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बाबा साहब कहते थे कि वे पहले भी भारतीय हैं, बाद में भी भारतीय हैं, और अंत में भी भारतीय हैं: आंबेडकर जयंती पर महू में राष्ट्रपति
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Apr 14, 2018, 18:45 pm IST
Keywords: Ambedkar Jayanti President Ram Nath Kovind127th birth anniversary Babasaheb Dr BR Ambedkar Babasaheb Ambedkar Babasaheb Dr BR Ambedkar Ambedkar birth anniversary भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर आंबेडकर जयंती डॉ आंबेडकर डॉ. बीआर आंबेडकर
![]() प्रस्तुत है आंबेडकर जयंती के अवसर पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का उद्बोधन महू, 14 अप्रैल, 2018 1. आज भारत-रत्न बाबा साहब डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर की 127वीं जयंती है। आज प्रात: दिल्ली में संसद भवन में बाबा साहब की प्रतिमा पर भारत के उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा हजारों की संख्या में उपस्थित बाबा साहब के अन्य अनुयाइयों के साथ मैंने भी सभी देशवासियों की ओर से उनको नमन किया। 2. आज के दिन से जुड़े ‘चौदह’ अंक का मेरे लिए सुखद संयोग और महत्व है। आज चौदह अप्रैल बाबा साहब की जयंती का पावन दिवस है। मुझे भी भारत का चौदहवां राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 3. राष्ट्रपति बनने के बाद बाबा साहब की जयंती के अवसर पर उनकी जन्म-स्थली महू में मेरा आना पहली बार हो रहा है। इस पवित्र भूमि पर मैं पहले भी कई बार आ चुका हूं। लगभग एक वर्ष पूर्व जब मैं बिहार का राज्यपाल था उस समय भी यहां ‘डॉक्टर बाबा साहब आंबेडकर राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय’ के एक समारोह में भाग लेने का सुअवसर मिला था। मैं जब भी इस पावन भूमि पर आता हूं तो बाबा साहब के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा को और अधिक मजबूती प्रदान होती है। इतनी बड़ी संख्या में आप सब का यहां मौजूद होना यह जाहिर करता है कि आप जैसे सभी देशवासियों को बाबा साहब पर कितना गर्व है। 4. जब मैं जयंती समारोह स्थल पर प्रवेश कर रहा था तो ‘जय भीम’ के नारों से आप सबने मेरा स्वागत किया। इस स्वागत के लिए मैं आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। हम सब जानते हैं कि जय भीम का मतलब है - ‘डॉ. आंबेडकर की जय’। ‘डॉ. आंबेडकर की जय’ का मतलब है - उनकी विरासत तथा आदर्शों और उनके द्वारा देश को दिए गए संविधान - इन सबकी जय हो। 5. डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में बना हमारा संविधान सभी देशवासियों को समता या समानता का मूल अधिकार देता है। इस मूल अधिकार के कारण हरेक भारतवासी, गरिमापूर्ण जीवन जी सकता है। इसी संविधान द्वारा दिया गया दूसरा बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकार है प्रत्येक व्यक्ति को मिला हुआ मतदान का अधिकार जो कि हमारे लोकतन्त्र का आधार है। देश के गरीब, पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए इन दोनों अधिकारों का विशेष महत्व है। यही संविधान शिक्षा का अधिकार भी देता है। नागरिकों को मिले सभी अधिकारों का समुचित उपयोग करने के लिए शिक्षा का होना जरूरी है। बाबा साहब के अनुसार मनुष्य के हर प्रकार के विकास के लिए शिक्षा एक आधारभूत जरूरत होती है। इसलिए उन्होंने इन वर्गों को जो नारा दिया था कि ‘‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’’, उसमें भी बाबा साहब ने शिक्षा को ही प्राथमिकता दी थी। 