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भारतीय फाइटर जेट की संख्या पाकिस्तान के बराबर पहुंच रही
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Jul 31, 2025, 19:36 pm IST
Keywords: भारतीय फाइटर जेट चीन स्वदेशी सुपरसोनिक फाइटर जेट INDIAN JET INDIAN ARMY
![]() नई दिल्ली: एक दौर था जब भारत और चीन ने एक साथ आसमान में उड़ान भरने की तैयारी की थी. दोनों देशों की वायुसेनाएं लगभग एक ही समय पर विकसित होनी शुरू हुईं, लेकिन आज तस्वीर एकदम बदल चुकी है. चीन न सिर्फ पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमान J-20 को अपनी वायुसेना में शामिल कर चुका है, बल्कि वह अब छठी पीढ़ी के फाइटर जेट्स पर काम कर रहा है. इसके उलट, भारत का AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) प्रोजेक्ट अभी भी विकास के दौर से गुजर रहा है. आज भारत एक अहम मोड़ पर खड़ा है – जहां उसे यह तय करना है कि वह अमेरिका से F-35 खरीदे, रूस से Su-57 ले या फिर अपने स्वदेशी प्रोजेक्ट पर भरोसा रखे और उसका इंतजार करे. इन जटिल सवालों का जवाब आसान नहीं है, लेकिन यह तय है कि अब भारत को जल्द और ठोस फैसले लेने होंगे, क्योंकि चीन ने जो टेक्नोलॉजिकल बढ़त हासिल कर ली है, वह भविष्य के संघर्षों में निर्णायक हो सकती है. भारत की चुनौतियां: कहां चूके हम? 1950 के दशक में भारत और चीन दोनों ने वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए एक समान कदम उठाए थे. दोनों के पास अनुभव की कमी थी और दोनों ने सोवियत संघ या पश्चिमी देशों की मदद से अपनी नींव रखी. मगर अंतर यही था कि जहां चीन ने खरीदी के साथ-साथ घरेलू निर्माण को भी बढ़ावा दिया, वहीं भारत आयात पर निर्भर हो गया और स्वदेशी प्रोजेक्ट्स को अक्सर नजरअंदाज करता रहा. भारत का पहला स्वदेशी सुपरसोनिक फाइटर जेट HF-24 Marut, तकनीकी सीमाओं और राजनीतिक अनिश्चितताओं की वजह से सफल नहीं हो पाया. इसकी परफॉर्मेंस का स्तर उसकी डिजाइन के अनुसार नहीं था क्योंकि उसके लिए आवश्यक इंजन भारत के पास नहीं था. फ्रांस, जर्मनी और यूके से इंजन लाने की कोशिशें नाकाम रहीं. इसके चलते यह विमान Mach 1.2 की स्पीड तक भी नहीं पहुंच पाया. इसका नतीजा यह हुआ कि केवल 147 Marut फाइटर बनाए गए और जल्द ही इस प्रोजेक्ट को खत्म करना पड़ा. दूसरी तरफ चीन ने क्या किया? चीन ने भी शुरुआत में सोवियत यूनियन से विमान खरीदे – जैसे MIG-15, MIG-17 और MIG-19 – लेकिन वहीं से उसने एक अलग रास्ता चुना. चीन ने इन विमानों की रिवर्स इंजीनियरिंग की, खुद के J-5 और J-6 मॉडल बनाए, और बहुत ही जल्दी उत्पादन स्तर पर निर्माण शुरू कर दिया. 