कमल पृथी ने की किस्सागोई संस्कृति को जिंदा करने की पहल
भावना अकेला ,
Jul 20, 2015, 17:42 pm IST
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नई दिल्लीः सपेरों और मदारियों का गलियों में आना और अपनी कहानियों के जरिए बच्चों सहित हर उम्र के लोगों का मनोरंजन करना बीते जमाने की बात हो गई है। लेकिन लोकप्रिय रंगकर्मी कमल पृथी ने इस प्रौद्योगिकी युग में कहानी सुनाने का अपने तरह का एक अनूठा अभियान शुरू किया है।
हरा कुर्ता-पाजामा और पगड़ी में यह 33 वर्षीय काबुलीवाला देशभर में बच्चों का चहेता बना हुआ है। कमल पृथी एक आईटी पेशेवर रह चुके हैं और अभी वह जर्मन, हिंदी और उर्दू में कहानियां सुनाते हैं और देश में उस दौर को एक बार फिर चलन में लाने के लिए प्रयासरत हैं। पृथी ने आईएएनएस को बताया, "मोबाइल फोन और अन्य आधुनिक उपकरणों के दौर में अब दादा और नाना अपने पोते-पोतियों को कहानियां नहीं सुनाते हैं।" उन्होंने कहा कि बंदरों के मनोरंजक कार्यक्रम और एक्रोबैट अब देश में बंद हो चले हैं। 21वीं सदी के बच्चे उतनी कहानियां नहीं सुन पाए हैं, जितनी उनके मां-बाप ने अपने परिजनों से सुनी थी। कहानियों के जरिए ज्ञान की भूख को संतुष्ट किया जा सकता है। पृथी ने कहा, "मैं आधुनिक समय का मदारी हूं। मेरा काम बच्चों का मनोरंजन करना है। कई बच्चों ने तो इससे पहले कभी कहानी सुनी भी नहीं होगी।" एक दशक से भी अधिक समय तक पेशेवर रंगमंच कलाकार के रूप में उन्होंने विश्वास किया है कि माध्यम दर्शकों के लिए अनुभविक नहीं है इसलिए उन्हें अपनी कहानियों के जरिए एक कदम आगे बढ़ना है। इसमें कुछ चुनौतियां भी हैं। सादत हसन मंटो की कहानी 'टोबा टेक सिंह' को सुनाते हुए कहा कि उन्हें कहानी में 18 किरदारों को पेश करने में काफी मुश्किलें आई। 'टोबा टेक सिंह' को 1947 में भारत-पाक बंटवारे के बाद यह निर्धारित करना था कि भारत और पाकिस्तान में से उसका घर कौन सा है। |
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