रिश्ता बनारस से बुनकर का

माइटी इक़बाल  , Sep 27, 2020, 17:34 pm IST
Keywords: Bunkar   Varanasi   Varanasi News   Varanasi Bunkar   बनारस बुनकर   बनारस   बुनकर   वाराणसी   बुनकर मजदूर   वाराणसी के बुनकर  
फ़ॉन्ट साइज :
रिश्ता बनारस से बुनकर का
हर गाम पे हुशियार बनारस की गली में
फ़ितने भी है बेदार बनारस की गली में।
ऐसा भी है बाज़ार बनारस की गली में
बिक जाएं खरीदार बनारस की गली में।
हुशियारी से रहना नही आता जिन्हें इस पार
हो जाते हैं उस पार बनारस की गली में।
सड़कों पे दिखाओगे अगर अपनी रईसी
लूट जाओगे सरकार बनारस की गली में।
मिलता है निगाहों को सुकूँ, ह्रदय को आराम
क्या प्रेम है क्या प्यार है बनारस की गली में।
हर संत के,साधु के,ऋषि और मुनि के
सपने हुए साकार बनारस की गली में।
गर स्वर्ग में जाना हो तो जी खोल के खरचो
मुक्ति का है व्यापार बनारस की गली में।
               नज़ीर बनारसी
 
काशी,वाराणसी,कैंट ...
यानी एक शहर के तीन नाम..
कहते हैं जिस तरह अल्लामा इक़बाल की कविताएं समझना कठिन नही तो आसान भी नही इसी तरह इस शहर के लोगों का मिज़ाज समझना भी बहुत कठिन नही तो आसान भी नही।
 
किसी ने पूछा, यह प्राचीन सांस्कृतिक,धार्मिक नगरी जहां  गोस्वामी तुलसी दास ने हिन्दू धर्म का परम पूज्य ग्रंथ "रामचरितमानस" लिखा या जहां गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन इसी शहर के निकट सारनाथ में दिया था, जो अस्सी से काशी तक फैला हुआ है,जिसे दुनिया बनारस के नाम से जानती और पहचानती है, कब आबाद हुआ? तो जवाब मिला इस का उत्तर तो काशी नरेश के पास भी नही था लेकिन अगर आप बता दो कि  हिमालय पर्वत कब वजूद में आया तो हम बता सकते है बनारस कब और किस हिजरी में आबाद हुआ।
 
किसी ने दरयाफ्त क्या इस शहर का अजीब व गरीब रहस्य क्या है ?
 
जवाब मिला,अगर आप को यहां किसी अर्थी  में शरीक होना हो तो उस मय्यत को कांधा देने की मत सोचिये और ज़रूरी ही समझे कांधा देना तो अर्थी के पीछे से कंधा देने का प्रयास करिये वरना आगे से कंधा देने का मतलब वो मय्यत किसी भी समय हाथ बढ़ा कर आप का गला दबोच सकता है।
 
कहा था न बहुत कठिन है इस नगरवासियों के मिजाज़ को समझना।दरअसल यह बनारस मस्त लोगों की मस्त नगरी है,जैसा सवाल करेंगे जवाब भी उसी अंदाज में दिया जाता है।
   
वैसे बनारस जिसे पूर्वांचल की राजधानी, प्राचीन नगरी,देवी देवताओं,पीर फ़क़ीरों की ऐतिहासिक धरती भी कहा जाता है।सुबह ए बनारस के लिए भी यह नगरी काफी मशहूर है और बनारसी पान, बनारसी साड़ी का तो पूछना ही क्या।
   
बनारसी साड़ी की बात करें तो यह वही कबीर की नगरी है जो पूरी दुनिया मे बनारसी साड़ियों का केंद्र कहा जाता है, यानी बनारसी साड़ियों के लिए काफी मशहूर है ये शहर। ये अलग बात है इधर कुछ वर्षों से वाराणसी वस्त्र एवं बनारसी साड़ियों के कारोबारी अपने वजूद की पहचान बचाने के जद्दोजहद में मसरूफ हैं।नोटबन्दी,जी एस टी,और कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन ने इनका कारोबार ही चौपट कर दिया है।
 
