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विपक्षी दलों के CM के शामिल नहीं होने से क्या होगा असर

जनता जनार्दन संवाददाता , Jul 27, 2024, 12:15 pm IST
Keywords: Niti Aayog   मोदी सरकार   विपक्ष   केंद्र   नीति आयोग   
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विपक्षी दलों के CM के शामिल नहीं होने से क्या होगा असर बीते कुछ दिनों से 'नीति आयोग' को लेकर मचे घमासान के नीति आयोग की 9वीं अहम बैठक हो रही है. ये वही 'नीति आयोग' है जिसका नाम पहले 'योजना आयोग' होता था. पहले देश का विकास अंग्रेज करते थे. 1947 में हिंदुस्तान आजाद हुआ तब भारत के विकास की नींव रखने के दौरान पंचवर्षीय योजना का कॉन्सेप्ट आया. शुरुआती दौर में केंद्र सरकार अलग-अलग राज्य सरकारों से समन्वय करके अलग-अलग कामों के लिए रणनीति बनती थी. इसके बाद विकास कार्यों का फंड जारी होता था. देश के आम बजट में इसका प्रमुखता से जिक्र होता था. जिस विभाग का काम होता था उससे संबंधित केंद्रीय मंत्री उस काम पर नजर रखते थे.   

नीति आयोग की बैठक क्यों होती है. इससे पहले संक्षेप में बताते हैं कि आखिर नीति आयोग चीज क्या है? आखिर इसे क्यों बनाया गया इस पर रोशनी डालें तो नीति आयोग की स्थापना 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के कुछ महीनों बाद 2015 में हुई. इससे पहले देश के सकल और सतत विकास की परिकल्पना साकार करने के लिए 'योजना आयोग' का गठन 1950 में हुआ. जो उस समय सबसे बड़े नीति निर्धारक और स्टेक होल्डर के रूप में अपनी अहम भूमिका निभाता था. 

नीति आयोग राज्यों के तालमेल से देश के सामूहिक विकास का ढांचा तैयार करता है. अभी इसे बने 10 साल भी नहीं हुए थे कि बंगाल की सीएम ने इसे भंग करके पुराना वाला योजना आयोग अस्तित्व में लाने की मांग कर दी. शनिवार को PM Modi की अध्यक्षता में हो रही नीति आयोग की बैठक में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि और आयोग के पदाधिकारी मंथन कर रहे हैं. विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में केंद्र सरकार के मंत्री भी मौजूद हैं. इंडिया गठबंधन के 9 मुख्यमंत्री नीति आयोग के सदस्य हैं. उनमें से 6 ने केंद्र की सरकार पर बजट के बंदरबाट करने का आरोप लगाकर बायकॉट किया है. बाकी 3 में ममता बनर्जी और हेमंत सोरेन आए हैं, लेकिन उनकी दिलचस्पी अपने हिस्से का तगादा करने में है. वहीं केजरीवाल जेल में होने की वजह से दूर हैं.

 राज्यों के संबंध में नीति आयोग की अवधारणा का प्रमुख उद्देश्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना, सतत विकास
को बढ़ाना और समग्र भारत के समावेशी विकास को सुनिश्चित करना है. इससे पहले देश में 1950 में योजना आयोग बनाया गया था, जिसने 2014 तक लगातार 64 साल काम किया और इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया.

योजना आयोग का देश के विकास में अहम योगदान रहा. बीते 10 सालों से अब इन्हीं संकल्पों के साथ नीति आयोग अपना काम कर रहा है. योजना आयोग का मुख्य काम पंचवर्षीय योजना तैयार करके विकास का एजेंडा तैयार करने का था.

जमाना बदला तो चीजें बदलीं. जनरेशन अल्फा (Gen Alpha) यानी 2013 से 2024 तक पैदा हुई पीढ़ी ने तो पंचवर्षीय योजना का शायद नाम भी न सुना हो और उससे पहले की जेन Z (1997 से 2012 तक) वालों के जेहन में भी इसकी धुंधली यादें ही बची होंगी.

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हर साल नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक होती है. केंद्रीय सचिवालय की ओर से जारी एक आदेश के तहत इस काउंसिल की स्थापना की गई है. इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रशासक सदस्य हैं. आयोग अपनी बैठकें गवर्निंग काउंसिल के माध्यम से ही कराता है. यही मंच प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) के LG और अन्य अहम सदस्यों के बीच सतत परस्पर संवाद सुनिश्चित कराता है.

