खरबों कमाने वाली कंपनियों में भी अमानवीय हैं हालात !

खरबों कमाने वाली कंपनियों में भी अमानवीय हैं हालात ! एक समय आता है जब हर किसी का सब्र टूट जाता है. और ऐसा किसी मामूली बात पर हो सकता है या किसी घटना से. ख़ैर जो भी हो पर ये बहुत मायने नहीं रखता.

शैनॉन के लिए यह पल तब आया जब उन्हें गूगल से मिली पानी की बोतल टूट गई. जिस डाटा सेंटर में वह काम कर रहीं थीं, वहां गर्मी थी. उन्होंने कंपनी से एक और बोलत मांगी पर गूगल के लिए उनसे काम कराने वाले ठेकेदार ने बोतल देने से इनकार कर दिया.

इसके बाद कई घटनाएं होती गईं जिसके जवाब में गूगल को पिछले हफ़्ते सार्वजनिक घोषणा करनी पड़ी. गूगल को बयान जारी कर कहना पड़ा कि कंपनी के कर्मचारियों को कार्यस्थल के माहौल और मिलने वाले वेतन के बारे में चर्चा करने का अधिकार है.

यह अजीब लग सकता है कि कंपनी को ऐसा बयान जारी करना पड़ा है. लेकिन वास्तव में ये शैनॉन और कंपनी के बीच चली लड़ाई का अंतिम मोड़ है.

शैनॉन की कहानी इतनी बड़ी टेक्नॉलॉजी कंपनी के प्रबंधन के तौर-तरीकों के बारे में बताती है. इससे पता चलता है कि कैसे प्रबंधन कई बार अपने दायरे से बाहर जाकर दख़ल देता है.

2018 में इतिहास की डिग्री लेने वाली शैनॉन ने साउथ कैरोलाइना में गूगल के एक डाटा सेंटर में काम शुरू किया था. उन्हें हर घंटे के 15 डॉलर मिलते थे.

शैनॉन कहती हैं, "मैं सर्वर ठीक करती थी जिनमें हार्ड ड्राइव बदलनी पड़ती थीं, मदरबोर्ड बदलने पड़ते थे, भारी बैटरी उठानी पड़ती थीं. ये एक मुश्किल काम था."

गूगल के दफ़्तर रचनात्मक होते हैं जहां कर्मचारी मज़ा कर सकते हैं. वहां टेबल टेनिस की मेज़ें होती हैं, फ़्री में स्नैक्स मिलते हैं, म्यूज़िक रूम होते हैं. हालांकि शैनॉन के मुताबिक सब कुछ इतना मज़ेदार नहीं है.

वह कहती हैं, 'लोग दफ़्तर में पूरा दिन गेम नहीं खेलते हैं जैसा फ़िल्मों में दिखाया जाता है. डाटा सेंटर इससे बिलकुल अलग होते हैं.'

शैनॉन दरअसल गूगल में ठेके पर काम करती थीं. इसका मतलब यह है कि वो काम तो गूगल के लिए कर रहीं थीं लेकिन उन्हें नियुक्त एक मोडीज़ नाम की कंपनी ने किया था. यह एडेको नाम की एक कंपनी का हिस्सा है जिसकी ऐसी कई कंपनियां हैं.

गूगल में इस तरह ठेके पर काम कराना सामान्य बात होती जा रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक गूगल में आधे कर्मचारी ऐसे हैं जो ठेके पर काम करते हैं.

शैनॉन कहती हैं कि जब महामारी आई तो उनका काम मुश्किल होता गया, एक शिफ़्ट में होने वाला काम बढ़ गया. हालांकि इसमें एक लालच भी था.

वे कहती हैं, "मई 2020 में गूगल ने घोषणा की कि लोगों का मान रखते हुए कंपनी कोरोना महामारी का सामना करेगी. कंपनी ने कहा कि हर कर्मचारी को बोनस मिलेगा जिनमें ठेके पर काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं."

हालांकि वह कहती हैं कि जब बोनस मिलने का समय आया तो हमें यह नहीं मिला. इसे लेकर हम चिंतित थे क्योंकि कई चीज़ों के लिए हमें पैसे की ज़रूरत थी. शैनॉन के अनुसार कंपनी ने कहा कि वेतनभत्तों पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए.

शैनॉन ने बीबीसी को बताया कि उनके मैनेजर ने उन्हें ईमेल करके कहा कि साथी कर्मचारियों से अपने वेतन के बारे में चर्चा करना ठीक नहीं है.

आख़िरकार शैनॉन को बोनस मिल गया. हालांकि वह कहती हैं कि तब तक इसे लेकर वह निराश हो चुकी थीं. उन्हें उम्मीद थी कि गूगल में उन्हें स्थायी नौकरी मिल जाएगी.

शैनॉन ने पाया कि कंपनी में स्थायी तौर पर अस्थायी कर्मचारी रखने की संस्कृति बढ़ती जा रही है. वह कहती हैं कि कंपनी में ऐसे अस्थायी कर्मचारी कई थे जो कभी स्थायी नहीं होने वाले, भले वे कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें.

शैनॉन कहती हैं कि वो प्रंबधन के रवैये से खीज रहीं थीं और फिर वो पल आ गया जब उन्होंने अपना आपा खो दिया.