6. बाबा साहब के मुताबिक शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान तक ही सीमित होना नहीं था। उनका कहना था कि शिक्षा मनुष्य की प्रगति की कसौटी है। बाबा साहब के अनुसार जिस इन्सान में इतनी समझदारी नहीं है कि वह अपने भले और बुरे के बारे में समझ सके, ऐसी शिक्षा पाने वाले व्यक्ति को शिक्षित नहीं कहा जा सकता, अर्थात् उसकी शिक्षा बिना समझदारी के अधूरी होती है। 7. मैंने इस बात का उल्लेख इसलिए किया कि हमारा देश लोकतांत्रिक परम्पराओं के आधार पर संचालित हो रहा है; जहां चुनाव होते हैं, सरकारें बनती हैं और देश के नागरिकों के भविष्य की रूपरेखा तैयार की जाती है। आज जरूरत यह है कि इन लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए, लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए, तथा अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए, अपने भले और बुरे की पहचान करने के लिए सदैव जागरूक रहना होगा; समझदारी से आगे बढ़ना होगा। 8. हम सब जानते हैं कि नेहरू जी के प्रथम मंत्रिमण्डल में बाबा साहब को विधि मंत्री के रूप में जिम्मेदारी मिली थी। अगर हम लोग कभी ध्यान से देखें तो पता चलता है कि उस पूरे मंत्रिमंडल में उच्च-शिक्षा की दृष्टि से डॉ. आंबेडकर के पास देश और विदेश के विश्वविद्यालयों से प्राप्त जितनी डिग्रियां और उपाधियां थीं, उतनी मंत्रिमण्डल के किसी अन्य सदस्य के पास नहीं थीं। संभवतः इसका एक प्रमुख कारण यह रहा होगा कि वे अपने विद्यार्थी जीवन में सदैव अपना सारा ध्यान और अपनी सारी ऊर्जा केवल और केवल शिक्षा पर ही लगाते रहे। बाबा साहब यदि ऐसा न करते और भटक गए होते, तो वे इतने बड़े विद्वान न बने होते। 9. बाबा साहब के जीवन के बारे में जानकर सभी को, खासकर युवाओं को, बहुत प्रेरणा मिलती है। कदम-कदम पर अभाव, अपमान और अड़चनों का सामना करते हुये वंचित समाज के एक बालक ने दुनियां के सबसे सम्मानित विश्वविद्यालयों में असाधारण विद्यार्थी के रूप में सम्मान अर्जित किया। जब वे केवल 27 वर्ष के थे तब उनका एक महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित हुआ था जिसका नाम है ‘स्माल होल्डिंग्स इन इंडिया एंड देयर रेमेडी’। उस लेख के द्वारा डॉ. आंबेडकर एक अर्थशास्त्री के रूप में स्थापित हो गए। 10. बाबा साहब के जीवन का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में सदैव अहिंसा और करुणा का मार्ग चुना। जिन मुद्दों पर बाबा साहब को आम जनता का हित दिखता था, उन मुद्दों को वे हमेशा अहिंसा के रास्ते पर चलकर आगे बढ़ाते रहे और अन्ततोगत्वा उन्हें सफलता भी मिली। 11. देश की महिलाओं को सम्पत्ति में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा तक दे दिया था। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों के कल्याण की बात की, लेकिन इसके लिए उनका रास्ता हमेशा अहिंसात्मक ही रहा। संवाद के द्वारा, चर्चा के द्वारा लोगों के सामने अपनी बात रख कर वे सहमति बनाते थे; क्योंकि बाबा साहब का कहना था कि यह देश अपना है, यहां के सब लोग अपने हैं और समाज के कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने हेतु जो भी करना है, वह सब सदैव अहिंसात्मक तरीकों से ही व्यापक हित में हासिल किया जा सकता है, ताकि समाज में हमेशा सौहार्द का वातावरण बना रहे। संविधान सभा में दिये गए अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा था कि अब हमारे पास विरोध व्यक्त करने के संवैधानिक तरीके मौजूद हैं, इसलिए हमें अराजकता से बचना चाहिए। 