हलधर नाग और संबलपुरी समाज

गौरव अवस्थी , Aug 02, 2025, 18:55 pm IST
Keywords: हलधर नाग   संबलपुरी समाज    Sambalpuri   odisha  
फ़ॉन्ट साइज :
हलधर नाग और संबलपुरी समाज
कवि या साहित्यकार को सुनकर वाह-वाह और तालियां बजाते तो हम सब सुनते ही हैं। यह अब व्यापार सा बन चुका है या मार्केटिंग का खेल। असली सम्मान वह है जब मंत्री से लेकर संत्री तक बोलें और सामने की पंक्ति में श्रोता के रूप में साहित्यकार सुने। अपने जीवन पर। अपने काम पर। अपने साहित्य पर। अपनी कविता पर। ऐसा हमने पिछले दिनों बरगढ़ (ओड़िशा) में दो दिवसीय एक नेशनल सेमिनार में प्रत्यक्ष देखा-सुना। मंत्री के उद्बोधन में। संस्था के संबोधन में। विद्वानों के व्याख्यान में। चित्र में। चरित्र में। नृत्य में। नाटक में। गायन में। 
 
2 दिन। 20 घंटे। 5 सत्र। 25 वक्ता। 5 संचालक। 11 साँस्कृतिक कार्यक्रम। सेमिनार के शुभारंभ पर कविजी की कविता- ' ई माटीर पानी पवनरे..' गीत के सस्वर गायन को सुनना अद्भुत था। अछूत शबरी पर केंद्रित 'अछिया' काव्य पर आदिवासी बच्चियों की भावपूर्ण प्रस्तुति हो या कविजी के जीवन पर आधारित लघु नाटिका। सब दिल जीत। क्षेत्र के संगीता के मानते हैं, कोसली में लिखी उनकी कविताएं राग के मानकों पर भी फिट हैं। कविताओं की रागमयी प्रस्तुति को 'हलधर संगीत' ही कहा जाता है।सभागार के प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ चार दर्जन से अधिक विभिन्न मुद्राओं वाले हाथ से बने स्कैच या फोटो देखना एक अलग 'लोक' का अनुभव जैसा था। ऐसा हमने 2 साल पहले सिर्फ 'प्रभाष प्रसंग' में देश के श्रेष्ठ पत्रकार-संपादक प्रभाष जोशी के संबंध में चित्तौड़ में ही देखा था। 
 
सब-के-सब उस साहित्यकार को समर्पित, जिसे दुनिया 'लोक कविरत्न' के रूप में जानती-मानती-पहचानती है। पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाली इस अजीम शख्सियत का नाम है-हलधर नाग। वर्ष 2016 में भारत सरकार के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' से विभूषित हलधर नाग का निर्विकार भाव, शांत समुद्र और गंभीर श्रोता की तरह सबको सुनना और सारे आयोजनों में सामान्य जन की तरह सहभागिता, इस  सेमिनार का सबसे विशेष पक्ष थी। 
 
एक दृश्य देख लीजिए-' 28 जून को सुबह 10 बजे सेमिनार का शुभारंभ था। रात से शुरू हुई वर्षा आयोजन प्रारंभ होने के एक घंटे पहले तक जारी थी। इस बारिश के बीच ही नंगे पैर धोती-बनियान पहने और अपनी कुछ पुस्तकों का झोला खुद हाथ में थामे हलधर नाग दिखाई देते हैं। चेहरे पर किसी से कोई सम्मान की चाहत न चरित्र में, लेकिन संस्थान के संत्री हो या अन्य मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता-साहित्यकार, सब पैर छूकर आशीर्वाद लेने को लालायित। मैं खुद भी उसमें शामिल हो गया। क्यों? के जवाब में बस इतना कह सकता हूं, यह पदक की चमक पर नहीं, सादगी के सम्मान में। 
 
यह होता है लोककवि का लालित्य। जहां हर कोई स्वयं ही श्रद्धावनत हो। हर कोई उनसे मिलने- बतियाने और सेल्फी लेने को बेताब! 'लोक' की बात करने या लिखने भर से कोई लोककवि नहीं होता। इसके लिए लोक से जुड़ना भी होता है। हलधर नाग लोक की बात जितना लिखते हैं, उससे ज्यादा लोक में विचरते हैं। लोक से जुड़ते हैं। लोक के साथ चलते हैं। अपनी लोक कविताओं से तो हलधर नाग कोसल प्रदेश में लोकप्रिय हैं ही। बाहरी दुनिया से हलधर नाग को परिचित कराने वाले अभिमन्यु साहित्य संसद के संस्थापक अशोक कुमार पूजाहारी का कम योगदान नहीं। हिंदी समाज में उनके साहित्य को विस्तार देने में अनुवादक दिनेश कुमार माली की महती भूमिका है। इस आयोजन की सूत्रधार भी उन्हीं की संस्था 'अभिमन्यु साहित्य संसद' थी। सहयोगी भूमिका में कृष्णा विकास संस्थान। 
 
