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PM मोदी की 5 देशों की विदेश यात्रा, क्यों हो रही त्रिनिदाद एंड टोबैगो की संसद ?
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Jul 02, 2025, 10:34 am IST
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![]() प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही एक ऐतिहासिक विदेश दौरे पर निकलने वाले हैं, जिसमें वह 8 दिन में 5 देशों का दौरा करेंगे. इस यात्रा का एक खास पड़ाव होगा कैरेबियाई देश त्रिनिदाद एंड टोबैगो, जहां पीएम मोदी उस संसद में भाषण देंगे, जिसमें एक कुर्सी पिछले कुछ दिनों से चर्चा का विषय बनी हुई है. ये कोई आम कुर्सी नहीं, बल्कि भारत की ओर से गिफ्ट की गई एक ऐतिहासिक कुर्सी है, जो भारत और त्रिनिदाद के रिश्तों की गर्मजोशी और साझा लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रतीक मानी जाती है. एक कुर्सी... और उससे जुड़ी एक विरासत त्रिनिदाद एंड टोबैगो की संसद में स्पीकर की जिस कुर्सी पर कार्यवाही चलाई जाती है, वह भारत ने 9 फरवरी 1968 को इस देश को तोहफे में दी थी. लकड़ी की बनी ये कुर्सी केवल एक फर्नीचर का टुकड़ा नहीं, बल्कि भारत-त्रिनिदाद की दोस्ती और लोकतांत्रिक आदर्शों की साझी विरासत का प्रतीक है. आज, करीब 57 साल बाद, जब पीएम मोदी उस संसद में कदम रखेंगे, तो उसी ऐतिहासिक कुर्सी के सामने खड़े होकर वह अपना संबोधन देंगे. क्यों खास है यह दौरा? यह दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि 25 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की त्रिनिदाद एंड टोबैगो की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा होगी. इससे पहले 1999 में किसी पीएम ने इस देश का दौरा किया था. पीएम मोदी को इस यात्रा का न्योता त्रिनिदाद एंड टोबैगो की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने दिया है. गौरतलब है कि इस देश की राजनीति में भारतीय मूल के लोग काफी प्रभावशाली हैं और कुल आबादी का लगभग 42% हिस्सा भारतीय मूल के लोगों का है. कैसे बनी ये ऐतिहासिक कुर्सी? कुर्सी को भारत में विशिष्ट भारतीय शैली और नक्काशी के साथ बनाया गया था. इसे तैयार करने में करीब छह साल का वक्त लग गया था क्योंकि इसे तैयार कर रहे दो कारीगरों में से एक बीमार हो गया था. इसका असर निर्माण प्रक्रिया पर पड़ा और आखिरकार यह 1968 में त्रिनिदाद को सौंप दी गई. इस कार्यक्रम का आयोजन संसद में दोपहर 1:37 बजे हुआ, और जब इसे सौंपा गया तो संसद में जोरदार तालियों के साथ इसका स्वागत हुआ. उस समय संसद के स्पीकर थे अर्नोल्ड थॉमसोस और भारत की ओर से इसे सौंपा था तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त मुनि लाल ने. रिश्तों की जड़ें कहां हैं? भारत और त्रिनिदाद एंड टोबैगो के बीच संबंध सिर्फ कूटनीतिक नहीं हैं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और खून-पसीने की साझी विरासत से भी जुड़े हैं. 30 मई 1845 को पहली बार 225 भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को लेकर एक जहाज त्रिनिदाद के तट पर पहुंचा था. इसके बाद भी यह सिलसिला जारी रहा और आज भारतीय मूल के लोग इस देश की राजनीति, समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं. एक और देश, एक और कुर्सी दिलचस्प बात यह है कि भारत ने सिर्फ त्रिनिदाद को ही नहीं, बल्कि सूरीनाम की संसद को भी ऐसी ही एक स्पीकर कुर्सी तोहफे में दी थी. यह परंपरा दर्शाती है कि भारत सिर्फ सहयोग ही नहीं करता, बल्कि संविधान और लोकतंत्र जैसे मूल्यों को साझा कर उन्हें मजबूती भी देता है. |
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