12. देश की हर समस्या के बारे में, चाहे वह समस्या समाज के किसी भी वर्ग से संबंधित हो, उन सभी विचारों में वे सदैव महात्मा गौतम बुद्ध के उपदेशों का विशेष रूप से अहिंसा एवं करुणा का, अक्षरश: पालन करते रहे। 13. बाबा साहब बहु-आयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे एक असाधारण अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता, सजग पत्रकार, और विद्वान समाजशास्त्री थे। साथ ही वे महिला सशक्तिकरण के प्रबल पक्षधर और कर्मठ समाज-सुधारक थे। अपने ‘मूक-नायक’ नाम के अखबार के द्वारा उन्होने सदियों से चुप करा दिए गए लोगों की भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। 14. भारत के रिजर्व बैंक की स्थापना में उनकी अहम भूमिका थी। सिंचाई और बिजली के उत्पादन की ‘दामोदर वैली’ और ‘हीराकुड’ जैसी बड़ी परियोजनाओं के निर्माण के मूल में भी उनके ही विचार थे। हमारे देश की बिजली की व्यवस्था के विकास में उनका मौलिक योगदान रहा है। हमारे घरों की रोशनी और खेतों की हरियाली बहुत कुछ उनकी नीतियों और विचारों की वजह से ही हैं। मजदूरों के रोज काम करने की अवधि को 12 घंटों से घटा कर 8 घंटे कराने में भी उनकी प्रमुख भूमिका थी। 15. हम सभी जानते हैं कि हमारा संविधान बाबा साहब के नेतृत्व में लिखा गया आधुनिक भारत का एक पवित्र ग्रंथ है। इस संविधान ने ही हमारे लोकतन्त्र को यह ताकत दी है कि पिछड़े और वंचित वर्गों के लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंच सकते हैं। यह भारतीय समाज को सुधारने के उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि आज उन वर्गों के लोग आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि आज राष्ट्रपति के रूप में मुझे उसी संविधान के परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करने की ज़िम्मेदारी मिली है जिसके प्रमुख निर्माता स्वयं बाबा साहब थे। 16. बाबा साहब को आप सभी एक महामानव के रूप में सम्मान देते हैं। बाबा साहब की जयंती समारोह का बड़े पैमाने पर वर्षों से किए जा रहे आयोजन के लिए मैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान जी और उनकी राज्य सरकार की टीम की सराहना करता हूं। यह आयोजन बाबा साहब के आदर्शों के प्रति तथा गरीबों और वंचितों के कल्याण के प्रति मध्य प्रदेश सरकार की निष्ठा का उदाहरण है। केंद्र सरकार द्वारा भी बाबा साहब के ‘विजन’ को साकार करने के लिए बहुत से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनके लिए मैं केंद्र में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री श्री थावरचंद गहलोत जी की प्रसंशा करना चाहता हूं। 17. राष्ट्र-पुरुष बाबा साहब कहा करते थे कि वे पहले भी भारतीय हैं, बाद में भी भारतीय हैं, और अंत में भी भारतीय हैं। आज इसी गर्व के साथ उनके समरसता के संदेश को जीवन में ढालने की जरूरत है। ‘सम-भाव’ अर्थात ‘बराबरी का भाव’ और ‘मम-भाव’ अर्थात ‘अपनेपन का भाव’ को जोड़ देने से समरसता का भाव पैदा होता है। आज समर की नहीं, समरसता की जरूरत है; अहिंसा और शांति की जरूरत है। मैं सभी देशवासियों, विशेषकर युवाओं से यह अपील करता हूं कि बाबा साहब के बताए हुए शांति, अहिंसा, और बंधुता के रास्ते पर चलें। आइये, हम सब, पूरे सौहार्द के साथ, एक-जुट होकर, बाबा साहब के सपनों का भारत बनाने के लिए आगे बढ़ने का संकल्प करें! जय भीम जय हिन्द! |
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