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बिहार में NDA को दिलाई शानदार जीत, राहुल-तेजस्वी चारों खाने हो गए चित!

जनता जनार्दन संवाददाता , Nov 15, 2025, 11:56 am IST
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बिहार में NDA को दिलाई शानदार जीत, राहुल-तेजस्वी चारों खाने हो गए चित!

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि नीतीश कुमार भारतीय राजनीति के उन नेताओं में से हैं जिनका राजनीतिक दांव आखिरी वक्त में भी समीकरण बदल सकता है. विपक्ष ने उन्हें चुनाव से पहले मानसिक रूप से कमजोर, निर्णय क्षमता से वंचित और पुराना नेता बताने की कोशिश की थी, लेकिन चुनावी नतीजों ने तस्वीर पूरी तरह उलट दी. इस बार नीतीश ने ऐसी चुनावी चाल चली जिसने महागठबंधन के नेताओं को हैरान कर दिया और तेजस्वी यादव की सीएम बनने की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया. चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने जो रणनीति अपनाई, उसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका एक डबल 'M' फैक्टर की रही, जिसने NDA को अप्रत्याशित बढ़त दिलाई.

नीतीश ने आखिर चला कौन-सा दांव?

बिहार में NDA की जीत में ‘डबल M’ का प्रभाव निर्णायक रहा. यह दो ऐसे वोट बैंक थे, जिनकी सही दिशा पकड़ लेने से नीतीश ने पूरे चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ दिया. पहले ‘M’ यानी महिलाएं, जिनके लिए उन्होंने शराबबंदी के बाद से कई योजनाएं लागू की थीं, और इस चुनाव से ठीक पहले उन्होंने परिवार की एक महिला को 10-10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता देकर नया आधार बनाया. यह रकम छोटे कारोबार या घरेलू कमाई शुरू करने के लिए दी गई, और अगर उनका काम आगे बढ़ता है तो सरकार द्वारा उन्हें दो लाख रुपये तक की अतिरिक्त सहायता भी मिल सकती है. इस योजना ने महिलाओं के बीच उनकी पकड़ को और मजबूत किया और यह स्पष्ट रूप से वोटों में बदल गया.

क्या नीतीश बीजेपी से भी एक कदम आगे निकले?

यह बात सही है कि पिछले कई राज्यों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक संख्या में मतदान कर रही हैं और चुनावी परिणामों को प्रभावित कर रही हैं. बीजेपी ने विभिन्न राज्यों में चुनाव से पहले महिलाओं को आर्थिक लाभ देकर अपने पक्ष में माहौल बनाने की रणनीति अपनाई थी. लेकिन बिहार में नीतीश ने यह फॉर्मूला काफी पहले समझ लिया था और उससे आगे निकलते हुए उन्होंने एकमुश्त 10 हजार रुपये सीधे महिलाओं के खाते में भेज दिए. इससे महिला मतदाता पर महागठबंधन का प्रभाव कमजोर हो गया और तेजस्वी यादव की कोशिशें फीकी पड़ गईं. तेजस्वी ने महिलाओं को 30 हजार रुपये देने का वादा जरूर किया था, लेकिन नीतीश ने चुनाव से पहले ही अपने कदम को जमीन पर उतारकर महिलाओं का विश्वास जीत लिया.

RJD के 'दूसरे M' फैक्टर पर भी पड़ा असर

इतना ही नहीं, जानकारों का मानना है कि नीतीश की रणनीति का असर RJD के पारंपरिक दूसरे ‘M’ यानी मुस्लिम मतदाताओं पर भी दिखाई दिया. कई क्षेत्रों में मुस्लिम वोटों में बिखराव देखा गया और उसका एक हिस्सा RJD से हटकर जेडीयू की ओर झुकता दिखा. इससे महागठबंधन को डबल नुकसान उठाना पड़ा. एक ओर महिलाएं NDA की तरफ चली गईं, दूसरी ओर मुस्लिम वोटों की एक परत खिसकने से RJD की ताकत और कमजोर पड़ गई. यह असर भले व्यापक न रहा हो, लेकिन जिन सीटों पर मुकाबला बेहद कड़ा था, उन पर इस बदलाव ने बड़ा अंतर पैदा कर दिया.

20 साल पहले शुरू हुआ नीतीश का खेल

आज जो परिणाम दिखाई दे रहे हैं, वे अचानक नहीं बने बल्कि उनकी शुरुआत करीब 20 साल पहले ही हो चुकी थी. 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद ही नीतीश ने RJD के MY समीकरण की काट के लिए अपने 'M' यानी महिला वोट बैंक को मजबूत करना शुरू कर दिया था. पहले लड़कियों को साइकिल और यूनिफॉर्म योजना देकर शिक्षा और सुरक्षा पर ध्यान दिया. 2016 में शराबबंदी लागू कर उन्होंने महिलाओं के बीच अपनी स्वीकृति को और गहरा किया. जैसे-जैसे शराबबंदी की आलोचना बढ़ी, उन्होंने स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50% आरक्षण और सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण देकर उन्हें सत्ता और व्यवस्था में बड़ा स्थान दिलाया. इन योजनाओं ने धीरे-धीरे ‘महिला शक्ति’ को उनका स्थायी और मजबूत वोट बैंक बना दिया.

इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने चुनाव से ठीक पहले महिलाओं के खातों में प्रत्यक्ष रूप से 10 हजार रुपये भेजकर अंतिम और निर्णायक दांव खेला. वहीं तेजस्वी भले 30 हजार रुपये देने का दावा कर रहे थे, लेकिन महिलाओं का एक बड़ा वर्ग नीतीश पर ही भरोसा करता रहा क्योंकि उनका लाभ उन्हें पहले ही मिल चुका था.

किस पार्टी को कितनी सीटें मिलीं?

  • चुनावी नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि जनता ने NDA पर भरोसा जताया है.
  • बीजेपी ने 89 सीटें, जेडीयू ने 85 सीटें जीतकर मजबूत प्रदर्शन किया.
  • वहीं RJD सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई.
  • चिराग पासवान की पार्टी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की.
  • कांग्रेस का बेहद खराब प्रदर्शन रहा और वह केवल 6 सीटें ही जीत पाई.
  • लेफ्ट पार्टियों की भी लगभग पूरी तरह से हार हुई.

अन्य छोटे दलों को भी कुछ सीटें मिलीं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित ही रहा.

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