अब बात बनारस के बुनकरों की।सच तो यही है कि, जिस तरह बनारस को गंगा से अलग करके नही देखा जा सकता उसी तरह बुनकरों को बनारस से जुदा कर के नही समझा जा सकता।गोया बनारस से बुनकरों का रिश्ता चोली दामन का है या वही रिश्ता है जो कबीर का ताने बाने से, बिस्मिल्लाह खान का शहनाई से या मुंशी प्रेम चंद का साहित्य से था।
 
बात वाराणसी वस्त्र,बनारसी साड़ियों के करें और ज़िक्र बुनकरों की न हो यह कहाँ मुमकिन।बनारस में बुनकरों की जन संख्या लाखों में है।कहते है बनारसी बुनकरों का कई सौ साल पुराना ये पुश्तैनी कारोबार है और सच यह भी है है कि इस पेशे से 90% जुड़ाव मुस्लिम कम्युनिटी के लोगों का ही है।दरअसल यहां के बुनकर अपने इस पुश्तैनी कारोबार से बहुत प्रेम करते हैं लिहाज़ा इस से अलग हट कर वो कभी कुछ और सोचते भी नही।बच्चे बूढ़े जवान यहां तक कि इनके घरों की महिलाएं भी बहुत मेहनती होती हैं यानी इस कारोबार में सब एक दूसरे का सहयोग करते हैं।
  
हाँ यह लिखना तो भूल ही गए कि यही वो कम्युनिटी है जहां सरदारी अब भी बाक़ी है।हर इलाके का अपना एक अलग सरदार होता है यह अलग बात है पांचों के सरदार हों या 14, 22, 52, 64ठों के सरदार,उनका काम पांच पंचायत,मुर्री बंद का एलान व दुआ खानी के एलान से आगे नही बढ़ता।वो कभी बुनकर हित मे किसी बड़े आंदोलन या गरीब बुनकरों की मजदूरी बढ़ाने की बात नही करते।हां शादी ब्याह में क्या खिलाना पिलाना है, किसका मकान बेचना बिकवाना है, इसके लिए वो बहुत एक्टिव माने जाते है।एक और खूबी है इस बुनकर समाज मे,वो यह कि आज भी बहुत सारे लोग दहेज में 5 बर्तन दे कर ही शादी ब्याह की रस्म पूरी कर लेते हैं।और बड़ी खराबी यह है कि मुट्ठी भर अमीर बुनकर हज़ारों हज़ार गरीब बुनकरों का शोषण आज भी धड़ल्ले से करते हैं।
   
 इस शहर में इस कम्युनिटी का अपना एक क़ाज़ी अपना एक मुफ़्ती भी होता है पर इनका काम जो आज तक मैं ने देखा है केवल ईद बकरीद के चांद का एलान करने से अधिक या ऊपर कुछ भी नही।
 
सैर सपाटे के लिए भी यह बुनकर बिरादरी बहुत मशहूर है।संडे का दिन आया नही कि एक ग्रुप बना कर किसी बाड़े, किसी धार्मिक,ऐतिहासिक अस्थलों पर पहुंच कर पकाने खाने के इंतेज़ाम में लग जाते हैं।कहना गलत नही होगा कि यह जितनी मेहनत से बिनकारी का काम करते है,अपने फुरसत का समय इस्तेमाल करना भी खूब जानते है।
  
वैसे यह बुनकर बिरादरी होते बड़े अमन पसंद हैं और जज़्बाती तो इतने कि जो ठान लेते वो कर गुज़रते।चुनाव के दिनों में तो इन के बीच का माहौल एक बड़े उत्सव से कम नही होता।दिन भर काम करते हैं और रात होते ही राजनीतिक चर्चा तो इतने ऊपर की करते हैं के बड़े बड़े राजनीतिक गुरु इन के बीच आकर घुटने टेक दें। ये अलग बात है इतनी बड़ी संख्या में होने के बावजूद अब इन कुछ वर्षों से अपने बीच के किसी को एम पी,एम एल ए भी नही चुन पाते।
     
