..और बुद्ध की शरण में आ गया अंगुलिमाल
जनता जनार्दन डेस्क ,
Feb 07, 2013, 10:47 am IST
Keywords: Lord Buddha Preached Angulimal The Buddha भगवान बुद्ध उपदेश अंगुलिमाल डाकू लोगों को मारकर उंगलियां काट लेता माला बनाकर पहनता बुद्ध की शरण
नई दिल्ली: अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता और उनकी माला बनाकर पहनता था। इसी से उसका यह नाम पड़ा था। आदमियों को लूट लेना, उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था। लोग उससे डरते थे। उसका नाम सुनते ही लोगों के प्राण सूख जाते थे।
संयोग से एक बार भगवान बुद्ध उपदेश देते हुए उधर आ निकले। लोगों ने उनसे प्रार्थना की कि वह वहां से चले जाएं। अंगुलिमाल ऐसा डाकू है जो किसी के आगे नहीं झुकता। बुद्ध ने लोगों की बात सुनी, पर उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला। वह बेधड़क वहां घूमने लगा। जब अंगुलिमाल को इसका पता चला तो वह झुंझलाकर बुद्ध के पास आया। वह उन्हें मार डालना चाहता था, लेकिन जब उसने बुद्ध को मुस्कराकर प्यार से उसका स्वागत करते देखा तो उसका पत्थर का दिल कुछ मुलायम हो गया। बुद्ध ने उससे कहा, "क्यों भाई, सामने के पेड़' से चार पत्ते तोड़ लाओगे?" अंगुलिमाल के लिए यह काम क्या मुश्किल था! वह दौड़ कर गया और जरा-सी देर में पत्ते तोड़कर ले आया। "बुद्ध ने कहा, अब एक काम करो। जहां से इन पत्तों को तोड़कर लेकर आए हो, वहीं इन्हें लगा आओ।" अंगुलिमाल बोला, "यह कैसे हो सकता है?" बुद्ध ने कहा, "भैया! जब जानते हो कि टूटा जुड़ता नहीं तो फिर तोड़ने का काम क्यों करते हो?" इतना सुनते ही अंगुलिमाल को बोध हो गया और उस दिन से अपना धंधा छोड़कर बुद्ध की शरण में आ गया। 'हम सब चोर हैं' : पुराने जमाने की बात है। एक आदमी अपराध में पकड़ा गया। उसे राजा के सामने पेश किया गया। उन दिनों चोरों को फांसी की सजा दी जाती थी। अपराध सिद्ध हो जाने पर इस आदमी को भी फांसी की सजा मिली है। राजा ने कहा, "फांसी पर चढ़ने से पहले तुम्हारी कोई इच्छा हो तो बताओ।" राजा ने उसकी बात मान ली और उसे कुछ दिन के लिए छोड़ दिया। आदमी ने महल के पास एक खेत की जमीन को अच्छी तरह खोदा और समतल किया। राजा और उसके अधिकारी वहां मौजूद थे। खेत ठीक होने पर उसने राजा से कहा, "महाराज, मोती बोने के लिए जमीन तैयार है, लेकिन इसमें बीज वही डाल सकेगा, जिसने तन से या मन से कभी चोरी न की हो। मैं तो चोर हूं, इसलिए बीज डाल नहीं सकता।" राजा ने अपने अधिकारियों की ओर देखा। कोई भी उठकर नहीं आया। तब राजा ने कहा, "मैं तुम्हारी सजा माफ करता हूं। हम सब चोर हैं। चोर, चोर को क्या दंड देगा!" |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|