भारत का 1.30 लाख करोड़ वाला प्लान क्या है, जिससे समंदर पर राज करेगा देश

जनता जनार्दन संवाददाता , Jul 07, 2025, 16:47 pm IST
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भारत का 1.30 लाख करोड़ वाला प्लान क्या है, जिससे समंदर पर राज करेगा देश

नई दिल्लीः भारत, जो पहले ही दुनिया का एक बड़ा इंपोर्टर बन चुका है, अब एक्सपोर्टर बनने की दिशा में भी तेजी से कदम बढ़ा रहा है. अगर किसी देश को वैश्विक व्यापार में शीर्ष स्थान हासिल करना है, तो उसे अपनी समुद्री ताकत को बढ़ाना होगा. इस दिशा में भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है.

समंदर के रास्ते व्यापार में भारत का भविष्य

भारत के व्यापारिक विकास के लिए समुद्र का रास्ता एक महत्वपूर्ण पहलू बन चुका है. जैसे-जैसे देश के व्यापार का दायरा बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे आवश्यकता है एक मजबूत शिपिंग सिस्टम की. इस दिशा में सरकार ने "डॉमेस्टिक शिप्स" को बढ़ावा देने की योजना बनाई है. हालांकि, मौजूदा योजनाएं अपेक्षाकृत कमजोर साबित हो रही हैं, जिस कारण भारत को मरीन ट्रेड का मेन प्लेयर बनने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

सरकार की नई योजना और 200 शिप्स की डिमांड

भारत सरकार अब समंदर में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए 200 नए शिप्स का निर्माण करने की योजना पर काम कर रही है. इन जहाजों की कीमत लगभग 1.30 लाख करोड़ रुपये बताई जा रही है. पेट्रोलियम, स्टील और उर्वरक मंत्रालयों द्वारा इन जहाजों की डिमांड सबसे ज्यादा आई है. मंत्रालयों का कहना है कि ये शिप्स भारतीय शिपयार्ड में बनाए जाएंगे और इनका स्वामित्व सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का होगा.

मौजूदा योजना का विफल होना

भारत सरकार ने पहले भी भारतीय फ्लैग्ड जहाजों को बढ़ावा देने के लिए एक योजना शुरू की थी, लेकिन यह योजना अब तक अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई है. 1,624 करोड़ रुपये की इस योजना के तहत, भारत के आयात में इंडियन फ्लैग्ड जहाजों की हिस्सेदारी लगभग 8% पर बनी हुई है, जबकि यह आंकड़ा 2021 में योजना शुरू होने के बाद से कोई खास बदलाव नहीं ला सका है.

क्यों असफल हो गई मौजूदा योजना?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस योजना की समीक्षा की आवश्यकता महसूस की जा रही है. अब तक सिर्फ 330 करोड़ रुपये का वितरण हुआ है, और इंडियन फ्लैग्ड जहाजों की हिस्सेदारी में कोई बड़ी वृद्धि नहीं हो पाई. योजना की शुरुआत वित्त वर्ष 2022 के बजट से हुई थी, और जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे मंजूरी दी थी. योजना के तहत, भारतीय शिपिंग कंपनियों को 15% तक की सब्सिडी दी जानी थी, ताकि वे ग्लोबल टेंडर्स में भाग ले सकें.

70 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा का खर्च

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय शिप्स की हिस्सेदारी गिरकर 7.8% तक आ चुकी है, जबकि 1987-88 में यह 40.7% हुआ करती थी. इस कमी के कारण, भारत को विदेशी शिपिंग लाइनों पर लगभग 70 बिलियन डॉलर का वार्षिक खर्च करना पड़ता है. हालांकि, भारतीय बंदरगाहों ने पिछले वर्ष में 1540 मिलियन मीट्रिक टन का कार्गो हैंडल किया है, जो कि पिछले वर्ष से 7.5% अधिक है.

चुनौतियों का सामना

सरकारी अनुमानों के मुताबिक, भारतीय फ्लैग्ड जहाजों का ऑपरेशनल खर्च 20% अधिक होता है, क्योंकि भारतीय नाविकों को काम पर रखने के साथ-साथ भारतीय कानूनों और कराधान का पालन करना पड़ता है. इसके अलावा, भारतीय शिपिंग कंपनियों को उच्च दरों पर डेट फंड्स मिलने और भारतीय शिप्स पर करों के बोझ के कारण भी उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर पड़ रहा है.

इंडियन नेशनल शिपऑनर्स एसोसिएशन की चिंता

इंडियन नेशनल शिपऑनर्स एसोसिएशन के सीईओ अनिल देवली ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि भारतीय जहाजों पर बढ़ते शुल्क और करों के कारण उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी आई है. उद्योग के लोग इन शुल्कों और करों में कमी करने की मांग कर रहे हैं, ताकि भारतीय शिपिंग कंपनियां विदेशी कंपनियों के मुकाबले बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकें.

भारत का समुद्री व्यापार में भविष्य

इस समय, सरकार द्वारा की जा रही नई योजना से उम्मीद की जा रही है कि भारतीय शिपिंग उद्योग को मजबूती मिलेगी और भारतीय शिप्स की हिस्सेदारी में वृद्धि होगी. भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था और समंदर के रास्ते बढ़ते व्यापार को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि सरकार शिपिंग क्षेत्र को ज्यादा प्रोत्साहन दे और चुनौतियों का समाधान करे, ताकि भारतीय व्यापार दुनिया के बड़े एक्सपोर्टर्स में शुमार हो सके.

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