जानें क्या है सांसदों-विधायकों के पार्टी बदलने को लेकर नियम

जनता जनार्दन संवाददाता , Oct 31, 2023, 16:46 pm IST
Keywords: Anti Defection Law   एंटी डिफेक्शन लॉ   दल बदल विरोधी कानून   राजीव गांधी सरकार   What is Anti Defection Law  
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जानें क्या है सांसदों-विधायकों के पार्टी बदलने को लेकर नियम सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 31 दिसंबर तक सीएम एकनाथ शिंदे समेत अन्य विधायकों को अयोग्य घोषित करने पर फैसला करें. कोर्ट ने एनसीपी अजित पवार समेत एनसीपी के अन्य विधायकों के मामले में भी 31 जनवरी तक निर्णय लेने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची की पवित्रता बनाए रखी जानी चाहिए. क्या आप जानते हैं कि संविधान की 10वीं अनुसूची क्या है, जिसकी चर्चा सुप्रीम कोर्ट ने की.

साल 1985 में राजीव गांधी सरकार ने संविधान में 92वां संशोधन किया था. इस संशोधन में दल बदल विरोधी कानून (Anti Defection Law) पारित किया था. इस कानून का मकसद सियासी फायदे के लिए नेताओं के पार्टी बदलने और हॉर्स ट्रेडिंग रोकना था. इस कानून को संविधान की 10वीं अनुसूची में रखा गया है. जब कोई नेता पार्टी बदलता है या कोई ऐसी चाल चले, जिससे दूसरी पार्टी का नेता समर्थन करे तो इसे हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है. इसे दल-बदलना या दल-बदलू भी कहा जाता है.

दल-बदल विरोधी कानून यानी एंटी डिफेक्शन लॉ को संविधान की 10वीं अनुसूची में शामिल किया गया है. अनुसूची के दूसरे पैराग्राफ में दल-बदल कानून के तहत किसी विधायक या सांसद को अयोग्य करार दिए जाने का आधार स्पष्ट किया गया है. इसके अनुसार, अगर कोई विधायक अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़ दे तो इसके तहत तो उसकी सीट छिन सकती है. यदि कोई विधायक या सांसद जानबूझकर मतदान से अनुपस्थित रहता है या फिर पार्टी द्वारा जारी निर्देश के खिलाफ जाकर वोट करता है तो उसे अपनी सीट गंवानी पड़ सकती है. अगर कोई निर्दलीय सांसद या विधायक किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो वे अयोग्य करार दिए जाएंगे.

हालांकि, एंटी डिफेक्शन लॉ  के तहत कुछ अपवाद भी हैं. यानी इस स्थिति में सांसदों और विधायकों को दल-बदल विरोधी कानून का सामना नहीं करना पड़ता. किसी राजनीतिक दल के एक-तिहाई सांसद या विधायक इस्तीफा दे देते हैं तो इस कानून के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है. इसके अलावा अगर किसी पार्टी के दो-तिहाई सांसद या विधायक किसी अन्य पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो इस स्थिति में भी इसे दलबदल नहीं माना जाता है.
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