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छठ महापर्व में खरना का क्या है विशेष महत्व? जानें पूजा विधि की पूरी जानकारी

जनता जनार्दन संवाददाता , Oct 23, 2025, 16:30 pm IST
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छठ महापर्व में खरना का क्या है विशेष महत्व? जानें पूजा विधि की पूरी जानकारी

दिवाली के रंगीन उत्सव के बाद, अब उत्तर भारत और खासकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ पूजा की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई हैं. चार दिवसीय यह महापर्व न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह परिवार की खुशहाली, संतान की लंबी उम्र और सफलता की कामना से जुड़ा हुआ है. छठ पूजा भगवान सूर्य और छठी मैया को अर्पित होती है, जो जीवन में उर्जा, शक्ति और सौभाग्य का स्त्रोत माने जाते हैं.

छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इसका समापन होता है. इसके बीच के दिनों में विशेष पूजा-अर्चना और व्रत रखे जाते हैं, जिनमें ‘खरना’ का दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है.

छठ पूजा 2025 की तिथियाँ और कार्यक्रम

इस वर्ष छठ पूजा 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर तक चलेगी. पहला दिन नहाय-खाय होगा, जिसमें व्रती स्वच्छता और पवित्रता के साथ व्रत की तैयारी करते हैं. दूसरे दिन यानी 26 अक्टूबर को खरना किया जाएगा, जो व्रत का अहम हिस्सा है. तीसरे दिन सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और छठी मैया की पूजा होगी. अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस महापर्व का समापन किया जाएगा.

खरना: छठ पूजा का विशेष दिन

खरना का दिन व्रती महिलाओं के लिए विशेष होता है. इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर पीतल के बर्तन में गुड़, चावल और दूध से खीर बनाई जाती है. इसके साथ गेहूं के आटे से बनी पूड़ी या ठेकुआ भी बनता है. यह प्रसाद छठी मैया को अर्पित किया जाता है और फिर भक्तों द्वारा ग्रहण किया जाता है. खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है, जो भक्तों की आस्था और संयम की परीक्षा होता है.

खरना का आध्यात्मिक महत्व

खरना’ शब्द का अर्थ है शुद्धता. इस दिन व्रती को अपने मन, वचन और कर्म में पूर्ण पवित्रता बनाए रखनी होती है. माना जाता है कि खरना के दिन ही छठी मैया घर में प्रवेश करती हैं और इस दिन की पूजा से भगवान सूर्य और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह दिन भक्ति, समर्पण और आत्म-संयम का प्रतीक है, जो व्रती को आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है.

छठ पूजा न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह जीवन में अनुशासन, स्वच्छता और श्रद्धा का भी संदेश देती है. इस महापर्व के दौरान भक्तगण अपने तन-मन को शुद्ध करते हुए प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं और अपने जीवन में सुख-शांति एवं समृद्धि की कामना करते हैं.

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