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भारत बड़ी जिम्मेदारियों के लिए तैयार, एस जयशंकर के भाषण की 10 खास बातें

जनता जनार्दन संवाददाता , Sep 28, 2025, 16:44 pm IST
Keywords: संयुक्त राष्ट्र महासभा    UNGA 2025   संयुक्त राष्ट्र    एस. जयशंकर   
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भारत बड़ी जिम्मेदारियों के लिए तैयार, एस जयशंकर के भाषण की 10 खास बातें

28 सितंबर 2025 को न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक स्पष्ट, मजबूत और विचारशील भाषण दिया. उनके संबोधन ने न केवल भारत की भूमिका को रेखांकित किया, बल्कि संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्था की संरचना और कार्यप्रणाली में सुधार की तत्काल आवश्यकता पर भी गंभीर सवाल उठाए.

उन्होंने बदलती विश्व व्यवस्था, संघर्षों की बढ़ती संख्या, जलवायु संकट, वैश्विक असमानता, आतंकवाद, और संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता जैसे अहम विषयों को उठाया. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अब केवल "भागीदार" नहीं, बल्कि "नेतृत्वकर्ता" की भूमिका में आने को तैयार है.

आइए, उनके भाषण की 10 महत्वपूर्ण बातों पर क्रमवार नजर डालते हैं:

1. संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता खो रहा है

एस. जयशंकर ने कहा कि आज की दुनिया जिन बहुआयामी संकटों से जूझ रही है, उनके समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र को पूरी तरह पुनर्गठित और अद्यतन करने की आवश्यकता है. उन्होंने स्पष्ट कहा, "यह संगठन आठ दशकों पहले की परिस्थितियों के अनुरूप बना था. लेकिन अब वैश्विक शक्ति संतुलन, चुनौतियाँ और प्राथमिकताएँ पूरी तरह बदल चुकी हैं."

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की वर्तमान संरचना को अन्यायपूर्ण और सीमित बताया.

भारत की ओर से यह साफ संदेश गया कि संयुक्त राष्ट्र का विस्तार, विशेषकर स्थायी और अस्थायी सदस्यता में विविधता शामिल करना, अब वक्त की मांग है.

2. भारत वैश्विक ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार है

जयशंकर ने दो टूक कहा कि भारत अब विश्व मंच पर बड़ी भूमिका निभाने को तैयार है:

  • विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश.
  • विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था.
  • शांति अभियानों, मानवीय सहायता और सतत विकास में अग्रणी भागीदारी.
  • भारत न केवल अपने लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक स्थायी और जिम्मेदार साझेदार के रूप में खड़ा है.

3. वैश्विक संघर्षों में UN की निष्क्रियता चिंताजनक

उन्होंने कहा कि:

  • यूक्रेन युद्ध और गाजा-पट्टी में हिंसा जैसे संघर्ष यह दर्शाते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है.
  • आज दुनिया को एक ऐसे मंच की जरूरत है जो तेज़, निष्पक्ष और प्रभावी प्रतिक्रिया दे सके और UN इस कसौटी पर खरा नहीं उतर पा रहा है.

4. SDGs के लक्ष्य से हम काफी पीछे

जयशंकर ने कहा कि:

  • 2030 तक हासिल किए जाने वाले सतत विकास लक्ष्य (SDGs) की प्रगति बहुत धीमी और असंतुलित है.
  • विशेष रूप से गरीब और विकासशील देशों को संसाधनों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है.
  • उन्होंने अमीर देशों से अपील की कि वे केवल घोषणाएं न करें, बल्कि वित्तीय और तकनीकी समर्थन प्रदान करें.

5. जलवायु परिवर्तन पर दोहरा रवैया अस्वीकार्य

  • उन्होंने कहा, "जलवायु संकट पर बार-बार वादे तो किए जाते हैं, लेकिन ज़मीन पर कार्रवाई कम होती है. यह स्थिति अब और नहीं चल सकती."
  • विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी, फंडिंग और लचीलापन की ज़रूरत है.
  • जलवायु न्याय तभी संभव है जब अमीर देश अपने ऐतिहासिक योगदान की जिम्मेदारी लें.

