बना राष्ट्रीय गीत?

जनता जनार्दन संवाददाता , Nov 07, 2025, 11:33 am IST
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एक कविता जो बनी स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा, वंदे मातरम कैसे बना राष्ट्रीय गीत?

आज, 7 नवंबर 2025, भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की रचना को 150 वर्ष पूरे हो गए हैं. यह गीत केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन और राष्ट्रवाद का प्रतीक है. बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह अमर कृति भारत माता के प्रति समर्पण, श्रद्धा और राष्ट्र की एकता का प्रतीक बन गई.

वंदे मातरम की रचना: बंकिमचंद्र का राष्ट्रप्रेम

बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ब्रिटिश काल में एक डिप्टी मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत थे. वे अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से व्यथित थे और भारत की गौरवशाली संस्कृति में नई चेतना जगाना चाहते थे. इसी भावना से उन्होंने 1870 के दशक में इस गीत की रचना शुरू की.

7 नवंबर 1875 को उन्होंने इसे पहली बार अपनी बंगाली पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित किया. यह गीत बाद में उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ (1882) में शामिल किया गया, जिससे इसे व्यापक पहचान मिली.

‘आनंदमठ’ का कथानक 18वीं शताब्दी के संन्यासी विद्रोह पर आधारित है, जिसमें भारत माता को ‘मां दुर्गा’ के रूप में चित्रित किया गया है. उपन्यास के एक अध्याय में संन्यासी भवनानंद यह गीत गाता है, यही क्षण भारतीय राष्ट्रवाद के साहित्यिक उद्गम का प्रतीक माना जाता है.

गीत की भाषा और भावार्थ

‘वंदे मातरम’ के पहले दो छंद संस्कृत में हैं, जबकि बाकी चार छंद बंगाली में लिखे गए हैं.

पहले भाग में भारत माता की तुलना देवी दुर्गा से की गई है —

“सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम,
शस्यश्यामलां मातरम्...”

इन पंक्तियों में भारत भूमि की समृद्धि, सौंदर्य और मातृत्व का वर्णन है. जबकि बाद के छंद मातृभूमि के प्रति भक्ति, समर्पण और बलिदान की भावना प्रकट करते हैं.

बंकिमचंद्र ने यह गीत उस समय लिखा जब ब्रिटिश शासन में भारतीयों को ‘गॉड सेव द क्वीन’ गाने के लिए बाध्य किया जाता था. उन्होंने इसे उसका भारतीय विकल्प बनाना चाहा, एक ऐसा गीत जो राष्ट्र की आत्मा से निकला हो.

पहला सार्वजनिक गायन: 1896 का ऐतिहासिक क्षण

‘वंदे मातरम’ का पहला सार्वजनिक गायन 1896 में हुआ था, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 12वां अधिवेशन कोलकाता में आयोजित किया गया. उस अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे बंगाली संगीत शैली में प्रस्तुत किया.

टैगोर ने इसे एक सशक्त संगीतात्मक रूप दिया, जिससे यह कविता एक जनांदोलन का स्वर बन गई. यह क्षण भारतीय राजनीतिक इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ.

हालांकि, 1886 के कांग्रेस अधिवेशन में कवि हेमचंद्र बनर्जी ने इसके कुछ अंश गाए थे, लेकिन पूर्ण रूप से इसे राजनीतिक मंच पर गाने की परंपरा 1896 से शुरू हुई. इसके बाद कांग्रेस के हर अधिवेशन की शुरुआत ‘वंदे मातरम’ से होने लगी.

स्वदेशी आंदोलन का नारा बना 'वंदे मातरम'

1905 में जब ब्रिटिश सरकार ने बंगाल विभाजन की घोषणा की, तो पूरे भारत में विरोध की लहर उठी. इसी समय ‘वंदे मातरम’ स्वदेशी आंदोलन का मुख्य नारा बन गया.

सड़कों, सभाओं, जुलूसों और स्कूलों में “वंदे मातरम” के उद्घोष गूंजने लगे. क्रांतिकारी अरविंद घोष (Aurobindo Ghosh) ने इसे “स्वतंत्रता का मंत्र” कहा.ब्रिटिश प्रशासन ने इसे प्रतिबंधित करने की कोशिश की, लेकिन यह गीत इतना लोकप्रिय हो चुका था कि इसे रोकना असंभव था.

1905 से 1911 तक इस गीत ने भारत में एकता और प्रतिरोध की भावना को जीवित रखा. अंततः 1911 में बंगाल विभाजन रद्द करना पड़ा, और इस आंदोलन में ‘वंदे मातरम’ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही.

धार्मिक विवाद और सीमित रूप में स्वीकार्यता

1906 से 1911 के बीच यह गीत पूरे स्वरूप में गाया जाता था, लेकिन कुछ मुस्लिम नेताओं ने इसकी धार्मिक प्रतीकात्मकता पर आपत्ति जताई. उनका कहना था कि इसमें देवी दुर्गा का उल्लेख होने से यह धार्मिक रूप ले लेता है.

महात्मा गांधी ने भी इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, "वंदे मातरम भारत माता की स्तुति का गीत है, न कि किसी धर्म का. लेकिन हमें सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए."

1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस गीत के पहले दो छंदों को औपचारिक रूप से अपनाया और यही भाग आगे चलकर स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय गीत बना.

संविधान सभा का निर्णय

24 जनवरी 1950 को, संविधान लागू होने से एक दिन पहले, संविधान सभा ने ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रीय गीत (National Song) का दर्जा देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया. यह फैसला राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में सर्वसम्मति से लिया गया.

उसी बैठक में ‘जन गण मन’ को राष्ट्रीय गान (National Anthem) और ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रीय गीत घोषित किया गया.

दोनों गीतों का अपना महत्व है —

  • जन गण मन भारत के नागरिकों की एकता और सार्वभौमिक भावना का प्रतीक है.
  • वंदे मातरम मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और बलिदान की भावना को दर्शाता है.

वंदे मातरम की वैश्विक पहचान

2003 में बीबीसी (BBC) ने एक सर्वे किया, जिसमें ‘वंदे मातरम’ को एशिया का सर्वश्रेष्ठ गीत घोषित किया गया.

आज भी यह गीत भारत की अनेक राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और सैन्य समारोहों में गाया जाता है. 52 सेकंड की इसकी धुन आज भी लोगों के भीतर देशभक्ति और एकता की भावना जगाती है.

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