अपने देश में चुनाव का ये फॉर्मूला पता है आपको?

जनता जनार्दन संवाददाता , May 09, 2024, 18:53 pm IST
Keywords: Lok Sabha Chunav   Election System India   चुनाव    लोकसभा और विधानसभा   Proportional Representation   बीजेपी और कांग्रेस  
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अपने देश में चुनाव का ये फॉर्मूला पता है आपको? 2014 में बीजेपी की अगुआई वाले NDA गठबंधन ने केवल 38.5 प्रतिशत वोट हासिल कर 336 सीटें जीती थीं. वहीं 2014 और 2019 के बीच बंगाल में चुनाव भाजपा और टीएमसी के बीच लड़ा गया. ममता की पार्टी का वोट शेयर 0.4 प्रतिशत बढ़ा लेकिन उसकी सीटें 2.22 प्रतिशत घट गईं. आखिर ऐसा कैसे होता है? दरअसल, अपने देश में चुनाव जिस फॉर्मूले पर होता है उसे 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' (FPTP) कॉन्सेप्ट कहते हैं. इस सिस्टम में कैंडिडेट को अपने प्रतिद्वंद्वियों से ज्यादा वोट हासिल करने होते हैं. ऐसा हुआ तो वह विजेता घोषित हो जाता है, भले ही उसे कुल मिलाकर क्षेत्र के कम वोट मिले हों लेकिन वही जीतता है. यहां मुकाबले में प्रमुख दावेदारों में वोट बंटने से भी चीजें घटती बढ़ती हैं. 

हां, भारत में इसी सिस्टम के जरिए लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराए जाते हैं. FPTP बिल्कुल सिंपल कॉन्सेप्ट है. हालांकि यह सच मायने में प्रतिनिधित्व वाले जनादेश की अनुमति नहीं देता है. इसकी वजह यह है क्योंकि उम्मीदवार आधे से भी कम वोट हासिल करने के बावजूद जीत सकता है. वैसे कई देशों में चुनाव के दूसरे सिस्टम हैं. कुछ देशों में Proportional Representation वाला लोकतंत्र है. जिस पार्टी को जितना वोट शेयर मिलता है उसे उतनी ही सीटें मिलती हैं. जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में ऐसे ही चुनाव होते हैं. 

चुनाव का एक और सिस्टम रैंक च्वाइस का होता है. इसके तहत अगर किसी कैंडिडेट को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिले तो फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं. अपने देश का सिस्टम FPTP होने के कारण ही आप देखते होंगे कि कम वोट शेयर वाली पार्टी भी सरकार बना लेती है. 

जनसंघ के समय से लेकर भाजपा के 1984 में पहला चुनाव लड़ने तक सीट शेयर से हमेशा वोट शेयर ज्यादा रहा है. 1984 में उसे 7.4 प्रतिशत वोट मिले और 0.4 प्रतिशत ही सीटें मिलीं. जब आगे चुनावों में उसने 11 प्रतिशत वोट का आंकड़ा पार किया तो उसकी सीटें बढ़ गईं. 


1989 से इसका सीट शेयर हमेशा वोट शेयर से ज्यादा रहा. 1984 और 2014 के बीच पार्टी 1998-99 में पीक पर रही. तब उसे 24-26 प्रतिशत वोट मिले थे और 34 प्रतिशत सीटें मिलीं. अगला नाटकीय जंप 2014 में देखने को मिला. भगवा दल का वोट शेयर 2009 के 18.8 प्रतिशत से 12.5 प्रतिशत बढ़कर 31.3 प्रतिशत पहुंच गया. हालांकि सीट शेयर 2009 के 21.4 प्रतिशत से 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़कर 51.9 प्रतिशत पहुंच गया. 

कांग्रेस का ग्राफ अलग रहा. 2009 में उसे 28.6 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन उसने 37.9 प्रतिशत सीटें जीतीं. अगले चुनाव में उसका वोट शेयर 9 प्रतिशत घटा जबकि सीटें करीब 30 प्रतिशत घट गईं. 2014 और 2019 में करीब 20 प्रतिशत वोट पाने के बावजूद कांग्रेस को 10 प्रतिशत से कम सीटें मिलीं. इससे पता चलता है कि अकेले सीटें जमीनी ताकत को समझने का पैमाना नहीं हो सकती हैं.

जी हां, ओडिशा की प्रमुख पार्टी बीजू जनता दल का वोट शेयर 2014 और 2019 के बीच लगभग बराबर रहा लेकिन पार्टी ने आठ सीटें गंवा दीं क्योंकि मुकाबला दोतरफा हो गया था. 

उधर, 2009 और 2014 के बीच सपा का वोट शेयर थोड़ा बढ़ा लेकिन 18 सीटें कम हो गईं. वजह वैसी ही थी.

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