6. महामारी में दिखा वैश्विक भेदभाव

कोविड-19 महामारी के दौरान हुई वैक्सीन असमानता, यात्रा प्रतिबंध, और स्वास्थ्य संसाधनों के वितरण में भेदभाव का उल्लेख करते हुए जयशंकर ने कहा कि:

  • इस वैश्विक संकट में विकसित देशों ने सबसे पहले खुद को सुरक्षित किया, जबकि विकासशील देश पीछे छूटते रहे.
  • इससे यह भी सिद्ध हुआ कि वैश्विक सहयोग की बातें अक्सर सिर्फ कागज़ों तक सीमित होती हैं.

7. आतंकवाद पर भारत की दो टूक नीति

पाकिस्तान का नाम लिए बिना जयशंकर ने आतंकवाद पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा:

  • "भारत दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है, और उसका पड़ोसी देश लंबे समय से वैश्विक आतंकवाद का प्रमुख स्रोत बना हुआ है."
  • उन्होंने अप्रैल 2025 में पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों की हत्या का उदाहरण दिया.
  • भारत ने हमेशा आतंक के खिलाफ कार्रवाई और अपने नागरिकों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है.
  • "भारत आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करता, हम इसे हर स्तर पर समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

8. व्यापार और आपूर्ति शृंखला में असंतुलन

जयशंकर ने व्यापार के क्षेत्र में बढ़ती गैर-बाजार प्रथाओं, टैरिफ अस्थिरता और विकासशील देशों के साथ भेदभाव पर चिंता जताई.

  • उन्होंने कहा, "अब समय है कि हम समान नियम, पारदर्शिता और निष्पक्षता की ओर लौटें."
  • जोखिम कम करना (De-risking) और डिकप्लिंग जैसे शब्दों के पीछे वास्तविक आर्थिक एजेंडा छिपा हुआ है.

9. बहुलवाद और आपसी सम्मान पर बल

जयशंकर ने कहा कि वैश्विक समरसता के लिए सांस्कृतिक विविधता, इतिहास और परंपराओं का सम्मान ज़रूरी है.

जयशंकर ने कहा- संयुक्त राष्ट्र में सभी सदस्य एक समान संप्रभु हैं, यह कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि वास्तविकता है.

उन्होंने यह भी कहा कि:

  • अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में राजनीतिक दबाव, आर्थिक प्रतिबंध, और दोहरे मानदंड अब बंद होने चाहिए.
  • विश्व में सह-अस्तित्व को तभी बढ़ावा मिलेगा जब सभी देश एक-दूसरे के मत और परंपरा का सम्मान करेंगे.

10. आत्मनिर्भरता, आत्मरक्षा और आत्मविश्वास

एस. जयशंकर ने भारत के विकास और दृष्टिकोण को तीन स्तंभों में प्रस्तुत किया:

आत्मनिर्भरता (Self-Reliance):

भारत में आज मैन्युफैक्चरिंग, फार्मा, स्पेस, डिजिटल टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्र में जबरदस्त प्रगति हुई है.

मेक इन इंडिया’ का लाभ सिर्फ भारत को नहीं, बल्कि पूरे वैश्विक दक्षिण (Global South) को मिल रहा है.

आत्मरक्षा (Self-Defense):

भारत की नीति है कि वह अपने नागरिकों, सीमाओं और हितों की सुरक्षा के लिए कभी भी पीछे नहीं हटेगा.

आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस भारत की स्थायी नीति है.

आत्मविश्वास (Self-Confidence):

भारत आज जानता है कि वह कौन है, और वह क्या बन सकता है.

एक सभ्यता-संपन्न राष्ट्र, एक वैश्विक आर्थिक शक्ति, और शांति का समर्थक, भारत विश्व व्यवस्था को स्थिरता, न्याय और संतुलन देने की स्थिति में है.

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