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नोटबंदी: कालेधन पर चोट या आरबीआई की स्वायत्तता पर 'आघात'?
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jan 04, 2017, 7:58 am IST
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![]() प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नोटबंदी के अभियान पर जिस तरह मोर्चा संभाला, कम से कम उसे देखकर तो कई विशेषज्ञों को ऐसा ही लग रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री और आरबीआई के गवर्नर रह चुके मनमोहन सिंह ने संसद में हाल ही में कहा था कि नोटबंदी के बाद बैंकिंग प्रणाली के नियमों में बार-बार संशोधन देश के लिए अच्छा नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री ने पिछले महीने राज्यसभा में कहा था, “इसका प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्री कार्यालय तथा आरबीआई पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मुझे इस बात का खेद है कि आरबीआई पूरी तरह बेनकाब हो गया है, उसकी आलोचनाएं हो रही हैं।” इस पूरे अभियान में यह बात स्पष्ट नहीं हुई है कि इस नीतिगत फैसले में केंद्रीय बैंक ने कितना हस्तक्षेप किया। आरबीआई के पूर्व गवर्नर के.सी.चक्रवर्ती ने लंदन से टेलीफोन पर आईएएनएस से कहा, “सरकार ने कहा है कि नोटबंदी की सिफारिश आरबीआई ने की। मुझे नहीं पता कि ऐसा करने के लिए सरकार ने आरबीआई पर दबाव डाला, या उसने खुद यह फैसला लिया।” चक्रवर्ती ने कहा, “मैं तब तक कुछ बोलने में सक्षम नहीं होऊंगा, जब तक बोर्ड की बैठक की रिपोर्ट सामने नहीं आ जाती।” उन्होंने सरकार के हस्तक्षेप की ओर इशारा करते हुए कहा कि आरबीआई का रुख तो हमेशा नोटबंदी के खिलाफ रहा है।” उन्होंने जोर देकर कहा, “अतीत में आरबीआई का रुख हमेशा नोटबंदी के खिलाफ रहा है।” ब्लूमबर्ग के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय बैंक ने कहा है कि 500 और 1,000 रुपये के नोटों को अमान्य करने का फैसला आठ नवंबर को शाम 5.30 बजे लिया गया, मतलब मोदी की घोषणा से मात्र तीन घंटे पहले। रातोंरात देश में मौजूद 15.44 लाख करोड़ रुपये या कुल 86 फीसदी मुद्रा अवैध घोषित कर दी गई। लोग अपने पुराने नोटों को कैसे जमा करेंगे या उन्हें नए नोटों से किस तरह बदलेंगे, इसको लेकर नियमों को रोजाना हिसाब से बदला गया। केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के संबंध में चक्रवर्ती ने कहा, “आपको यह बात समझनी चाहिए कि सरकार से आरबीआई को जो स्वायत्तता मिलती है, इसका कारण यह है कि वह उसे स्वयत्तता देना चाहती है। अगर सरकार किसी निकाय को स्वायत्तता नहीं देना चाहे, तो आरबीआई कुछ नहीं कर सकता।” पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा ने नोटबंदी पर सीधा हमला किया है। मित्रा ने आईएएनएस से कहा, “भारत के सबसे ज्ञानी लोग आरबीआई के गवर्नर हुए हैं। इनमें वर्तमान गवर्नर उर्जित पटेल का नाम भी शामिल है। वह एक अच्छे अर्थशास्त्री हैं। लेकिन उनके आते ही यह स्वायत्त संस्था दंतविहीन हो चुकी है। आरबीआई सिर्फ सरकार के निर्देश पर नोटिस जारी कर रहा है और वापस ले रहा है। उसकी कोई मर्जी नहीं चल रही है।” उन्होंने कहा, “नोटबंदी के संदर्भ में जो सबसे खतरनाक बात है, उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। गंभीर मुद्दा यह है कि ऐतिहासिक प्रकृति के भारत के मौलिक संस्थान की अनदेखी की जा रही है और उसे प्रभावहीन किया जा रहा है। इसलिए लोगों का इस पर से विश्वास उठ रहा है। यह देश के लिए बहुत खतरनाक बात है।” जिन पैसों को अवैध घोषित किया जा चुका है, उन्हें अभी भी बदला जाना है। आरबीआई ने कहा था कि 2,000 रुपये तथा 500 रुपये के नए नोटों की शक्ल में 5.93 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट छापे जा चुके हैं। लेकिन 10 नवंबर के बाद से ही देश में अधिकांश एटीएम बंद हो गए, और जो खुले रहे, उनमें जल्द ही नकदी खत्म होने के कारण ‘नो कैश’ का बोर्ड लटक गया। पैसे निकालने की अधिकतम सीमा कम होने के बावजूद बैंकों के कैश काउंटर का यह हाल चिंताजनक है। इतना ही नहीं, कई बैंककर्मियों का भी केंद्रीय बैंक पर से भरोसा खत्म होता दिखाई दे रहा है। एक बैंक के मुख्य कार्यकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, “हां, ऐसा लगता है कि नोटबंदी के मुद्दे पर आरबीआई ने अपनी स्वायत्तता खो दी है और केंद्रीय बैंक कुव्यवस्था की भेंट चढ़ गया है।” उन्होंने कहा, “आरबीआई को चलन में मौैजूद 86 फीसदी नोटों को वापस लेने तथा उसे देश के कोने-कोने तक पहुंचनाने के सिलसिले में सामने आ रही जमीनी हकीकत से केंद्र सरकार को अवगत कराना चाहिए था।” लेकिन कुछ अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ जैसे पूर्व केंद्रीय राजस्व सचिव तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व कार्यकारी निदेशक एम.आर. शिवरमण के मुताबिक, नोटबंदी का आरबीआई की स्वायत्तता से कोई लेना-देना नहीं है। सबसे उलट वह यह मानते हैं कि हालात को बेहतर तरीके से संभालने के लिए आरबीआई को पहल करनी चाहिए थी। इंफोसिस बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष टी.वी. मोहनदास पई ने केंद्रीय बैंक की स्वयत्तता को हानि पहुंचने की बात को खारिज करते हुए कहा, “नोटबंदी से कालेधन पर लगाम लगेगी, नकली नोट खत्म होंगे और बैंकिंग प्रणाली से बाहर फंसे धन प्रणाली का हिस्सा बनेंगे।” |
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