1964 में J-6 के 4,000 से ज्यादा यूनिट्स चीन ने बनाए, जिससे यह साफ हुआ कि वो सिर्फ ‘कॉपी’ नहीं कर रहा था, बल्कि वह इंडस्ट्रियल स्केल पर मैन्युफैक्चरिंग और इनोवेशन की दिशा में बढ़ रहा था. भारत की धीमी प्रगति: Tejas और कावेरी इंजन की कहानी भारत ने 1983 में LCA (Light Combat Aircraft) प्रोग्राम शुरू किया था, जिसका उद्देश्य स्वदेशी लड़ाकू विमान बनाना था. इस प्रोजेक्ट से HAL Tejas का जन्म हुआ – भारत का पहला हल्का लड़ाकू विमान. लेकिन इस विमान को सर्विस में लाने में 40 साल लग गए. 2001 में पहली उड़ान और 2020 में IOC (Initial Operational Clearance). इस देरी के कई कारण थे, जैसे डिजाइन में लगातार बदलाव, तकनीकी संसाधनों की कमी, विदेशी इंजन पर निर्भरता और राजनीतिक-प्रशासनिक बाधाएं. इसी तरह, भारत का कावेरी इंजन प्रोजेक्ट, जो 1986 में शुरू हुआ था, आज तक पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है. चीन ने इसी दौरान WS-10 और WS-15 जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम किया, असफलताएं झेलीं, लेकिन फिर भी रिसर्च और प्रोडक्शन जारी रखा. भारत अब कावेरी के संशोधित संस्करण को स्वदेशी ड्रोन प्रोग्राम में इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है. लड़ाकू विमानों की गिनती में पाकिस्तान से मुकाबला आज भारत के पास लगभग 30-32 स्क्वाड्रन (लगभग 600 फाइटर जेट्स) हैं, जबकि जरूरत कम से कम 42 स्क्वाड्रन की है. पाकिस्तान की फ्लीट भी लगातार अपग्रेड हो रही है – उसने चीन के साथ मिलकर JF-17 जैसे विमान बनाए और हाल ही में JF-17 Block III जैसे स्टील्थ फीचर्स से लैस वेरिएंट्स शामिल किए. चीन की बात करें तो उसके पास 1,500 से ज्यादा फाइटर जेट्स हैं – जिनमें J-10, J-11, J-16 और J-20 जैसे आधुनिक विमान शामिल हैं. और अब वह छठी पीढ़ी के विमान पर काम कर रहा है, जो AI, हाइपरसोनिक तकनीक, और डाटा नेटवर्किंग जैसी अत्याधुनिक क्षमताओं से लैस होंगे. क्या भारत को विदेशी स्टील्थ फाइटर जेट्स खरीदने चाहिए? यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है: जब तक भारत का AMCA तैयार नहीं होता, क्या उसे अमेरिका से F-35 या रूस से Su-57 जैसे फाइटर जेट्स खरीदने चाहिए? इसका उत्तर तकनीकी और रणनीतिक दोनों दृष्टिकोणों से सोचना होगा:
यदि भारत ने इन विकल्पों को चुना, तो उसे एक बैलेंस बनाना होगा, ताकि स्वदेशी AMCA परियोजना पर कोई असर न पड़े. यही बात रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन आरके नारंग भी कहते हैं, "हमें संख्या की दौड़ में नहीं भागना चाहिए, बल्कि तकनीक और आत्मनिर्भरता पर जोर देना चाहिए." भारत को अब क्या करना चाहिए? भारत को अभी जिन मुख्य क्षेत्रों में ध्यान देना होगा, वे हैं: रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर बड़ा निवेश रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता तभी संभव है, जब सरकार R&D पर पर्याप्त बजट दे और उसे लगातार बढ़ाए. निजी क्षेत्र और स्टार्टअप्स की भागीदारी बढ़ाना सिर्फ HAL और DRDO पर निर्भर रहने की बजाय, निजी कंपनियों और नवाचारकर्ताओं को भी इस अभियान में शामिल करना होगा. इंजीनियरिंग टैलेंट और संस्थानों को साथ लाना IITs, IISc और अन्य तकनीकी संस्थानों को मिशन मोड में रक्षा परियोजनाओं से जोड़ना जरूरी है. फास्ट-ट्रैक अप्रूवल और निगरानी सिस्टम रक्षा परियोजनाओं के लिए एक अलग विशेष तंत्र होना चाहिए जो उनकी गति, गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करे. |
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