पश्चिम ओडिशा के पारंपरिक संगीत-नृत्य को बचाने की एक टंकिया पहल 

गौरव अवस्थी , Jul 06, 2025, 19:55 pm IST
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पश्चिम ओडिशा के पारंपरिक संगीत-नृत्य को बचाने की एक टंकिया पहल 
नई दिल्ली: आज एक ऐसे संगीतज्ञ की कहानी सुनिए जो संबलपुर (पश्चिम ओडिशा) के आदिवासी समाज के बच्चे-बच्चियों को सिर्फ एक रुपए में शिक्षा देकर पारंपरिक संगीत नृत्य और वाद्य यंत्रों को बचाने की एक अनोखी मुहिम पिछले 2 साल से चल रहे हैं। 
 
इन सज्जन का नाम है सुरेंद्र साहू। चंडीगढ़ प्राचीन कला केंद्र से संबंध नटराज संगीत विद्यालय पदमपुर से संगीत विशारद की डिग्री हासिल करने वाले सुरेंद्र जी से भी मुलाकात का सुयोग अभिमन्यु साहित्य संसद-घेस की ओर से बरगढ़-ओडिशा में 28-29 जून 2025 को संपन्न हुए पद्मश्री हालदार नाग नेशनल सेमिनार में ही मिला। बर्लिन यूनिवर्सिटी की एक छात्र उनके अंदर में शोध भी कर रही है। हैदराबाद की ऑक्सन  यूनिवर्सिटी से भी उन्हें संरक्षण प्राप्त है। 
 
बर्लिन यूनिवर्सिटी से 'मार्जिनलाइज म्यूजिक' पर शोध करने वाले सुरेंद्र साहू केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय से फैलोशिप प्राप्त करके पश्चिम ओडिशा के कोसल क्षेत्र के 'एनडेंजर्ड म्यूजिक' पर काम कर कर रहे हैं। सुरेंद्र साहू बरगढ़ से 80 किलोमीटर दूर छोटे से कस्बे पदमपुर में अपना संगीत विद्यालय चलाकर आदिवासी बच्चे-बच्चियों को कला में दक्ष कर रहे हैं। उनका कहना है कि ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में सभी पारंपरिक संगीत-नृत्य और वाद्य खतरे में है और इन खतरों को कम करके लोक संगीत का पुनरुद्धार उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। संगीत ही उनकी आत्मा है। संगीत उनके जीवन का पहला और अंतिम लक्ष्य है। संगीत के क्षेत्र में चार दशक से काम कर रहे सुरेंद्र साहू 15 साल तक गांव की नाटक पार्टी में भी काम कर चुके हैं।  
 
साहू जी बताते हैं कि रिसर्च के दौरान पश्चिम ओडिशा के गांव-गांव घूमने के दौरान ही उन्हें पारंपरिक संगीत नृत्य और वाद्य को सुरक्षित रखने का आईडिया मिला। वह अपने स्कूल के बच्चों को पश्चिम ओडिशा की संस्कृति से परिचित कराते हैं परफॉर्मेंस से ज्यादा थ्योरिकल पर ध्यान देते हैं। उनके विद्यालय में 40 से अधिक बच्चे संगीत, नृत्य और वाद्य सीखने आते हैं। इन बच्चों से वह केवल एक रुपए फीस के रूप में लेकर पारंपरिक संगीत नृत्य और वाद्य यंत्र को बचाने का अपना संकल्प पूरा कर रहे हैं। चार आदिवासी बच्चिया तो उनके घर में ही आश्रय पाए हैं और उनके रहने-खाने की फ्री में व्यवस्था सुरेंद्र जी ही करते हैं।
 
 सुरेंद्र जी के स्कूल के कई बच्चों को केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय से स्कॉलरशिप मिल चुकी है पिछले साल भी एक बच्ची और एक बच्चे को स्कॉलरशिप मिली थी उसके पहले दो बच्चियां स्कॉलरशिप पाने में सफल रही थीं। उनका कहना है कि इन आदिवासी गरीब बच्चों में प्रतिभा पर्याप्त है लेकिन आर्थिक अभाव आड़े आ जाते हैं। हलधर नाग नेशनल सेमिनार में संगीत संध्या में पदमपुर एकटंकिया संगीत विद्यालय के बच्चों ने ही सांस्कृतिक कार्यक्रम और नृत्य नाटिकाएं प्रस्तुत करके सबका दिल जीता। बच्चों की इन प्रस्तुतियों ने हमें भी प्रभावित किया और उनके स्रोत के रूप में सुरेंद्र जी सामने आए। एक टंकिया का 'अर्थ' समझने के बाद हमारा दिल सुरेंद्र जी का मुरीद हो गया। 
 
सुरेंद्र जी बताते हैं कि हलधर नाग संगीत संध्या में प्रस्तुति के बहाने हमारे स्कूल की इन बच्चियों ने पहली बार बरगढ़ शहर देखा। उनका कहना है कि अगर अवसर मिले तो आदिवासियों के यह बच्चे नई पहचान के हकदार हो जाए और संबलपुर के संगीत-नृत्य की खूबियों की खुशबू सारे देश में फैल जाए। उन्हें दरकार है ऐसे दिलदार व्यक्तियों और संस्थाओं की जो इन बच्चों को स्टेट और इंटर स्टेट स्तर पर प्रतिभा प्रदर्शन के अवसर सुलभ कर पाए। संगीत प्रेमियों को लोक परंपराओं के संरक्षण और प्रकृति के लिए सुरेंद्र साहू की मनोकामना से जरूर जुड़ना चाहिए।
 
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