देवी साधना अधूरी है कन्या पूजन बिना

जनता जनार्दन डेस्क , Apr 04, 2017, 11:12 am IST
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देवी साधना अधूरी है कन्या पूजन बिना देवी भागवत, देवी पुराण और काली तंत्र में कहा गया है कि पूर्ण मुहूर्त और नवरात्रि की महानवमी तिथि को कन्या पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होती है। नवरात्रि में आदिशक्ति जगदंबा के नौ स्वरूपों के पूजन के उपरांत यदि कन्या पूजन न किया जाए तो साधना अधूरी मानी जाती है।

स्मरण रहे वस्त्र, आभूषण और भोजनादि से प्रसन्न कन्या एक, दो और तीन शक्ति के बीज मंत्रों ‘ऐं ह्रीं क्लीं’ की सिद्धि का फल देने वाली त्रिशक्ति होती है। देवी पुराण में कन्या पूजन सबसे बड़ी तपस्या बताई गई है।

कुमारी कन्याएं साक्षात् देवी का स्वरूप हैं, अत: संपूर्ण शुभ कर्मों के फल को प्राप्त करने के लिए कुमारी का पूजन किया जाता है। नवरात्रों और नवमी के दिन कन्या भोज का प्रावधान है। शास्त्रों के अनुसार नौ कन्याओं के साथ श्री गणेश, श्री बटुक भैरव को भोजन कराने से समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं। कन्या पूजन में सर्वप्रथम विघ्नहर्ता श्री गणेश का पूजन होता है। गणेश जी का पाद प्रक्षालन करें, उन्हें तिलक व मौली अर्पित करें और इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘ऊं गं गणपतये नम:’। ऐसी मान्यता है कि कन्या पूजन से दुख और दरिद्रता नष्ट हो जाती है।

दो वर्ष की ‘कौमारी’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री कौमारी पूज्यामि नम:’ मंत्र से करें। तीन वर्ष की ‘त्रिमूर्ति’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री त्रिमूर्ति पूज्यामि नम:’ मंत्र से, चार वर्ष की ‘कल्याणी’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री कल्याणी पूज्यामि नम:’ मंत्र से, पांच वर्ष की ‘रोहिणी’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री रोहिणी पूज्यामि नम:’ मंत्र से, छह वर्ष की ‘कालिका’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री कालिका पूज्यामि नम:’ मंत्र से, सात वर्ष की ‘चंडिका’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री चंडिका पूज्यामि नम:’ मंत्र से, आठ वर्ष की ‘शाम्भवी’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री शाम्भवी पूज्यामि नम:’ मंत्र से, नौ वर्ष की ‘दुर्गा’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री दुर्गाय पूज्यामि नम:’ मंत्र से, दस वर्ष की ‘सुभद्रा’ कन्या का पूजन ‘ऊं एं ह्रीं क्लीं श्री सुभद्रा पूज्यामि नम:’ मंत्र से करें। अंत में बटुक भैरव का पूजन ‘ऊं बं बटुकाय नम:’ मंत्र से करें। इनके पूजन से घर में अनिष्टकारी शक्तियां नष्ट होती हैं.

अपनी आर्थिक शक्ति के अनुसार एक, दो या अधिक कन्याओं की पूजा का विधान है। एक कन्या का पूजन भी उतना ही फलदायी है, जितना अधिक कन्याओं का पूजन। कन्या पूजन में किसी भी वर्ण और जाति की कन्या को आमंत्रित किया जा सकता है। 10 साल से कम उम्र के बालक भी आमंत्रित किए जा सकते हैं।
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