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रियो पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्ट मरियप्पन थांगावेलू की संघर्ष की कहानी
जनता जनार्दन डेस्क ,
Sep 10, 2016, 12:35 pm IST
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![]() ये हैं भारत के पैरा गोल्ड मैडलिस्ट के बारे में कुछ खास बातें: मरियप्पन का जन्म तमिल नाडु के सालेम शहर के पास पेरियावादमगाती नाम के गांव में हुआ था। उनकी मां सब्जियां बेचने का काम करती हैं। कुछ साल पहले उन्होंने मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए 3 लाख का लोन लिया था, जो वो आज तक नहीं चुका पाये हैं। जब मरियप्पन पांच साल के थे तब एक बस दुर्घटना में उनका सीधा पैर चोटिल हो गया था। स्कूल जाते समय एक बस मरियप्पन के पैर पर चढ़ गई, जिसकी वजह से उनके सीधे पैर का घुटना बुरी तरह घायल हो गया और वो हमेशा के लिए विकलांग हो गए। बचपन में उन्हें वॉलीबॉल में दिलचस्पी थी। उन्होंने अयोग्यता के बावजूद अपने स्कूल की तरफ से वॉलीबॉल खेला। स्कूल में मरियप्पन के स्पोर्ट्स टीचर ने उनके छिपे हुनर को पहचाना। 15 साल की उम्र में उन्होंने जीवन की पहली प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सिल्वर जीत कर सभी को चौंका दिया। राष्ट्रीय पैरा-एथलीट चैंपियनशिप के दौरान उनके कोच सत्यनारायण ने उनके हुनर को पहचाना, उस वक्त मरियप्पन 18 साल के थे। बेंगलुरु में कठिन ट्रेनिंग के बाद वो 2015 में वर्ल्ड नम्बर-1 बने। टी-42 में वो एथलीट आते हैं जो शरीर के निचले हिस्से से विकलांग हैं। मरियप्पन के गोल्ड की बदौलत भारत मेडल टैली में 26वें नम्बर पर पहुंच गया है। मरियप्पन के लिए चैंपियनशिप जीतना नया नहीं है। तमिल नाडु के इस एथलीट ने ट्यूनेशिया ग्रैं प्री में 1.78 मीटर की जम्प लगाकर गोल्ड मेडल जीता था और रियो के लिए क्वालिफाई किया था। पैरालंपिक में ए-लेवल में क्वालिफाई करने के लिए 1.60 मीटर की जम्प चाहिए होती है। रियो पैरालंपिक फाइल में, मरियप्पन ने 1.89 मीटर की जम्प के साथ गोल्ड मेडल अपने नाम किया। पैरालंपिक खेलों के इतिहास में भारत के लिए ये तीसरा गोल्ड है। इससे पहले 1972 में तैराक मुरलीकांत पेटकर और जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझारिया ने 2004 में गोल्ड जीता था। |
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