जब बुद्ध ने दिखाई सहनशक्ति
जनता जनार्दन डेस्क ,
Dec 16, 2012, 18:58 pm IST
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नई दिल्ली: बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध जंगली भैंसे की योनि भोग रहे थे। वह एकदम शांत प्रकृति के थे। जंगल में एक नटखट बंदर उनका हमजोली था। उसे महात्मा बुद्ध को तंग करने में बड़ा आनंद आता। वह कभी उनकी पीठ पर सवार हो जाता तो कभी पूंछ से लटक कर झूलता, कभी कान में उंगली डाल देता तो कभी नथुने में। कई बार गर्दन पर बैठकर दोनों हाथों से सींग पकड़ कर झकझोरता। महात्मा बुद्ध उसे कुछ न कहते।
उनकी सहनशक्ति और वानर की धृष्टता देखकर देवताओं ने उनसे निवेदन किया, "शांति के अग्रदूत, इस नटखट बंदर को दंड दीजिए। यह आपको बहुत सताता है और आप चुपचाप सह लेते हैं!" वह बोले, "मैं इसे सींग से चीर सकता हूं, माथे की टक्कर से पीस सकता हूं, परंतु मैं ऐसा नहीं करता, न करूंगा। अपने से बलशाली के अत्याचार को सहने की शक्ति तो सभी जुटा लेते हैं, परंतु सच्ची सहनशक्ति तो अपने से बलहीन की बातों को सहन करने में है।" मध्यम मार्ग : रोग, जरा और मृत्यु पर विजय पाने के लिए महात्मा बुद्ध कहां-कहां नहीं भटके! अंत में गया के पास बन में घोर तप करके शरीर सुखा लिया, पर लक्ष्य से डिगे नहीं। अस्थिपंजर हो जाने पर भी उन्होंने कठोर-साधना के कष्ट नहीं माना। सांसारिक प्रलोभन उन्हें रिझा न सके। एक दिन जब से तपस्या में लीन थे तो पास के रास्ते से कुछ गायिकाएं गुजरीं, जो अपनी भाषा में गीत गा रही थीं। गीत का भाव था- "सितार के तारों को ढील मत दो। स्वर ठीक नहीं निकलता; पर उन्हें इतना कसो भी नहीं कि टूट जाएं।" बस, महात्मा बुद्ध को मिल गया 'मध्यम मार्ग'। उन्होंने घोर तपस्या, निद्रा, भोजन आदि के त्याग को तिलांजलि दे, नियमित निद्रा और संयमित भोजन को अधिक व्यावहारिक समझा। फिर वह जीवन भर मध्यम मार्ग पर ही चलते रहे। (सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक 'बोध कथाएं' से साभार) |
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