MY समीकरण का तोड़ निकाल Nitish Kumar कैसे बने सत्ता के अजातशत्रु?

जनता जनार्दन संवाददाता , Aug 23, 2025, 17:08 pm IST
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MY समीकरण का तोड़ निकाल Nitish Kumar कैसे बने सत्ता के अजातशत्रु?

बिहार की राजनीति में 2025 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद खास होने वाला है. मुद्दे भले ही विकास, रोजगार और कानून-व्यवस्था के हों, लेकिन चुनावी गणित का असली खेल जातीय आधार पर ही खेला जाएगा. और इस बार सत्ता की चाबी किसके हाथ लगेगी, यह तय करेंगे अतिपिछड़ा वर्ग, जिनकी आबादी सबसे ज़्यादा है.

2023 में करवाए गए जातीय सर्वे ने न सिर्फ आंकड़े सामने रखे, बल्कि राजनीतिक दलों की रणनीतियों को भी झकझोर कर रख दिया. नीतीश कुमार ने इसे महज़ एक सर्वे नहीं, बल्कि राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक के तौर पर इस्तेमाल किया, जिससे उन्हें एक बार फिर अतिपिछड़ों के असली नेता के रूप में खुद को स्थापित करने का मौका मिला.

जाति: राजनीति का अदृश्य लेकिन निर्णायक कार्ड

बिहार की राजनीति में चाहे जितनी बातें विकास और सुशासन की हों, जाति की हकीकत हर कदम पर सामने आती है. नेता किस वर्ग से आते हैं, किसे टिकट मिलता है, किसके लिए रैलियां होती हैं, सब कुछ जाति के गणित से तय होता है.

लालू यादव और नीतीश कुमार की राहें भी 90 के दशक में अतिपिछड़ा बनाम यादव के मुद्दे पर ही अलग हुई थीं. 1994 में जब लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर द्वारा शुरू किए गए "कोटा के अंदर कोटा" सिस्टम को खत्म करने की कोशिश की, तब नीतीश कुमार ने इसका पुरज़ोर विरोध किया और यही विरोध आगे चलकर उनकी अलग राजनीतिक पहचान की नींव बन गया.

अतिपिछड़ों का उभार और नीतीश की भूमिका

जब सवर्ण राजनीति हाशिए पर चली गई, तो पिछड़ी जातियों के बीच नेतृत्व को लेकर प्रतिस्पर्धा शुरू हुई. अतिपिछड़ा वर्ग, जिसकी संख्या यादवों से भी ज़्यादा है, एक नई ताकत के रूप में उभरा. नीतीश कुमार ने इस वर्ग को न सिर्फ आवाज़ दी, बल्कि उनकी हकदारी की लड़ाई को भी सियासी एजेंडे में शामिल किया.

2005 में नीतीश कुमार सत्ता में आए और इसके बाद से लगातार देखा गया कि अतिपिछड़े वोटरों का झुकाव उन्हीं की ओर रहा. 2019 और 2020 के चुनावी आंकड़े भी यही संकेत देते हैं. यहां तक कि जब 2020 में JDU को सिर्फ 43 सीटें मिलीं, तब भी उनमें से 12 विधायक अतिपिछड़े वर्ग से थे.

 नीतीश के गढ़ में सेंधमारी

हालांकि, अब ये स्पष्ट हो गया है कि राजद भी नीतीश के परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगाने की पूरी तैयारी में है. तेजस्वी यादव ने रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, जो खुद एक पिछड़े वर्ग से आते हैं.

इसके साथ ही “अतिपिछड़ा जगाओ, तेजस्वी सरकार बनाओ” जैसे नारों के साथ रैलियां कर राजद इस वर्ग में अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है. खासकर तेली समाज जैसे प्रभावशाली जातियों को जोड़ने के लिए विशेष रैलियां आयोजित की गईं.

नीतीश का ट्रम्प कार्ड?

नीतीश कुमार का जातीय सर्वे सिर्फ एक प्रशासनिक कवायद नहीं थी, बल्कि एक सोच-समझकर चलाया गया राजनीतिक कदम भी था. इस सर्वे के जरिए यह तथ्य सामने आया कि बिहार में अतिपिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01% है, यानी सबसे ज़्यादा.

इस जानकारी ने राजनीतिक विमर्श को बदल कर रख दिया. नीतीश कुमार ने 2025 से पहले "अतिपिछड़ा आयोग" का गठन कर यह साफ कर दिया कि वे इस वर्ग के साथ अपनी नजदीकी को और गहरा करना चाहते हैं.

क्या 2025 में अतिपिछड़े ही बनेंगे ‘किंगमेकर’?

बिहार में 112 जातियों वाला अतिपिछड़ा वर्ग अब न सिर्फ मतदान संख्या में सबसे आगे है, बल्कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्र, नेतृत्व चयन और सीट वितरण में भी निर्णायक भूमिका निभाने वाला है.

नीतीश कुमार के लिए यह वर्ग अब भी सबसे भरोसेमंद दिख रहा है, लेकिन राजद की ओर से जारी सियासी हमलों ने 2025 का मुकाबला रोचक बना दिया है. अब देखना यह है कि क्या नीतीश अपनी साख बचा पाएंगे या राजद इस बार उनके गढ़ में सेंध लगाने में सफल हो जाएगा?

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