बहरहाल.. बात बुनकर व इन बुनकरों के वाराणसी वस्त्र,बनारसी साड़ियों के कारोबार की करें तो एक साड़ी तैयार करने या एक पॉवरलूम बिठाने में इन्हें कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और तैयार हो भी जाये तो उनको इस की कीमत ,मेहनताना कब कितने दिनों में नसीब होगा इनको खुद भी पता नही होता।कारण बनारसी साड़ियों का पूरा कारोबार ही क्रडिट बिज़नेस पर आधारित है।यानी कोठीदर तैयार माल तो ले लेता है पर वो पेमेंट कम से कम 3 महीने के बाद ही कर सकता है।और इधर है के किसी भी गद्दी मालिक को ताने से बाने तक, यहां तक कि मजदूरी का इंतज़ाम भी उन्हें पहले ही कर लेना पड़ता है। कहते हैं एक बनारसी साड़ी(हाथ करघा पर) तैयार करने में 10 से 15 दिन का समय लगता है जिसमे मजदूरी केवल  ढाई से तीन हज़ार बैठ जाते हैं। इसी तरह साटन की साड़ी बनाने में एक सप्ताह लगता है जिसमे दो हज़ार का मटेरियल लग जाता और मेहनताना मजदूर को 600/700 देना पड़ता है और बिक्री 2800 से तीन हज़ार रुपये ही मालिकान को मिल पता है। वो भी ये रक़म किसी गद्दी दार को कब मिलेगा पता नही क्योंकि इनका सारा कारोबार ही  उधार पर अधारित है।
    
फिलहाल बनारस में बनारसी साड़ी का काम मंदा हो चुका है।इसलिए हथकरघा भी अब 50 ,60 हज़ार से अधिक नही रह गए।1985 के बाद से इन बुनकरों ने अपने बिनकारी का कार्य अधिक्तर पावर लूम पर शुरू कर दिया है।बताया जाता है कि फिलहाल बनारस आस में लगभग 3 से 4 लाख पावर लूम चल रहे है और बुनकर मजदूरों की संख्या भी लग भाग इतना ही है।दिन हो या रात आदमपुर,जैतपुरा, लल्लापुरा,अलइपूरा हो या मदनपुर,लोहता,आशापुर खोजवा हो या लोहता, बजरडीहा का बुनकर इलाका पॉवरलूम के खटर पटर से पूरा इलाका गूंजता रहता है।
    
 इन पावर लूम पर काम करने वाले मजदूर बताते हैं कि  एक दिन में 10 से 12 घंटे काम करने के बाद मुश्किल से उन्हें 300/400 रुपये मेहनताना मिल पाते हैं।उनकी शिकायत है कि बुनकरों के गद्दीदार उनकी मजदूरी बढ़ाने की कभी सोचते ही नही।15/20 वर्ष पहले जो मजदूरी तय थी आज भी उसी मजदूरी पर काम करना पड़ता है जब कि गद्दीदार का कहना है कि मजदूर तो केवल मेहनत कर के 300/400 नकदी पा भी जाते है पर हम गद्दीदार पूरे मटेरियल देने के बाद भी यही 300/400 का लाभ एक साड़ी में उठा पाते है वो भी पार्टी या कोठीदर हमें यह रकम कब देंगे हमें खुद ही पता नही होता।
        
जैसा के ऊपर लिखा जा चुका है कि जहां इस शहर में कभी लाखों हथकरघा पाए जाते थे अब उनकी संख्या घट कर 50 से साठ हजार पर ही सिमट आई है।यानी इस करघे की जगह पॉवरलूम ने ले लिया है।कोई सिंगल/डबल पावर लूम चलाने लगा है तो कोई अपना माल पिक्कम पिट मशीन पर, तो कोई रिपेयर मशीन पर तैयार करने लगा है।कहते हैं केवल बनारस आस पास के बुनकर हर महीने करोड़ों रुपये का बिज़नेस देते है पर इन्हें सरकारी सब्सिडी के नाम पर कुछ नही हासिल होता और अगर कोई छोटे मोटे योजना का लाभ मिल भी जाता तो बुनकरों के ठेकेदार,उनके बुनकर संस्थाओं के पदाधिकारी ही ऊपर ऊपर डकार जाते हैं।साड़ी कारोबारी सरदार हाफिज नूरुद्दीन अंसारी के मुताबिक बुनकर हर सरकार में ठगे गए हैं पर मौजूदा सरकार में तो बुनकर काफी तेजी से बर्बाद हुए हैं।नोटेबन्दी,जी एस टी,कोरोना महामारी के कारण लोक- डाउन ने बुनकरों का कारोबार लगभग तबाह कर दिया है।नतीजा केवल बनारस आस के लगभग 80% पावर लूम तो लॉक-डाउन के कारण ही बंद हो चुके हैं।और अब मौजूदा सरकार ने फ्लैट रेट पर दिए गए बिजली की योजना भी 2020 से समाप्त कर दिया तो बुनकरों की चिंता और भी बढ़ चुकी है।
       