उस बैठक का मकसद राष्ट्रीय विकास के एजेंडे को लागू कराना होता है. नीति आयोग की बैठकों में राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और विकास कार्यों से जुड़ी सभी योजनाओं की विस्तार से चर्चा होती है. इस आयोग के काम-काज से जुड़ी बैठकें तिमाही में कम से कम एक बार आयोजित होती रहती हैं.

नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की पिछली यानी गवर्निंग काउंसिल की 8वीं मीटिंग 27 मई, 2023 को हुई थी. उसकी थीम 'विकसित भारत @ 2047: टीम इंडिया की भूमिका' थी. तब MSME, महिला सशक्तिकरण और देश के बुनियादी ढांचे और हेल्थ सेक्टर समेत कई अहम मुद्दों पर मंथन हुआ. जिसका लक्ष्य 2047 तक भारत के विकास के लिए एक रोडमैप बनाना था.

संघवाद की अवधारणा तभी सही मायने में फलीभूत होती है जब केंद्र और राज्य मिलकर काम करते हैं. सतत विकास का लक्ष्य पूरा करने के लिए केंद्र और राज्य की समान भागीदारी जरूरी है. उदाहरण के लिए नीति आयोग ग्रामीण स्तर पर योजनाएं तैयार करने के लिए अगर कोई सिस्टम बनाएगा तो राज्यों की ही अहम भूमिका होगी. ताकि उसमें जमीनी स्तर की भागीदारी सुनिश्चित होकर 100% आउटपुट निकल सके.

अब अगर इंडिविजुअल आइंडेंटिटी की बात करें तो नीति आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के लिए महज एक कंसल्टेंसी फर्म जैसा है. लिहाजा विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इसकी बैठक में शामिल होने के लिए बाध्यकारी नहीं हैं. नीति आयोग बनाम योजना आयोग की बहस एक पॉलिटिकल मसला है. जिसका लब्बोलुआब बस इतना भर है कि किसी के आने या फिर न आने से किसी की सेहत पर कुछ असर नहीं पड़ेगा. दुनिया सतत विकास के एजेंडे पर चलती है. ऐसे में अगर विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्री ऐसी बैठकों का बायकॉट करेंगे तो इसे एक अच्छी परंपरा नहीं माना जाएगा.

नीति आयोग गवर्निंग काउंसिल के अलावा राज्य सहायता मिशन भी चलाता है. जिसका मकसद राज्यों के साथ स्ट्रक्चरल एसोसिएशन को बढ़ावा देना है. ये मिशन राज्यों को उनके टारगेट पूरा करने में मददगार साबित होता है. नीति आयोग राज्यों की योजनाओं और नवाचार की निगरानी और मूल्यांकन भी करता है. यानी ये केंद्र और राज्यों के बीच सेतु का काम भी करता है. यह मंच अंतर-क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान निकालने की दिशा में काम करता है. आयोग राज्यों की योनजाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए आधुनिक तकनीकी अपग्रेडेशन भी मुहैया कराता है और विभिन्न क्षेत्रों में राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करके उनकी रैंकिंग सुधारने में मदद करता है.

देश में लंबे अंतराल के बाद जब 2014 में पूर्ण बहुमत वाली सरकार आई तो काम-काज के पुराने तौर-तरीके तेजी से बदले. अंग्रेजों के जमाने के कानून और इंसपेक्टर राज का खात्म हुआ तो सिंगल विंडो सिस्टम से काम होने वाली अवधारणा को बल मिला. सरकार की योजनाओं का डिजिटलाइजेशन होने से नीति आयोग से जुड़े कामों में भी पारदर्शिता आई.

मोदी सरकार ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसी चीजों को समय की मांग और नई क्रांति बताया. वहीं आधी सदी से ज्यादा समय तक सत्ता सुख भोग चुके दलों (विपक्ष) ने केंद्र की कवायदों को 'नई बोतल में पुरानी शराब' जैसा टैग देकर आलोचना की. नीति आयोग को भंग करने की मांग को और योजना आयोग को बहाल करने की मांग को इसी से जोड़ कर देखा जा सकता है.

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