वह कहती हैं, "डेटासेंटर में काफ़ी गर्मी होती है. गूगल ने हमें एक पानी की बोतल दी लेकिन उसका ढक्कन मुझसे टूट गया."

ऐसा उनकी एक और सहयोगी के साथ भी हुआ. वह स्थायी कर्मचारी थीं. शैनॉन के मुताबिक़ उनकी सहकर्मी को तो नई बोतल दे दी गई पर उन्हें नहीं. शैनॉन कहती हैं कि आख़िरकार ऐसा समय आ गया जब उनके सब्र का बांध टूट गया. वह घर गईं और फ़ेसबुक पर उन्होंने एक पोस्ट लिख दिया.

वह कहती हैं, "अगले दिन जब मैं काम पर गई तो मुझे कांफ़्रेंस रूम में बुलाया गया जहां मैनेजरों समेत सब लोग मौजूद थे. उन्होंने मुझसे कहा कि फ़ेसबुक पर मैंने जो पोस्ट की है वह कंपनी के साथ किए गए मेरे एग्रीमेंट का उल्लंघन हैं. मुझसे कहा गया कि मैं कंपनी के लिए ख़तरा हूं. मुझसे तुरंत अपना बैज और लैपटॉप वापस करने को कहा गया. वो मझे दफ़्तर से बाहर ले गए."

गूगल के कर्मचारियों ने जनवरी 2021 में एल्फ़ाबेट वर्कर्स यूनियन बनाई थी. इसे अमेरिका के नेशनल लेबर रिलेशंस बोर्ड ने मान्यता नहीं दी है. कई बार इसे माइनॉरिटी यूनियन भी कहा जाता है क्योंकि गूगल में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी इसके सदस्य नहीं हैं. लेकिन शैनॉन इसकी सदस्य थीं और यूनियन ने उनका मामला उठाया.

फ़रवरी में यूनियन ने शैनॉन की ओर से अनुचित श्रम क़ानूनों के तहत दो मामले दर्ज कराए. पहला मामला, उन्हें यूनियन के समर्थन में बात करने पर अवैध तरीके से निलंबित करने और दूसरा मामला, उनके मैनेजर के उस कथन के ख़िलाफ़ दायर किया गया कि वह अपने वेतन पर चर्चा नहीं कर सकती हैं.

पिछले महीने गूगल, मोडीज़ और अल्फ़ाबेट वर्कर्स यूनियन के बीच समझौता हो गया. और शैनॉन का निलंबन वापस ले लिया गया.

गूगल ने एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए. इसमें कहा गया है कि उसके कर्मचारियों को अपने वेतन, बोनस और कार्यस्थल की दशा पर चर्चा करने का अधिकार है.

ये शैनॉन और नई बनी यूनियन के लिए एक जीत थी. वो कहती हैं, "इस ट्रिलियन डॉलर कंपनी के वेयरहाउस और डाटा सेंटर में काम कर रहे लोग अपने छोटे-छोटे हक़ के हनन से थक चुके हैं. उन्हें यह अहसास हो रहा है कि कंपनियां अपने कर्मचारियों को नहीं सुन रही हैं. अब हम कंपनियों को अपनी बात सुनाएंगे."

पिछले दिनों अलबामा में अमेज़ॉन के कर्मचारियों ने यूनियन बनाने के लिए वोट डाला है. अमेज़ॉन नहीं चाहती कि उसके कर्मचारी यूनियन बनाएं.

इस वोट का नतीजा जल्द ही आएगा. ये बड़ी कंपनियों और उनके कर्मचारियों के बीच की ताज़ा लड़ाई है, जिन्हें लगता है कि उनकी कंपनी उन्हें महत्व नहीं देती.

शैनॉन कहती हैं, "मुझे लगता है कि सबसे बड़ी बात जो लोग सीख सकते हैं वह यह कि गूगल के सभी कर्मचारियों को भारी भरकम वेतन नहीं मिलता है. और यह बात भी वो सीख सकते हैं कि गूगल में सबसे निचले स्तर पर काम करने वाले लोगों के पास भी बहुत ताक़त है. इतनी ताक़त जिसका उन्हें अहसास भी नहीं हो पाता."

गूगल ने क्या कहा?

हालांकि गूगल ने अपनी ओर से किसी गलती को स्वीकार नहीं किया है. उसने यह भी नहीं माना कि वह कांट्रैक्ट स्टाफ़ (ठेके पर काम करने वाले कर्मचारी) की सह-नियोक्ता है. बीबीसी ने शैनॉन के मामले को गूगल के सामने रखा पर गूगल ने कहा कि उसके पास इस बारे में और कुछ कहने के लिए कुछ नहीं है.

एडेक्को ने इस मामले पर टिप्पणी की बीबीसी की गुज़ारिश का कोई जवाब नहीं दिया है.

शैनॉन अब फिर से गूगल के डेटासेंटर में काम नहीं करना चाहती, बल्कि इतिहास में अपनी पीएचडी करना चाहती हैं.

इतनी बड़ी कंपनी के ख़िलाफ़ लड़ाई जीतकर उन्होंने इतिहास की किताबों में अपनी जगह तो पक्की कर ही ली है. यह किसी बड़ी कंपनी के ख़िलाफ़ एक कर्मचारी की दुर्लभ जीत है.                                                                                       
                                                                                                          स्रोत- बीबीसी
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