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.और बच गई संत अत्तारी की जान
मुकुलभाई कलार्थी ,
Jan 08, 2013, 14:48 pm IST
Keywords: Saint Pharmacy Turkistan - Iran Parasmani nymph motherhood - devotion Yashpal Jain Hamari bodh kathaiyen संत अत्तारी तुर्किस्तान - ईरान पारसमणि अप्सरा मातृत्व-भक्ति यशपाल जैन हमारी बोध कथाएं
![]() ईरान के कुछ लोगों को इसका पता चला। इस पर एक भले धनवान पुरुष ने अत्तारी साहब के वजन के बराबर हीरे देने प्रस्ताव रखा और संत पुरुष को छोड़ने की मांग की, लेकिन तुर्क नहीं माने। जब ईरान के बादशाह को इस बात की खबर लगी तो वे खुद तुर्किस्तान के सुल्तान के सामने हाजिर हुए और बोले, "मेरे राज्य के लिए आपकी न जाने कितनी पीढ़ियां हमसे लड़ती आ रही हैं, फिर भी आप हमसे हमारा राज्य छीन नहीं सके हैं, लेकिन आज मैं आपसे यह कहने आया हूं कि आप हमसे हमारा राज्य ले लीजिए और हमारे अत्तारी साहब को हमें वापस सौंप दीजिए। धन नाशवान है, राज्य भी नाशवान है, किंतु संत तो सदा अमर हैं। अत्तारी साहब को खोकर ईरान को कलंकित नहीं होना चाहिए।" सच्चा मूल्य : पुराने जमान की बात है, मिस्र देश के राजा पर देवता प्रसन्न हुए और बोले, "यह तलवार लो और दुनिया को फतल करो।" राजा ने पूछा, "भगवान, दुनिया को फतह करके मैं क्या पाऊंगा?" देवता ने कहा, "यह पारसमणि लो और खूब धन प्राप्त करो।" देवता बोले, "तो लो, मैं तुम्हें स्वर्ग की यह अप्सरा देता हूं।" राजा ने पूछा, "भगवान! इस अप्सरा को प्राप्त करके मैं कौन-सी सिद्धि पाऊंगा।" देवता ने कहा, "तब तुम फूल का यह पौधा ले लो। यह जहां भी रहेगा, वहां जड़-चेतन, शत्रु-मित्र, सबको अपनी सुगंध से सुवासित करेगा।" राजा ने सोचा, "तलवार का पानी एक दिन उतरने ही वाला है, धन का दुरुपयोग भी हो सकता है, स्त्री का रूप भी एक दिन नष्ट होने वाला है, परंतु फूल की सुगंध से तो देवता भी स्वर्ग से उतरकर धरती पर रहने लगते हैं।" यों सोचकर राजा ने देवता से कहा, "भगवान, मुझे फूल का यह पौधा ही दीजिए।" मातृत्व-भक्ति का प्रभाव : किसी समय चीन देश में हो-लीन नाम का एक नौजवान रहता था। वह अपनी मां का परमभक्त था। बूढ़ी मां की सेवा-चाकरी बड़े भक्ति-भाव से किया करता था। मां को किस समय, किस चीज की जरूरत पड़ेगी, इसका वह पूरा ख्याल रखता था। एक बार हो-लीन के घर में एक चोर घुस आया। जिस कमरे में हो-लीन सोया था, उस कमरे में चोर के घुसते ही हो-लीन की नींद खुल गई। लेकिन चोर बहुत ताकतवर था। उसने हो-लीन को एक खंबे से कसकर बांध दिया। पास ही के कमरे में मां सोई थी। इस सारे झमेले में कहीं मां की नींद न खुल जाए, इस ख्याल से हो-लीन चुप ही रहा। चोर ने उस कमरे में पड़ी एक पेटी खोली और वह उसमें से सामान निकालने लगा। उसने हो-लीन का रेशम कोट निकाला और एक चादर बिछाकर उस पर रख दिया। इस तरह वह एक के बाद एक सामान निकालता और रखता गया। हो-लीन सबकुछ देखता रहा। इस बीच चोर ने पेटी में से तांबे का एक तसला बाहर निकाला। उसे देखकर हो-लीन का गला भर आया और उसने कहा, "भाईसाहब, मेहरबानी करके यह तसला यहीं रहने दीजिए। मुझे सुबह ही अपनी मां के लिए पतला दलिया बनाना होगा और मां को देना होगा। तसला न रहा तो बूढ़ी मां को दलिए के बिना ही रह जाना पड़ेगा।" यह सुनते ही चोर के हाथ से तसला छूट गया। उसने भर्राई हुई आवाज में कहा, "मेरे प्यारे मित्र, तसला ही नहीं, बल्कि तेरा सारा सामान मैं यहीं छोड़े जा रहा हूं। तेरे जैसे मातृ-भक्त के घर से मैं तनिक-सी भी कोई चीज ले जाऊंगा तो मेरा सत्यानाश हो जाएगा। तेरे घर की कोई चीज मुझे हजम नहीं होगी।" यों कहकर हो-लीन को बंधन से मुक्त कर वह चोर धीमे पैरों वहां से चला गया। (यशपाल जैन द्वारा संपादित एवं सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक 'हमारी बोध कथाएं' से साभार) |
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