कारगिल दिवसः युद्ध की 19वीं वर्षगांठ पर कॄतज्ञ राष्ट्र ने वीर शहीदों को दी श्रद्धांजलि

कारगिल दिवसः युद्ध की 19वीं वर्षगांठ पर कॄतज्ञ राष्ट्र ने वीर शहीदों को दी श्रद्धांजलि नई दिल्लीः भारत आज कारगिल विजय की 19वीं वर्षगांठ मना रहा है. आज से ठीक बीस साल पहले 1999 को भारतीय सेना ने अपने पराक्रम से देश की जमीन पर कब्जा करने वाले पाकिस्तानियों घुसपैठियों को खदेड़ दिया था. इसके साथ ही भारत के जवानों ने सरहदों की निगहबानी की कसमें एक बार फिर से दुहराई थीं. देश की जमीन पर कब्जा कर चुके घुसपैठियों को खदेड़ने में सैकड़ों जवानों को कुर्बानी देनी पड़ी.

इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर देशवासी को गर्व होना चाहिए. करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ी गई इस जंग में देश ने लगभग 527 से ज्यादा वीर योद्धाओं को खोया था वहीं 1300 से ज्यादा घायल हुए थे.

वैसे तो पाकिस्तान ने इस युद्ध की शुरूआत 3 मई 1999 को ही कर दी थी जब उसने कारगिल की ऊंची पहाडि़यों पर 5,000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था.  इस बात की जानकारी जब भारत सरकार को मिली तो सेना ने पाक सैनिकों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया.

भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का भी इस्तेमाल किया. इसके बाद जहां भी पाकिस्तान ने कब्जा किया था वहां बम गिराए गए. इसके अलावा मिग-29 की सहायता से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया गया.

इस मौके पर क्रिकेटर विरेंद्र सहवाग ने शहीद जवानों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी है.

सहवाग ने ट्विटर पर लिखा है कि हमें हमने जवानों के लिए अभिमान का एक आंसू तो बहाना चाहिए. उन्होंने ट्विट किया, “हमारे हीरो जिन्होंने भारत के भविष्य के लिए अपने जानों की कुर्बानी दी उनके लिए गर्व के एक आंसू तो बहाइए…उन्होंने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर जंगें लड़ी, वो जगह बेहद खतरनाक थी, ऊंची-ऊंची पहाड़ियां थी…उस वक्त देश एकजुट होकर उनके साथ खड़ा था.”

टीम इंडिया के सदस्य रहे पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने भी कारगिल विजय दिवस पर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी है.

मोहम्मद कैफ ने लिखा है कि कारगिल विजय दिवस पर शहीदों को शत-शत नमन. उन्होंने ट्वीट किया, “शहादत का सेहरा बाँधे, मृत्यु से विवाह रचाता, जन्मभूमि की रक्षा खातिर, अपनी भेंट चढ़ाता हूं, मैं तेरा बेटा बनकर आया, इस दुनिया मे मां, लेकिन भारत मां का बेटा बनकर, इस दुनिया से जाता हूं, कारगिल विजय दिवस पर शहीदों को शत-शत नमन.”

बता दें कि 1999 की सर्दियों में पाकिस्तान की सेना ने घुसपैठियों के वेश में आकर करगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। मई में जब पहाड़ों की बर्फ पिछलनी शुरू हुई तो भारतीय सेना को चोटियों पर पाक घुसपैठियों की मौजूदगी का पता चला. इसके बाद भारत ने ऑपरेशन विजय नाम से अभियान चलाकर इस क्षेत्र को पाकिस्तानियों के कब्जे से आजाद करवाया.

पर इन सबके बीच सरकारी उपेक्षा की बातें दिल तोड़ देती हैं. हरियाणा के जांबाज जवानों ने भी करगिल युद्ध के दौरान अपना बलिदान दिया था. सिरसा के गांव तरकांवाली के सिपाही कृष्ण कुमार ने भी देश के खातिर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. गांव तरकांवाली के जयसिंह बांदर का 25 वर्षीय पुत्र कृष्ण कुमार कारगिल युद्ध के समय जाट रैजिमेंट में सिपाही के पद पर तैनात था. कृषक जय सिंह के चार पुत्रों में सबसे छोटा कृष्ण ही था. शुरू से ही उसमे देश सेवा का जज्बा था.

परंपरागत कृषि कार्य को छोड़कर उसने फौज में जाने का फैसला लिया. इस नौजवान ने देश सेवा के लिए सेना को चुना और शहादत से करीब दो वर्ष पूर्व ही जाट रैजिमेंट में भर्ती हुआ. पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल की जमीन पर कब्जा करने की हिमाकत की तो भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया था. युद्ध में कृष्ण कुमार जैसे अनेक वीरों ने शहादत दी थी.

शहीद कृष्ण कुमार की शहादत को सम्मान देते हुए तत्कालीन सरकार ने अनेक वायदे और घोषणाएं की थीं. विशेष रूप से गांव में स्थित राजकीय मिडल स्कूल का नाम शहीद कृष्ण के नाम पर करने और उसे अपग्रेड करने का वायदा किया गया था. इसके अलावा कृष्ण के नाम पर गांव में मिनी स्टेडियम की स्थापना और उसके घर तक सड़क का निर्माण करने का वायदा किया गया था. साथ ही शहीद की प्रतिमा गांव में लगाने की बात भी की गई थी.

साल-दर-साल बीतते गए लेकिन इनमें से कोई वायदा पूरा नहीं हुआ. स्कूल का नामकरण तो कृष्ण कुमार के नाम पर कर दिया गया लेकिन उसे 12वीं के दर्जे तक अपग्रेड नहीं किया गया. शहीदों का स्मारक युवाओं को प्रेरणा देता है. सरकार ने गांव में शहीद कृष्ण कुमार की प्रतिमा ही नहीं लगाई. परिजनों ने खुद के खर्चे पर कृष्ण कुमार की प्रतिमा लगाई और आज तक उसका रखरखाव गांव के लोग और परिजन ही कर रहे थे. लेकिन अब शहीद कृष्ण की प्रतिमा खंडित हुई पड़ी है और चबूतरा भी जगह-जगह से खंडित हुआ पड़ा है.

शहीद कृष्ण कुमार के घर तक न ही तो सड़क पहुंची और न ही मिनी स्टेडियम का निर्माण हो पाया. वायदे अधूरे रह गए, घोषणाएं पूरी नहीं हुईं. हालांकि प्रशासन की ओर से सिरसा शहर में एक चौराहे का नामकरण जरूर शहीद कृष्ण कुमार के नाम पर किया गया और प्रतिमा भी लगा दी गई.

घोषणाओं के पूरा होने का इंतजार करते-करते हुए शहीद कृष्ण के माता-पिता ही दुनिया से रुकस्त हो गए. सम्मान बाकी रह गया. शहादत का सरकारी अधिकारी या मंत्री जिक्र तक नहीं करता. शहीदी दिवस आता है तो कोई सम्मान करने भी नहीं पहुंचता. शहीद कृष्ण कुमार के परिवार नम् आंखों से अपने सपूत को याद करते हैं और साथ ही उसकी शहादत को पूरा सम्मान नहीं मिलने का भी दर्द भी बयां करते है. शहीद कृष्ण कुमार की पत्नी व भाभी विद्या देवी का कहना है कि सरकार ने कृष्ण के शहीद होने के बाद एक गैस एजेंसी और उसके भाई को नौकरी तो दे दी लकिन कुछ घोषणाएं पूरी नहीं कीं. कोई याद नहीं करता. न कोई पूछने आता है.
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