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यस बैंक पर आरबीआई के फैसले के बाद आपके मन में उठ रहे हर सवाल का जवाब

जनता जनार्दन संवाददाता , Mar 08, 2020, 14:28 pm IST
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यस बैंक पर आरबीआई के फैसले के बाद आपके मन में उठ रहे हर सवाल का जवाब

दिल्ली: वित्तीय संकट से जूझ रहे देश के चौथे सबसे बड़े प्राइवेट बैंक यस बैंक का कामकाज आरबीआई ने अपने हाथ में ले लिया है. ग्राहकों के पैसे बचाने के लिए शर्तों के साथ निकासी की सीमा तय कर दी गई है. खाता धारक अब हर महीने 50 हजार रुपए निकाल सकेंगे. विशेष परिस्थितियों में खाता धारक पांच लाख तक निकाल सकेंगे.


यस बैंक पर आरबीआई का फैसला क्या है?
2019 में 3 लाख 80 हजार 826 करोड़ रुपए की पूंजी वाले यस बैंक पर 2 लाख 41 हजार 500 करोड़ रुपए का कर्ज है. बैंक का एनपीए बढ़ा तो RBI ने कमान अपने हाथ में ली. बैंक के निदेशक मंडल को 30 दिन के लिए भंग किया है. बैंक की देखरेख के लिए प्रशासक नियुक्त किया गया. SBI के पूर्व डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ फाइनेनशियल ऑफिसर प्रशांत कुमार यस बैंक के नए प्रशासक हैं.


खाता धारकों की बैंक से पैसा निकालने की सीमा 50 हजार रुपए महीना तय कर दी गई है. विशेष परिस्थितियों में 5 लाख रुपए तक खाते से निकाले जा सकते हैं. विशेष परिस्थिति का मतलब, पढ़ाई, इलाज और शादी है.


आरबीआई को क्यों उठाना पड़ा ऐसा कदम?
आरबीआई ने कदम इसलिए उठाया है ताकि बैंक की वित्तीय हालत को सुधारा जा सके. खाता धारकों के पैसों को डूबने से बचाया जा सके. RBI को ग्राहकों और बैंक की मदद के इसलिए आना पड़ा क्योंकि 2004 में शुरू हुए यस बैंक की आर्थिक आर्थिक हालत ठीक नहीं थी.


बैंक कब से गड़बड़ी कर रहा था?
बैंक पर कर्ज का बोझ बढ़ा रहा था और बैंक के शेयर लगातार गिर रहे थे. ग्राहकों को अपने पैसों की चिंता हो रही थी. 2018 से RBI को लग रहा था कि बैंक अपने NPA और बैलेंसशीट में गड़बड़ी की है. इसके बाद RBI के दबाव में यस बैंक के चेयरमैन राणा कपूर को पद छोड़ना पड़ा.


यस बैंक को लेकर अब आगे क्या होगा?
YES बैंक की कमान अपने हाथ में लेने के बाद आरबीआई ने नोटिफिकेशन जारी किया. इस नोटिफिकेशन में कहा है कि खाता धारकों को घबराने की जरूरत नहीं है. जल्दी ही बैंक के लिए रीस्ट्रक्चरिंग प्लान पेश किया जाएगा और ग्राहकों के पैसों को सुरक्षित किया जाएगा. उधर यस बैंक को वित्तीय संकट से उबारने के लिए SBI ने कदम आगे बढ़ा दिए हैं. SBI ने यस बैंक में निवेश को मंजूरी दे दी है.

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