स्मृति ईरानी के राहुल नाम रटने के क्या हैं मायने?

स्मृति ईरानी के राहुल नाम रटने के क्या हैं मायने?
अमेठी: 2024 के आम चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। चुनावी योद्धा अपने-अपने मोर्चे पर डटे हुए हैं। इसी में एक है केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी। अपने बयानों से हमेशा चर्चा में रहने वाली ईरानी आजकल इस अमेठी में ज्यादा सक्रिय हैं, जिसे उन्होंने 'अपना' बना लिया है। अपना बनाने का मतलब आशियाने से है। 'बेघर' राहुल गांधी को 2019 के पिछले आम चुनाव में परस्त कर ईरानी ने राहुल गांधी को राजनीतिक रूप से भी 'बेघर' कर दिया। यहां यह बताना जरूरी है कि राहुल गांधी का अमेठी में अपना कोई घर नहीं है। वह राजीव गांधी चाइल्ड टेबल ट्रस्ट या राजीव गांधी फाउंडेशन द्वारा संचालित संजय गांधी अस्पताल के गेस्ट हाउस से ही अपनी चुनावी गतिविधियां चलाएं रखते थे.
 
पिछले चुनाव में 55000 वोटों से जीत दर्ज कराने वाली ईरानी अब अमेठी की वोटर और भाजपा की प्रत्याशी दोनों ही हैं। चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही ईरानी लगातार अमेठी संसदीय क्षेत्र में जनसंपर्क करने में जुटी हैं। इसमें कोई नई बात नहीं। यह तो प्रत्याशी का धर्म ही है। अमेठी में अपना आशियाना बनाने के बाद उन्होंने खुद को 'अजेय' मान ही लिया। छोटे पर्दे की लोकप्रिय अभिनेत्री होने के चलते फिल्मों के एक चर्चित गाने-' जीना यहां मरना यहां.. इसके सिवा जाना कहां..' वाला भाव भी प्रदर्शित किया। गृह प्रवेश के मौके पर भी राहुल गांधी पर तंज करने से वह नहीं चूकी थीं.
 
जैसे-जैसे चुनाव की सक्रियता बढ़ती गई वैसे-वैसे स्मृति ईरानी राजनीतिक रूप से बेघर बनाए जा चुके राहुल गांधी के नाम की 'रट' भी बढ़ाती चली जा रही हैं। उनका कोई भी भाषण राहुल नाम के बिना पूरा ही नहीं होता जैसे कोई यज्ञ बिना 'स्वाहा' की ध्वनि के संपन्न नहीं होता। जिस चुनाव में उन्हें 5 साल में कराए गए विकास कार्यों की रट लगानी चाहिए थी, उस चुनाव में वह राम नाम से ज्यादा राहुल नाम इस समय जप रही हैं। बीच-बीच में वह 5 साल में कराए गए काम के बारे में भी बताती है लेकिन इतनी दमदारी से नहीं जितनी गंभीरता राहुल नाम को लेकर उनके भाषणों में दिखती है। हालांकि उनका दावा रहता है कि अमेठी में 5 साल में वह काम कर दिए जो आज तक प्रधानमंत्री रहते राजीव गांधी भी नहीं कर पाए। राहुल गांधी द्वारा कराए गए कामों को वह कोई काम मानती ही नहीं  लेकिन कांग्रेस के मीडिया प्रभारी अनिल सिंह उनके किनारे कई कामों को राहुल गांधी द्वारा प्रारंभ किया हुआ मानते हैं। भाजपा कार्यकर्ता और आम मतदाता भी हैरान है कि आखिर सांसद स्मृति ईरानी उन राहुल गांधी पर इतना हमलावर क्यों है? जिन्होंने अभी तक अमेठी से चुनाव लड़ने की घोषणा तक नहीं की है.
   
रायबरेली के राजनीतिक विश्लेषक डॉ राम बहादुर वर्मा मानते हैं कि स्मृति ईरानी इस समय 'राहुल फोबिया' से ग्रसित नजर आ रही हैं। कांग्रेस और गांधी परिवार जब रायबरेली और अमेठी के बारे में अंतिम क्षण तक फैसला नहीं कर पा रहा है तब स्मृति ईरानी ने अपनी सभा में इस बात का ऐलान तक कर दिया कि 26 के बाद राहुल गांधी अमेठी आ जाएंगे।  राहुल नाम रटने के पीछे एक यही कारण माना जा सकता है कि कोई उनसे 5 साल का हिसाब न मांगे और जवाबदेही तय न की जा सके लेकिन सुल्तानपुर के वरिष्ठ पत्रकार राज खन्ना इसे सुनियोजित रणनीति मानते हैं। वह कहते हैं कि स्मृति ईरानी उस रणनीति पर अमल कर रही है जिसमें कहा जाता है कि इतना शोर करो कि दुश्मन आने की हिम्मत ही न जुटा पाए.  
 
वह यह भी कहते हैं कि इसकी वजह देने वाले भी खुद राहुल गांधी हैं हारने के बाद अगर वह 5 साल अमेठी से अपना संपर्क न तोड़ते तो आज स्मृति ईरानी के इन हमलों का जवाब जनता खुद दे रही होती। उनका मानना है कि राहुल पर हमले इसलिए ज्यादा प्रसारित हो रहे हैं कि मीडिया भाषण के उन्हीं अंशों को हाईलाइट करता है, जो पढ़ने में चटपटे हों। 
यह 20 मई को अमेठी के मतदाता तय करेंगे कि राहुल नाम की रट स्मृति ईरानी को चुनावी वैतरणी पार कराएगी या उनका वोट बैंक चट कर जाएगी। अमेठी में पांचवें चरण में मतदान होना है नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है लेकिन गांधी परिवार अभी भी असमंजस में है.
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