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लेखन मेरा दूसरा जीवन: राजनयिक सरना
प्रीता नायर ,
Jan 05, 2016, 14:03 pm IST
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![]() सरना की नवीं किताब ‘सेकेंड थाट’ बाजार में उपलब्ध है। उनका कहना है कि कुछ भी उन्हें उनका दूसरा जीवन, लेखक का जीवन भरपूर तरीके से जीने से नहीं रोक सकता। ‘सेकेंड थाट’ समाचार पत्र द हिंदू में सात साल तक प्रकाशित सरना के कॉलम का संग्रह है। इसमें पाठक को बीते वक्त की याद दिलाने वाले पथ पर लेखक की निजी यादों में गुंथी एक साहित्यिक यात्रा देखने को मिलती है। इसमें खुशवंत सिंह, मारियो वरगास लोसा और इजरायली लेखक आमोस ओज के साथ लेखक की बातचीत से लेकर समरसेट मॉघम, ग्राहम ग्रीन, जे.एम. कोएट्जी, ओरहन पामुक जैसे लेखकों के साहित्य की जानकारियों का भंडार छिपा है। सरना के पास विदेश मंत्रालय का सबसे लंबे समय तक प्रवक्ता बने रहने का रिकार्ड है। अब वह ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त की भूमिका निभाने जा रहे हैं। सरना ने कहा कि वह भारत के एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनयिक, रणनीतिक और व्यापारिक भागीदार (ब्रिटेन) के पास जा रहे हैं। काम चुनौतीपूर्ण है। इसलिए उनकी नई किताब को आने में अभी वक्त लगेगा। सरना से पूछा गया कि वह अपनी किताब में खासकर लेखकों और उनके मानसिक परिदृश्य की चर्चा करते दिख रहे हैं। इस पर उन्होंने कहा, “लेखकों के कई पहलू होते हैं जिनके बारे में अन्य लेखक जानना चाहते हैं। मैं जादुई फार्मूले के बारे में, लेखकों और उनके मानसिक परिदृश्य के बारे में जानने का इच्छुक रहता हूं। उनकी भाषा, बयान करने के विविध रूप के बारे में जिज्ञासा रहती है। मैंने मुख्य रूप से 20वीं सदी के क्लासकीय लेखकों के बारे में लिखा है जिनकी अलग-अलग शैलियों से मुझे काफी लाभ हुआ है।” सरना से पूछा गया कि वह एक लेखक और राजनयिक के जीवन को कैसे एक-दूसरे से अलग भी रखते हैं और उसी समय साथ में भी रख लेते हैं। उन्होंने कहा, “यह हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है और मैं इसका सामना बीते 35 साल से कर रहा हूं। यह (लेखन) मेरा दूसरा जीवन है। मैंने सचेत रूप से फैसला किया है कि मैं अपने जीवन के बारे में बतौर राजनयिक नहीं लिखूंगा। इससे दोनों जीवन में तालमेल बनाए रखना आसान होता है। मैं अपने जीवन के दोनों रूपों को आसानी से जीता हूं और मैंने इनके बीच काफी सचेत रूप से संतुलन बिठाया है। दोनों ही क्षेत्रों में मेरे कई मित्र हैं। साहित्य का विदेश मंत्रालय स्कूल’ के बारे में उन्होंने कहा कि हम लोग कई लेखक हैं जिनकी किताबें प्रकाशित हुई हैं और हमें ‘साहित्य का विदेश मंत्रालय स्कूल’ कहा जाने लगा। यह सुनना अच्छा लगता है। मिसाल के लिए पवन वर्मा हैं, विकास स्वरूप हैं और हमारे बीच कुछ अन्य लेखक हैं। यह पूछने पर कि क्या लंदन में उनसे किसी किताब की उम्मीद की जाए, सरना ने कहा, फिलहाल अपने नए प्रोजेक्ट के बारे में मुझे कुछ पता नहीं है। लंदन में मेरे पास काफी काम है। |
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