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विश्वास का महत्व

काशीनाथ त्रिवेदी , Dec 05, 2012, 12:42 pm IST
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विश्वास का महत्व नई दिल्ली: हज़रत मुहम्मद अपने साथी अबूबकर को लेकर मक्का से रवाना हुए। उन्हें पकड़ने के लिए कुरैशों ने उनका पीछा किया। यह देखकर मुहम्मद साहब और अबूबकर रास्ते में एक गुफा में छिप गये।

कुरैशों को गुफा के आसपास चक्कर लगाते और खोजते देखकर अबूबकर बोले, "हजरत, हम सिर्फ दो लोग यहां घुसे हैं और दुश्मन तो बहुत हैं। अगर वे गुफा के सामने ही आकर खड़े हो गये तो क्या होगा?"

हज़रत मुहम्मद इत्मीनान के साथ बोले, "होगा क्या? यहां हम दो ही नहीं, तीसरा अल्लाह भी है।"

दोष-दर्शन :

बगदाद में मारुक नाम के एक साधु पुरुष रहते थे। एक बार एक भाई उनके साथ उनकी झोंपड़ी में मेहमान के नाते ठहरे नमाज का वक्त होने पर वे भई उठे और एक कोने में जाकर नमाज पढ़ने लगे।

नमाज पढ़ चुकने के बाद उन भाई को पता चला कि उन्होंने गलती से काबा की मस्जिद की तरफ मुंह करने के बदले दूसरी दिशा में मुंह करके नमाज पढ़ी थी। उन्होंने महात्मा मारुक से इसकी चर्चा की और पूछा, "बाबा! आपने मेरी गलती सुधारी क्यों नहीं?"

मारुक साहब बोले, "भैया, हम तो फकीर आदमी ठहरे। हम दूसरों के दोष नहीं देखते।"

धर्म-ऋण :

एक बार सरदार वल्लभभाई पटेल कांग्रेस के लिए निधि-संग्रह के काम से रंगून गये। उस समय जब-जब वे चीनियों के पास चंदा उगाहने जाते, तब-तब चीनी लोग चंदें की सूची में अपना कोई आंकड़ा चढ़ाते नहीं थे, बल्कि घर के अंदर जाकर यथाशक्ति जो रकम उन्हें देनी होती, हाथों-हाथ दे दिया करते थे।

चीनियों के इस व्यवहार को देखकर सरदार ने एक चीनी सज्जन से इसका कारण पूछा। उन चीनी सज्जन ने जवाब में कहा, "हम इसे धर्म-ऋण कहते हैं। सूची में आंकड़ा चढ़ाने के बाद यदि उतनी रकम हाथ में न हुई, तो उसे चुकाने में जितने दिनों की देर होती है, उतने दिन का ऋण ही हम पर चढ़ता है। धर्म-ऋण का यह पातक हम लोगों में सबसे बुरा माना जाता है। इसलिए हमें चंदे में या कोष में कोई रकम देनी होती है, तो तुरन्त देकर इस ऋण से मुक्त होने का अनुभव करते हैं।"

(सस्ता साहित्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'हमारी बोध कथाएं' से साभार)

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