जब लक्ष्मी ने किया सच का सामना
रामनारायण उपाध्याय ,
Dec 31, 2012, 13:37 pm IST
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नई दिल्ली: एक बार लक्ष्मी को घमंड हो गया कि मैं सबसे बड़ी हूं। इस बात की जांच के लिए वह धरती पर पहुंचीं। एक मूर्तिकार के यहां अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति के साथ लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की मूर्तियां भी बिक्री के लिए रखी थीं।
लक्ष्मी ने सरस्वती की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा पूछा, "इसकी क्या कीमत है?" मूर्तिकार ने कहा, "बहन जी! इसकी कीमत पांच रुपया है। " लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने सोचा, दुनिया में सरस्वती की कीमत सिर्फ पांच रुपया है। फिर दुर्गा की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए पूछा, "इसकी क्या कीमत है?" मूर्तिकार ने कहा, "बहनजी, इसकी भी कीमत पांच रुपया है।" लक्ष्मी ने सोचा, दुनिया में सरस्वती और दुर्गा एक ही भाव बिकती हैं। फिर उन्होंने स्वयं अपनी, लक्ष्मी की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए पूछा, "इसकी क्या कीमत है?" मूर्तिकार ने कहा, "बहन जी, इसे कोई नहीं खरीदता। जो भी हमारे यहां से सरस्वती और दुर्गा की मूर्ति खरीदते हैं, उनको हम यह मूर्ति भेंट में देते हैं। कारण, लोग लक्ष्मी देकर ही सरस्वती और दुर्गा खरीदते हैं। लक्ष्मी देकर कोई लक्ष्मी नहीं खरीदता।" इस तरह लक्ष्मी को किया सच का सामना करना पड़ा। स्नेह का बोझ नहीं होता : एक आदमी अपने सिर पर अपने खाने के लिए अनाज की गठरी ले जा रहा था। दूसरे आदमी के सिर पर उससे चार गुनी बड़ी गठरी थी। लेकिन पहला आदमी गठरी के बोझ से दबा जा रहा था, जबकि दूसरा मस्ती से गीत गाता जा रहा था। पहले ने दूसरे से पूछा, "क्योंजी!" क्या तुम्हें बोझ नहीं लगता? दूसरा बोला, "तुम्हारे सिर पर अपने खाने का बोझ है, मेरे सिर पर परिवार को खिलाकर खाने का। स्वार्थ के बोझ से स्नेह का बोझ हल्का होता है।" चरित्र की सीढ़ियां : एक आदमी अपने हाथ में दो ऊंचे डंडे लेकर एक महल की ऊपरी मंजिल पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था। दूसरे आदमी ने देखा तो पूछा, "तुम यह क्या कर रहे हो?" वह बोला, "मेरे पास 'सम्यक् ज्ञान' और 'सम्यक दर्शन' के दो डंडे हैं। मैं इसके सहारे इस महल की ऊपरी मंजिल पर पहुंचना चाहता हूं। दूसरे आदमी ने कहा, "सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन के सहारे तुम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते। ये तुम्हें ऊंचाई तो प्रदान कर सकते हैं, लेकिन लक्ष्य में सफलता दिलाना इनके सामथ्र्य की बात नहीं है।" पहले ने कहा, "मैंने बड़ी मेहनत से इन्हें प्राप्त किया है। क्या सारा श्रम व्यर्थ जाएगा?" दूसरे आदमी ने कहा, "तुम्हारा श्रम व्यर्थ नहीं जाएगा, यदि तुम सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन के इन दो खड़े डंडों में 'सम्यक् चारित्र' की आड़ी सीढ़ियां लगा सको।" 'सम्यक ज्ञान' और 'सम्यक् दर्शन' के दो खड़े डंडों में 'सम्यक् चारित्र' को आड़ी सीढ़ियां लगाने से एक ऐसी नसैनी तैयार हो जाती है, जिस पर एक-एक कदम उठाकर आदमी अपने लक्ष्य तक पहुंच सकता है। (यशपाल जैन द्वारा संपादित और सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक 'हमारी बोध कथाएं से साभार') |
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