इंटरनेट कोई समस्या नहीं, अपितु एक सहायक उपकरणः छत्तीसगढ़ में मातृभाषा दिवस पर वक्ताओं के उद्गार

इंटरनेट कोई समस्या नहीं, अपितु एक सहायक उपकरणः छत्तीसगढ़ में मातृभाषा दिवस पर वक्ताओं के उद्गार रायपुरः छत्तीसगढ़ के भिलाई जिले के कल्याण कालेज में आज राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर एक सेमिनार का आयोजन किया. इस अवसर पर संस्कृत के प्रकांड विद्वान डॉ महेशचन्द्र शर्मा ने कहा, संस्कृत कोई मृत भाषा नहीं हैं, अपितु मैं यह कहना चाहूंगा कि इस भाषा में संस्कार हैं और ऊर्जा है, जो हमें आत्मिक तौर पर बलवान बनाए रखती हैं. कालिदास की कृतियाँ आज भी अपना महत्त्व बनाएं हुए हैं. हमारा देश बहुभाषी देश है.

हजारों बोलियां बोली जाती हैं. लाखों की संख्या में पुस्तकों का प्रकाशन होता है. पाठकों की संख्या बढ़ रही है. दूसरी बात आज हिंदी में अन्य भाषाओं के लेखक आना चाहते हैं. हिंदी जन-जन की भाषा है. दिलों की भाषा है, इसलिए आप उसी भाषा में रचिये जिसमें आप का मन रमता हो. आज वैश्विक परिवार हैं, तकनीक ने हमें जोड़ा है. हमारी बात को आगे बढ़ाया है, इसलिए तकनीक का भी हमारे लेखन को नई परिभाषा देने का एक सार्थक प्रयास है.

स्थानीय शिक्षाविद, ब्लॉगर संजीव तिवारी ने कहा, यदि कोई गलत डाटा भी नेट दिखाता है, तो तत्काल आपको शिकायत करनी चाहिए. यह एक ऐसी लाइब्रेरी है, जो चौबीसों घण्टे खुली रहती है. कितने रचनाकार आज नेट से जुड़े हुए हैं. आप अपने मन की बात कह सकते हैं, सुन सकते हैं. आज कई ऑप्शन हमारे सामने हैं. मैं कहना चाहूंगा कि हमें अपनी दृष्टि भी खुली रखनी होंगी ताकि हम गलत बातों का प्रचार न करें. कुछ अनर्गल बातों पर पाबन्दी और अंकुश लगना चाहिए. आप कोई भी विषय सर्च कीजिये, आपकी जानकारी आपकी स्क्रीन पर मिल जाएगी, यह ताकत है. लेकिन पुस्तकों का हमें सहारा लेना ही पड़ेगा. समकालीन साहित्य को भी अपने समक्ष रखना पड़ेगा. इस में परिचर्चा और समय-समय पर मेल मिलाप जरुरी है. संवाद जरुरी है.

चर्चित ब्लॉगर पी एस पाबला ने अपनी बात रखते हुए कहा, विषय में असमानता है. एक तरफ भौतिकवादी संसार की बात है, तो दूसरी तरफ आभासित संसार की दुनिया. ई बुक से ब्लागिंग में आइये, एक नया विकल्प खुला है,हमारे सामने. वाट्सप की दुनिया आज केवल फॉरवर्ड की हो गई है. अपने सृजन की कोई बात नहीं करता. यदि आप रचनात्मक हैं तो आप अपना कौशल दिखाइए. आगे आइये, लेकिन कॉपी पेस्ट से बचें. आज यही द्वन्द है हमारे सामने. हमें अपनी मौलिकता को बचाये रखना बेहद जरुरी है,उसको आगे भी लाना होगा. सोशल मीडिया एक बेहतर उपकरण है. तकनीक का विस्तार हुआ है. आपकी बात मिनटों में दुनिया भर में फ़ैल जाती है. यह ताकत है,तकनीक की. लेकिन अभी भी पुस्तक का अपना आनंद है, जिससे मुझे सुख मिलता है.

छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार भाषा समिति के अध्यक्ष गिरीश पंकज ने कहा, करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान. धीरे-धीरे समय को समझा. सद्भावना दर्पण का ब्लॉग बनाया. सोशल मीडिया के महत्व को समझा. लगातार दिमाग सक्रिय हुआ. हमारा समाज तमाम तरह की विसंगतियों से घिरा हुआ है. अब वाट्सप का द्वन्द, फेस बुक की दुनिया का खेल निराला है. अब जिसे देखो वह ज्ञान बाँट रहा है. यानि झूठ-झूठ में अपने को अवल्ल दिखाने की पुरजोर कोशिश जारी है.



