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नेताजी ने नहीं दिया था 'जय हिंद' का नारा?
जनता जनार्दन डेस्क ,
Feb 25, 2014, 15:46 pm IST
Keywords: सुभाष चंद्र बोस 'जय हिंद' का नारा किताब 'लींजेंडोट्स ऑफ हैदराबाद' लेख Subhas Chandra Bose 'Jai Hind' slogan Book Linjendots of Hyderabad Article
![]() अपनी किताब 'लींजेंडोट्स ऑफ हैदराबाद' में पूर्व नौकरशाह नरेंद्र लूथर ने कई दिलचस्प लेख लिखे हैं, जो अपने रूमानी मूल और मिश्रित संस्कृति के लिए प्रसिद्ध इस शहर से जुड़े दस्तावेजी साक्ष्यों, साक्षात्कारों और निजी अनुभवों पर आधारित है। इनमें से एक दिलचस्प कहानी 'जय हिंद' नारे की उत्पत्ति से जुड़ी है। लेखक के अनुसार यह नारा हैदराबाद के एक कलेक्टर के बेटे जैनुल अबिदीन हसन ने दिया था, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जर्मनी गए थे। लूथर के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नेताजी भारत को आजाद कराने को लेकर सशस्त्र संघर्ष के लिए समर्थन जुटाने जर्मनी चले गए थे। उन्होंने कहा, 'नेताजी वहां भारतीय युद्ध कैदियों और अन्य भारतीयों से मिले और उनसे अपनी लड़ाई में शामिल होने की अपील की। हसन नेताजी से मिले और उनकी देशभक्ति और बलिदान की भावना से प्रेरित होकर अपनी पढ़ाई खत्म कर उनके साथ काम करने की बात कही।' नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित इस किताब के अनुसार, 'नेताजी ने हसन पर ताना मारते हुए कहा कि अगर वह इस तरह की छोटी चीजों को लेकर चिंतित हैं तो वह बड़े उद्देश्यों के लिए काम नहीं कर पाएंगे। यह सुनकर हसन ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और नेताजी के सचिव और दुभाषिए बन गए।' लेखक के अनुसार हसन बाद में आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) में मेजर बन गए और बर्मा (म्यांमार) से भारत की सीमा पार तक के मार्च में हिस्सा लिया। आईएनए तब इंफाल तक पहुंच गई थी। आपूर्ति और हथियारों की कमी की वजह से उसे पीछे हटना पड़ा था। लूथर ने लिखा है, 'नेताजी अपनी सेना और आजाद भारत के लिए एक भारतीय अभिभावन संदेश चाहते थे। बहुत सारी सलाहें मिलीं। हसन ने पहले 'हैलो' शब्द दिया, इसपर नेताजी ने उन्हें डपट दिया। फिर उन्होंने 'जय हिंद' का नारा दिया, जो नेताजी को पसंद आया और इस तरह 'जय हिंद' आईएनए और क्रांतिकारी भारतीयों के अभिवादन का आधिकारिक रूप बन गया। बाद में इसे देश के आधिकारिक नारे के तौर पर अपनाया गया।' |
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