फ्लैट रेट पर बुनकरों को बिजली देने की योजना 2006 में सपा सरकार ने किया था।यानी एक पॉवरलूम चलाने पर बुनकर को हर महीने एक फिक्स्ड रेट 72 रुपये  देने पड़ते थे जिसे योगी सरकार ने 2020 में खत्म कर दिया है और अब मीटर रीडिंग यानी यूनिट के हिसाब से बिल की अदायगी करने का फरमान जारी कर दिया गया है।जिस से बुनकर और भी चिंतित हो चुके हैं कि अब उनके कारोबार का क्या होगा।नतीजा केवल बनारस आस पास के बुनकर ही नही पूरे उत्तरप्रदेश के बुनकरों ने 100% लूम बन्द कर के हड़ताल पर चले गए थे।उनका कहना था कि अगर प्रदेश सरकार ने फ्लैट रेट बिजली बहाली की योजना को बरक़रार नही रखा तो वो इस योजना के तहत जो बिजली कनेक्शन दिया गया था हम प्रदेश के सारे बुनकर अपने कनेक्शन कटवा देने का अभियान शुरू करेंगे और इसके लिए प्रदेश व केंद्र सरकार से सड़क से सांसद तक एक बड़ी लड़ाई लड़ेंगे।
    
बताते चलें कि बनारस के सांसद खुद नरेंद्र मोदी जी है या इस शहर से उनके कई मंत्री भी हैं लेकिन इस हड़ताल के दौरान उनके कोई नेता, संत्री मंत्री बुनकरों की समस्या समझने और हल करने कराने का प्रयास नही किये।
 
वो तो अच्छा हुआ के हड़ताल के तीसरे ही दिन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस समस्या को संजीदगी से लिया और बुनकर प्रतिनिधियों को लखनऊ बात करने के लिए बुला भेजा और बुनकरों की समस्याओं को उनके निर्देश अनुसार उनके अधिकारियों ने उनकी बात सुनी।वरना इस हड़ताल से अमीर बुनकरों का क्या होता  नही पता पर रोज कमाने खाने वाले मजदूर किस क़दर भूखमरी का शिकार हो जाते अंदाज़ा नही लगाया जा सकता।
 
 
बहरहाल इस सिलसिले में योगी जी के निर्देश पर यह बात तय पाई कि, जुलाई 2020 तक पिछले फ्लैट रेट   योजना के तहत ही बिल जमा होंगे और अगस्त में फ्लैट रेट पर ही आधारित एक नई योजना का एलान किया जाएगा जो बुनकरों के हित मे होगा।हालांकि सवाल अब भी उठ रहे है बुनकरों के बीच कि अगर अगस्त में किसी नई योजना का एलान नही हुआ या हुआ भी तो अगर 72×5 बढ़कर योजना आई तो क्या यह बुनकर स्वीकार कर लेंगे या फिर दोबारा पॉवरलूम बन्द कर के हड़ताल पर चले जायेंगे।और सवाल यह भी उठ रहा है कि हमारे बुनकर तंजीम के लोग गरीब बुनकर मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने की बात कब करेंगे?.
   
चलते चलते यह भी कहता चलूं की प्रदेश सरकार के मुखिया बुनकर हित मे बिजली की या अन्य जो भी योजना लाएं,यह तय तो होना ही चाहिए कि इसका लाभ उन गरीब बुनकरों को प्राप्त हो जो रोज कमाने खाने वाले बुनकर हैं ,या जो बुनकर दो एक पावर लूम चला कर अपना धंधा करते है ना कि उन अमीर बुनकरों को मिल जाये जो करोड़ों में खेलते हैं या जो केवल बुनकर कार्ड बनवाकर बुनकर बने बैठे हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ उठा लेते हैं।और नज़र उन पर भी रखनी होगी जो फिक्स्ड रेट पर बिजली कनेक्शन ले कर अपने अपने घरों दफ्तर में दो चार ए सी भी चलाते हैं।
       
अन्य चर्चित लेखक लेख
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल