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ताइवान, फिलीपींस, जापान... अपने पड़ोसियों के खिलाफ कैसी साजिश रच रहा चीन?

जनता जनार्दन , Jun 26, 2025, 15:43 pm IST
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ताइवान, फिलीपींस, जापान... अपने पड़ोसियों के खिलाफ कैसी साजिश रच रहा चीन?

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जब युद्ध और तनाव के बादल मंडरा रहे हैं, ऐसे समय में चीन ने एक ऐसा ऐलान किया है, जो न सिर्फ उसकी सैन्य ताकत को दिखाने वाला है, बल्कि पूर्वी एशिया के मौजूदा हालात को और जटिल बना सकता है. चीन ने घोषणा की है कि वह द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर बीजिंग के प्रतिष्ठित तियानमेन स्क्वायर में एक भव्य सैन्य परेड आयोजित करेगा. यह परेड प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से काफी अहम मानी जा रही है.

चीन का मकसद सिर्फ इतिहास को याद करना नहीं, बल्कि वर्तमान को चुनौती देना है. कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचार विभाग के उप प्रमुख हू हेपिंग ने स्पष्ट किया कि यह आयोजन जापानी आक्रमण के खिलाफ मिली ऐतिहासिक जीत और फासीवाद पर वैश्विक विजय का उत्सव है. लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि चीन इसका उपयोग अपनी आधुनिक सैन्य क्षमताओं को दिखाने के लिए करेगा.

सैन्य शक्ति का प्रदर्शन – सिर्फ एक परेड नहीं

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के युद्ध ब्यूरो के उप-प्रमुख वू जेके ने बताया कि इस परेड में पारंपरिक हथियारों के साथ-साथ नई तकनीकों पर आधारित रक्षा प्रणाली का भी प्रदर्शन किया जाएगा. इनमें मानव रहित निगरानी यंत्र, पानी के भीतर युद्ध प्रणाली, साइबर युद्ध क्षमताएं और हाइपरसोनिक हथियार शामिल होंगे. साफ है कि चीन यह संदेश देना चाहता है कि वह अब सिर्फ पारंपरिक सेना नहीं, बल्कि तकनीकी रूप से उन्नत सुपरपावर बनने की दिशा में बढ़ चुका है.

रिपोर्ट्स के अनुसार, यह केवल दूसरी बार होगा जब चीन द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर सैन्य परेड कर रहा है. यह आयोजन ऐसे समय हो रहा है जब दुनिया पहले से ही इजरायल-ईरान संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध से जूझ रही है.

जापान और ताइवान – पुराने दुश्मनों पर नई नजर

चीन की निगाहें अब पुराने प्रतिद्वंद्वी जापान की ओर भी हैं. हाल ही में चीनी हेलीकॉप्टर द्वारा जापान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की घटना ने दोनों देशों के बीच तनाव को फिर से सतह पर ला दिया है. बीते वर्षों में चीन कई बार जापानी हवाई और समुद्री सीमाओं का उल्लंघन कर चुका है.

इसके साथ ही ताइवान पर भी चीन ने दबाव बढ़ा दिया है. बीजिंग खुले तौर पर मानता है कि ताइवान उसका अभिन्न हिस्सा है और आवश्यकता पड़ी तो बल प्रयोग से भी उसे अपने नियंत्रण में लाया जा सकता है. ताइवान के चारों ओर चीन की सैन्य गतिविधियां, संयुक्त युद्ध अभ्यास और साइबर हमलों की बढ़ती घटनाएं इसे और स्पष्ट कर रही हैं.

दक्षिण चीन सागर – क्षेत्रीय विवादों का केंद्र

दक्षिण चीन सागर में भी चीन की गतिविधियां क्षेत्रीय तनाव को भड़का रही हैं. स्कारबोरो शोल जैसे इलाकों पर उसका दावा फिलीपींस जैसे देशों के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है. साल 2016 में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने चीन के दावों को खारिज कर दिया था, लेकिन बीजिंग अब भी अपनी जिद पर अड़ा हुआ है. चीन यहां लगातार गश्ती जहाज और लड़ाकू विमान भेजता है, जिससे वियतनाम, मलेशिया और अन्य देशों के साथ विवाद और भी तीखा हो रहा है.

ऐतिहासिक जख्म और राजनीतिक संदेश

चीन और जापान के बीच शत्रुता का इतिहास भी इस तनाव का एक प्रमुख कारण है. 1937 से 1945 के बीच दोनों देशों के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें जापान ने चीन के बड़े हिस्से पर कब्जा किया और लाखों लोगों की जान गई. चीन ने इन घटनाओं को अपनी पाठ्यपुस्तकों और जनस्मृति का हिस्सा बना रखा है. हालांकि जापानी समाज इसे चीन द्वारा अतिशयोक्तिपूर्ण बताता है, लेकिन दोनों देशों के बीच अविश्वास और कटुता आज भी गहराई से मौजूद है.

भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर

चीन की इस आक्रामकता और विस्तारवादी सोच के बीच भारत के लिए एक नई भूमिका उभर रही है. विश्लेषकों का मानना है कि भारत को ग्लोबल साउथ को केंद्र में रखते हुए एक नया गैर-सैन्य गठबंधन तैयार करना चाहिए, जिससे वह इस क्षेत्र में स्थायित्व और संतुलन कायम करने में मदद कर सके.

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