आभासित दुनिया जिसमें झूठी जानकारियों का फैलाव फैला है, उससे हमें बचना होगा. हमें पुस्तक से जुड़ना होगा. पुस्तक में अभी भी ताकत है, जो ऊर्जा आज तक हमें बचाएं हुई है. पुस्तक की ताकत है,इसको मैंने पहचाना है, लेकिन इंटरनेट कोई समस्या नहीं, अपितु यह एक सहायक उपकरण है,जिसने हमारी अभिव्यक्ति को आज पहचान दी है. आज हमें अपने साधनों की शक्ति को पहचानना होगा. साहित्य के संसार को हमें पाना है, उसके लक्ष्य तक पहुंचना है. उसकी ताकत को पहचानना है,लेकिन उससे विमुख नहीं होना. पुस्तक के वजूद को उसकी शक्ति को हमें आत्मसात करना होगा. इंटरनेट से विमुख नहीं होना, उससे अपने को जोड़ना है. यह भी देखना है कि जो उपलब्ध साहित्य आप के पास नेट स्वरुप में उपलब्ध है, उससे जुडना ही होगा.

छतीसगढ़ के पूर्व चुनाव आयुक्त डॉ सुशील त्रिवेदी ने अपने वक्तव्य में कहा, मैं प्रतिदिन लिखता हूँ. पढ़ता हूँ. अखबारों में खूब लिखता हूँ. कमाल और हैरानी की बात यह क़ि मैं सोशल मीडिया पर नहीं हूँ. जब आईएएस था, तब भी पढ़ता था, आज जब सेवा में नहीं हूँ और आईएएस के नए लोगों को पढ़ाता हूँ, तो उनको भी यही कहता हूँ क़ि अपने भीतर उस जज्बे को जगाना होगा, ताकि पठन-पाठन की वृति को बचाए रखना भी उतना ही जरुरी है जितना हम आज शिक्षा की एहमियत को जानते-समझते हैं. आज क्रान्ति का युग है.

ग्लोबल विलेज की बात करते हैं तो यकीन कीजिये सब जानकारी सिमट गई है. हमारे विज्ञान का विस्तार हुआ है. बात इंफॉर्मेशन से नहीं बनेगी. हमें ज्ञान प्राप्त करना होगा. हमें पढ़ना होगा. डिजिटल इंडिया की हम बात करते हैं, हमें यहाँ समय देना होगा. हमें एक साथ कई मुद्दों पर लड़ना होगा. समय की कीमत को पहचानना होगा. दुनिया में ज्ञान प्राप्त करने के सोर्स भी बदलते जा रहे हैं. लगातार लिखने के लिए मुझे तकनीक का सहारा लेना पड़ेगा. मैं मानता हूँ क़ि इंटरनेट पर सारी जानकारी सही नहीं हैं. इसलिए तथ्यों की भी जानकारी हमें रखनी होगी, अन्यथा हम फिसड्डी रह जायेंगे. अपने आपको अपडेट भी रखना होगा. तकनीक पर निर्भर नहीं रहना. पुस्तकों से जुड़ना ही होगा. अंततः विजय पुस्तक की है. शब्द की है. भावनाओं में नहीं बहना है,ज्ञान का अर्जन करने के लिए पुस्तकों को पढ़ना होगा,यदि आप ने आगे बढ़ना है.

इंटरनेट के समक्ष पुस्तक की सत्ता बनी रहेंगी. नेट तभी बनेगा यानी काम करेगा, उसका स्रोत्र पुस्तक है. आखिर उसे मुद्रित शब्द का सहारा लेना ही पड़ेगा. डॉ त्रिवेदी ने कहा, हमें पढ़ने की अपनी आदत को विकसित करना होगा. तभी हमारा कल्याण सम्भव है, अन्यथा नहीं.

सेमिनार का संचालन कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सुधीर शर्मा ने किया. इस कॉलेज में मातृभाषा दिवस के आयोजन हेतु उन्होंने अपनी शुभकामना न्यास को दीं. सेमिनार में कालेज के छात्रों के अलावा, स्थानीय गण्यमान्य विद्वान भी मौजूद थे.

शुरुआत में न्यास के संपादक डॉ ललित किशोर मंडोरा ने न्यास की गतिविधियों को रेखांकित करते हुए सभी पाठकों को पढ़ने की आदत के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने यह भी कहा-पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए न्यास अध्यक्ष श्री बल्देव भाई शर्मा के दिशा-निर्देशों के तहत अग्रसर हैं.

सेमिनार में अधिकाँश पाठकों और बुद्धिजीवियों ने इस आयोजन की भूरी-भूरी प्रसंशा की.
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