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भारत सरकार से मदद की गुहार लगा रहे बांग्लादेशी हिंदू, क्यों बढ़ा डर?

जनता जनार्दन संवाददाता , Dec 27, 2025, 11:27 am IST
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भारत सरकार से मदद की गुहार लगा रहे बांग्लादेशी हिंदू, क्यों बढ़ा डर?

बांग्लादेश में हालिया हिंसक घटनाओं के बाद वहां रहने वाले हिंदू समुदाय में डर और असुरक्षा का माहौल गहराता जा रहा है. दीपू चंद्र दास और अमृत मंडल की कथित लिंचिंग के बाद अल्पसंख्यक हिंदुओं में दहशत फैल गई है. कई इलाकों से ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि लोग भीड़ के हमलों और लगातार मिल रही धमकियों से खुद को घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं. इन हालात के बीच बांग्लादेश के हिंदू भारत सरकार से सीमाएं खोलने की भावुक अपील कर रहे हैं, ताकि संकट की घड़ी में वे अपनी जान बचा सकें.

भीड़ के डर से खामोशी ओढ़ने को मजबूर लोग

टाइम्स ऑफ इंडिया से रंगपुर, चटगांव, ढाका और मयमनसिंह जैसे शहरों में रहने वाले हिंदुओं का कहना है कि रोजमर्रा की जिंदगी अब डर के साए में गुजर रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इन क्षेत्रों में रहने वाले हिंदू समुदाय के एक बड़े वर्ग से संपर्क किया गया. निर्वासित बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के नेता निहार हलदर की मदद से व्हाट्सएप कॉल के जरिए बातचीत हुई.

रंगपुर के 52 वर्षीय एक निवासी ने बताया कि उन्हें अपने धर्म के कारण लगातार अपमान और तानों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वे प्रतिक्रिया देने से बचते हैं. उनका कहना है कि सड़क पर मिलने वाले ताने कभी भी हिंसक भीड़ में बदल सकते हैं. उन्होंने डर जताया कि कहीं उनका हश्र भी दीपू या अमृत जैसा न हो जाए.

हम फंस गए हैं, भागने का भी रास्ता नहीं

कई हिंदू परिवारों का कहना है कि वे पूरी तरह फंसे हुए महसूस कर रहे हैं. उनके पास न तो सुरक्षित माहौल है और न ही कहीं जाने का आसान रास्ता. एक स्थानीय निवासी ने कहा कि वे अपमान सहते हैं, क्योंकि डर है कि विरोध करने पर हालात और बिगड़ सकते हैं.

उनकी सबसे बड़ी चिंता आगामी चुनावों को लेकर है. लोगों का कहना है कि अगर चुनाव के बाद बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) सत्ता में आती है, तो अल्पसंख्यकों के लिए हालात और कठिन हो सकते हैं. कई हिंदू इसे अपने लिए एक गंभीर खतरे के रूप में देख रहे हैं.

तारिक रहमान की वापसी से और बढ़ी बेचैनी

ढाका में रहने वाले एक अन्य हिंदू ने बताया कि दीपू दास की पीट-पीटकर हत्या ने पहले ही समुदाय को झकझोर दिया था. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और BNP नेता तारिक रहमान की बांग्लादेश में संभावित वापसी की खबरों ने चिंता और बढ़ा दी है.

उनका कहना है कि अगर BNP सत्ता में आई, तो उत्पीड़न की घटनाएं और तेज हो सकती हैं. कई हिंदुओं का मानना है कि शेख हसीना की अवामी लीग सरकार अब तक उनके लिए एक तरह की सुरक्षा ढाल बनी हुई थी.

संकट के समय सिर्फ भारत से उम्मीद

पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए शरणार्थियों के संगठन निखिल बांग्ला समन्वय समिति के अध्यक्ष डॉ. सुबोध बिस्वास ने कहा कि संकट की इस घड़ी में बांग्लादेश के हिंदू केवल भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं.

उन्होंने चिंता जताई कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे और सीमाएं बंद रहीं, तो और भी जानें जा सकती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे को लेकर सीमा क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है.

2.5 करोड़ हिंदू, यह कोई छोटी संख्या नहीं

सनातन जागरण मंच से जुड़े एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बांग्लादेश में करीब 2.5 करोड़ हिंदू रहते हैं. उनका कहना है कि यह कोई छोटी आबादी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में कई हिंदू संगठन सिर्फ बयानबाजी तक सीमित हैं, जबकि जमीनी स्तर पर ठोस कदमों की जरूरत है. उनके मुताबिक, अगर समय रहते स्थिति नहीं संभाली गई, तो हालात और भयावह हो सकते हैं.

सीमा खुलने का मतलब पलायन नहीं, बस सुरक्षा

मयमनसिंह के एक निवासी ने साफ किया कि सीमाएं खोलने की मांग का मतलब यह नहीं है कि सभी हिंदू भारत पलायन करना चाहते हैं. उनका कहना है कि कम से कम हिंसा की स्थिति में सुरक्षित निकलने का एक रास्ता होना चाहिए.

ढाका में रहने वाले एक अन्य हिंदू ने कहा कि वे एक डरावने सपने जैसी जिंदगी जी रहे हैं. भारत की सीमाएं खुलने से कम से कम उन लोगों को राहत मिल सकती है, जो सीधे खतरे में हैं.

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