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छींकते वक्त आंखें क्यों बंद हो जाती हैं? जानें क्या कहता है?
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Nov 26, 2025, 12:03 pm IST
Keywords: आंख नाक मुंह जबड़ा ट्राइजेमिनल नर्व Healthy Health Life Style
क्या आपने कभी महसूस किया है कि जैसे ही छींक आती है, आपका चेहरा एक पल के लिए पूरी तरह सिकुड़ जाता है और आंखें अपने-आप कसकर बंद हो जाती हैं? यह कोई कोशिश नहीं होती, बल्कि शरीर की एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमारे नियंत्रण में भी नहीं होती. कई लोग इसे अंधविश्वास से जोड़ते हैं, तो कई सोचते हैं कि शायद आंखें खुली रहें तो नुकसान हो सकता है. लेकिन सच्चाई इससे कहीं ज्यादा दिलचस्प है. मानव शरीर का यह रिफ्लेक्स न केवल अद्भुत है, बल्कि हमारी सुरक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा भी है. छींक का असली मकसद है शरीर को बचाना. जब भी नाक के अंदर धूल, परागकण, वायरस, बैक्टीरिया या कोई भी एलर्जन घुसता है, तब शरीर अलर्ट मोड में चला जाता है. दिमाग को संकेत मिलता है कि बाहरी घुसपैठ को बाहर निकालना जरूरी है. यहीं शुरू होता है sneeze reflex, जिसमें पूरा शरीर एक झटके में ज़ोरदार हवा को बाहर फेंकता है ताकि अनचाहे कण नाक और मुंह से बाहर निकल जाएं. क्या छींकते समय आंख खुली रहे तो कोई खतरा है? लंबे समय से एक मिथक सुना गया है कि छींकते समय आंखें खुली हों तो आंखें बाहर निकल सकती हैं. यह बात सुनकर डर जरूर लगता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसे साफ-साफ गलत बताया है. हकीकत यह है कि आंखों से जुड़ी मांसपेशियां इतनी मजबूत होती हैं कि कोई भी प्रेशर उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता. इसलिए आंखें बंद होना कोई मजबूरी नहीं—यह एक सुरक्षा प्रतिक्रिया है. असल वजह आंखें स्वतः क्यों बंद हो जाती हैं? छींक आने पर लाखों छोटे–छोटे कण, कीटाणु और ड्रॉपलेट्स तेज गति से बाहर फेंके जाते हैं.अगर उस समय आंखें खुली रहें, तो ये कण सीधे आंखों की सतह तक पहुंच सकते हैं और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.इससे बचाने के लिए शरीर अपने-आप आंखों को बंद कर देता है. यानी यह एक protective reflex है, जो प्रकृति ने हमें संक्रमण और बाहरी कणों से बचाने के लिए दिया है. ट्राइजेमिनल नर्व, इस कहानी का असली हीरो वैज्ञानिकों के अनुसार, छींकते समय आंख बंद होने की सबसे बड़ी वजह है ट्राइजेमिनल नर्व.यह नस चेहरे के बड़े हिस्से को नियंत्रण में रखती है—आंख, नाक, मुंह, जबड़ा सब इससे जुड़े हैं.जब नाक में जलन होती है और दिमाग छींकने का आदेश देता है, तो उसी समय वही आदेश आंखों की मांसपेशियों को भी मिलता है. नतीजा—पलकें झटके से बंद हो जाती हैं. यह प्रतिक्रिया इतनी तेज होती है कि चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, इसे रोकना लगभग असंभव है. क्या छींक रोकनी चाहिए? बिल्कुल नहीं! अक्सर लोग भीड़ या मीटिंग में छींक दबाते हैं, लेकिन यह आदत खतरनाक हो सकती है. छींक रोकने पर नाक और चेहरे के हिस्सों में दबाव कई गुना बढ़ जाता है, जिससे कानों में दर्द, आंखों की नसों पर दबाव और यहां तक कि ब्लड वेसल्स को नुकसान हो सकता है. इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि छींक को हमेशा स्वाभाविक रूप से आने देना चाहिए. |
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