31 मार्च 1950 को बरगढ़ के ऐतिहासिक घेंस गांव में जन्मे हलधर नाग का लोक साहित्य दुनिया के तमाम देशों में शोध का विषय है। आर्थिक अभावों से स्कूली शिक्षा से वंचित रहने वाले पद्मश्री हलधर नाग संबलपुर की अधिष्ठात्री देवी माँ समलेई, भगवान राम और श्रीकृष्ण के अतिरिक्त रामकथा में उपेक्षित मिथकीय पात्र महासती उर्मिला एवं अछूत शबरी पर 'अछिया' नामक महाकाव्य लिखकर अपने जीवित रहते ही अमर हो चुके हैं। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को उपेक्षित उर्मिला पर साकेत महाकाव्य लिखने की प्रेरणा दी, उन्हीं पर हलधर नाग ने स्वप्रेरणा से 'महासती उर्मिला' महाकाव्य का प्रणयन किया। 
 
प्रक्रति से सीधा तादातम्य रखने वाले हलधर नाग की पहली कविता है-' ढाड़ो बरगाछ'। हिंदी में इसे कहा जाएगा - 'बूढ़ा बरगद'। बरगद का यह पेड़ आज भी उनके संग्रहालय के सामने है। रात ही सही, कविता के बहाने चर्चा में आ चुके इस विशाल बरगद के नीचे कुछ देर सांस लेने का मौका इन पंक्तियों के लेखक को भी मयस्सर हुआ। 1990 में लेखन की दुनिया में कदम रखने वाले हलधर नाग अब तक दो दर्जन से अधिक काव्य, महाकाव्य, खंडकाव्य रच चुके हैं। 25-30 व्याखान भी कम से कम हमें हलधर नाग का साहित्य संसार समेट पाने में समर्थ प्रतीत नहीं हुए। बाकी का भगवान जानें।
 
लोक कविरत्न कालीभक्त हैं। उन्होंने अपने संग्रहालय के सामने काली माँ का छोटा सा मंदिर भी निर्मित कराया है। कहते हैं, विशेष वाद्य यंत्र बजाकर भक्ति में डूबने के बाद मां समलेई कविजी को कान में कुछ फुसफुसाती हैं और उनके अंतस से सरस्वती की सहस्रधारा स्फुटित होने लगती है। उनके कार्यस्थल पर बने छोटे-से संग्रहालय की दीवारों पर सजे सैकडों उपहार, सम्मान एवं प्रमाणपत्र 'लोक सम्मान' की प्रत्यक्ष गवाही देते हैं। संग्रहालय में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति न्यास-रायबरेली द्वारा वर्ष 2022 में प्रदान किया गया 'डॉ राम मनोहर त्रिपाठी लोक सेवा सम्मानपत्र' भी सुशोभित है। इसे देखना अपने में एक नए अनुभव से गुजरना है। इसी संग्रहालय के एक किनारे छोटे से स्थान पर कविजी का एक तखत बिछा है। इसी पर गृहस्थ हलधर नाग की रातें बीतती-कटती हैं। हलधर नाग का नंगे पैर रहने के पीछे तर्क है-'माँ की गोद में चप्पल पहनकर कौन बैठता है? मां के सीधे स्पर्श से ऊर्जा और शक्ति प्राप्त होती है'।
 
हलधर नाग केवल इसलिए बड़े नहीं है कि उन्हें 'पद्मश्री' प्राप्त है। इससे बड़ी है, उनकी सरलता-सहजता। उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि वह ओडिशा- छत्तीसगढ़ की सीमा पर आदिवासी बच्चों के लिए 'वन विद्यालय' संचालित करते हैं। कक्षा 8 तक चलने वाले उनके इस विद्यालय में वर्तमान में 125 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। पुरस्कार सम्मान स्वरूप मिलने वाली सभी तरह की धनराशियों को वह आदिवासी बच्चों की पढ़ाई पर लगा देते हैं। उनके इस सेवा कार्य में ओड़िशा के कुछ एनआरआई भी सहयोगी हैं। अपनी सहजता-सरलता और सेवा के संकल्प से ही उन्हें 'लोक कविरत्न' की उपाधि समाज ने दी है, सरकार ने नहीं।
 
ओड़िशा का पश्चिमी अंचल 'संबलपुरी' माना जाता है। इसमें ओड़िशा के 10 जिले समाहित हैं। बरगढ़ उनमें एक है। अपने घर- गांव में जीते जी इतना बड़ा सम्मान एक साहित्यकार को मिलते देखना आजकल के इस दौर में आपको अजूबा लग सकता है लेकिन यह सच 28-29 जून 2025 को हमारे सामने से गुजरा। अपने बीच की प्रतिभा को वर्ग, धर्म जाति से परे इतना सम्मान देना  संबलपुरी समाज से सीखा जा सकता है। हिंदी पट्टी तो वैसे भी जीते जी साहित्यकार-कलाकार को सम्मान देने में संकुचित है। या कहें बदनाम है। प्रसंगवश महाप्राण  सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को ही लें। जीते जी, उनके साहित्य को स्वीकृति और व्यक्तित्व को सम्मान कितना मिला? हम हिंदी वाले जानते ही हैं। बाकी के बारे में बताने-कहने-लिखने की जरूरत क्या? इति।
अन्य खास लोग लेख
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल