दादासाहब फाल्के: भारतीय फिल्म जगत के पितामह के 148वें जन्मदिन पर गूगल ने बनाया डूडल

दादासाहब फाल्के: भारतीय फिल्म जगत के पितामह के 148वें जन्मदिन पर गूगल ने बनाया डूडल नई दिल्लीः सर्च इंजन गूगल ने आज अपना डूडल दादासाहब फाल्के के को समर्पित किया है. भारतीय फिल्म उद्योग के पितामह दादासाहब फाल्के का जन्म 1870 में आज ही के दिन यानी 30 अप्रैल को हुआ था. 16 फरवरी, 1944 को नाशिक में उनका निधन हुआ था.

दादासाहब फाल्के के सम्मान में भारत सरकार ने 1969 में 'दादासाहब फाल्के अवॉर्ड' देना शुरू किया. यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है. सबसे पहले यह पुरस्कार पाने वाली देविका रानी चौधरी थीं, और इस साल यह विनोद खन्ना को मरणोपरान्त दिया गया.

फोटोग्राफर के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाले दादासाहब कैसे फिल्मी दुनिया में आए, जानें उससे जुड़ी रोचक बातें...

1. दादासाहब फाल्के का नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के है। उनका जन्म महाराष्ट्र के त्र्यंबकेश्वर में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे।

2. 1885 में उन्होंने सर जे.जे.स्कूल ऑफ आर्ट्स में पढ़ाई की जहां से वे कला भवन ऑफ बड़ौदा चले गए। वहां उन्होंने चित्रकला, पेंटिंग और फटॉग्रफी सीखी।

3. उन्होंने फटॉग्रफर के तौर पर अपना करियर शुरू किया और बाद में एक प्रिंटिंग प्रेस शुरू की। वह नई टेक्नॉलजी सीखने के लिए जर्मनी भी गए थे।

4. उनका फिल्मी दुनिया में आने का सफर बड़ा रोचक है। उन्होंने एक साइलेंट मूवी 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखी। फिल्म देखने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी से पैसा उधार लिया और फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' बनाई। किसी भारतीय द्वारा बनाई गई इस पहली फिल्म को सार्वजनिक रूप से कोरोनेशन सिनेमा, मुंबई में 3 मई, 1913 को दिखाया गया।

5. राजा हरिशचंद्र की सफलता के बाद उन्होंने कई फिल्में बनाईं। अपने 19 सालों के फिल्म करियर में उन्होंने 95 फिल्म और 26 शॉर्ट फिल्में बनाईं। सत्यवान सावित्री, मोहिनी भस्मासुर, लंका दहन आदि उनकी कुछ प्रमुख फिल्में थीं। उनकी आखिरी साइलेंट मूवी सेतुबंधन थी और उनकी आखिरी मूवी गंगावतरण थी। बोलती फिल्म जब बनना शुरू हुई तो फिल्म मेकिंग का उनका स्टाइल अप्रचलित हो गया।
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