2015 विश्व पर्यावरण दिवस विशेष

2015 विश्व पर्यावरण दिवस विशेष नई दिल्ली: पूरे विश्व में समान रूप से मनाया जाने वाला उत्सव कहें, दिवस कहें या फिर जयंती... वर्तमान परिस्थिति के अनुसार मनुष्य ने पर्यावरण का जो हाल किया है उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि साल में एक दिन पर्यावरण दिवस मनाने और पौधे लगाने से प्रकृति के प्रति किए गए मनुष्य के पाप कम नहीं हो सकते।

बल्कि प्रकृति के स्वरूप को विकृत करने के पश्चाताप के रूप में हमें हर दिन हर समय पर्यावरण के प्रति संरक्षण की भावना को अपने जीवन में उतारना होगा अन्यथा इसका अंजाम भी हम बगैर प्रकृति को कोसे, भुगतने को तैयार रहें।

माना कि विश्व स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन इस पर हमें, समाज को और पूरे विश्व को चिंतन करने की आवश्यकता है कि ईश्वर ने हमें जो उपहार प्रकृति के रूप में दिया था, क्या हम उसे उसके मूल स्वरूप में बरकरार रख पाए।

अपने स्वार्थ साधने के लिए हमने कितनी बार इसके स्वरूप को विकृत किया। यही प्रकृति हमारी जीवनदायिनी प्राथमिकता थी जिसे हमने अन्यान्य स्वार्थ के लिए नजरअंदाज कर दिया और वर्तमान में इसके परिणाम भी भुगत रहे हैं।

कब शुरू हुआ
इस दिन की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने 16 जून 1972 को स्टॉकहोम में की थी। 5 जून 1973 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया, जिसमें हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर विचार किया गया। 1974 के बाद से विश्व पर्यावरण दिवस का सम्मेलन अलग-अलग देशों में आयोजित किया जाने लगा।

भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 में लागू किया गया। यूएनईपी हर साल पर्यावरण संरक्षण के अभियान को प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष विषय (थीम) और नारा चुनता है। मेजबान देश(होस्ट कंट्री) में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं और पर्यावरण के मुद्दों पर बातचीत और काम होता है।

क्या करते हैं इस दिन
5 जून को पूरी दुनिया में पर्यावरण से जुड़ी अनेक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। पर्यावरण सुरक्षा के उपायों को लागू करने के लिए हर उम्र के लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है। पेड़-पौधे लगाना, साफ-सफाई अभियान, रीसाइकलिंग, सौर ऊर्जा, बायो गैस, बायो खाद, सीएनजी वाले वाहनों का इस्तेमाल, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग  जैसी तकनीक अपनाने पर बल दिया जाता है।

सड़क रैलियों, नुक्कड़ नाटकों या बैनरों से ही नहीं, एसएमएस, फेसबुक, ट्विटर, ईमेल के जरिये लोगों को जागरूक किया जाता है। बच्चों के लिए पेंटिंग, वाद-विवाद, निबंध-लेखन जैसी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। और जो इनमें शामिल नहीं हो पाते, वो घर बैठे ही यूएनईपी की साइट पर जाकर या खुद से यह प्रॉमिस करते हैं कि भविष्य में वे कम से कम अपने घर और आसपास के पर्यावरण को स्वस्थ बनाने का प्रयास करेंगे।

हमारे स्वार्थ निहित कृत्य..

1. वृक्षों की कटाई और वायु प्रदूषण: हमने अपने जीवन को आरामदायक बनाने के लिए वर्षा होने में सहायक, हवादार, छायादार और हरे-भरे वृक्षों की कटाई कर डाली। जंगल जला डाले। नतीजा है अनियमित वर्षा और तपती धरती के रूप में हमारे सामने। हरे-भरे जंगलों को इंडस्ट्री में तब्दील कर हम स्वच्छंद प्राणवायु लेने के भी हकदार नहीं रहे और सांस लेने के लिए भी प्रदूषित वायु और उससे होने वाली तमाम तरह की सांस संबंधी बीमारियां हमारी नियति हो गईं। यही नहीं, मृदा अपरदन भी प्रभावित हुआ और मिट्टी का कटान पर फिसलना, चट्टानों का फिसलना जैसी आपदाएं सामने आईं।

2.  जल प्रदूषण: बचपन से ही 'जल ही जीवन है' की शिक्षा पाकर भी हम जल का महत्व समझने में पिछड़ गए और प्रदूषण के मामले में इतने आगे निकल गए कि गंगा जैसी शुद्ध और पवित्र नदी को भी प्रदूषित करने से बाज नहीं आए जिसकी सफाई आज भारत सरकार के लिए भी बडा मुद्दा है। कभी स्वच्छता के नाम पर तो कभी धर्म और मान्यताओं के नाम पर हम जल को इतना प्रदूषित कर गए कि उसे पुन: स्वच्छ करना ही हमारे बस की बात न रही। पृथ्वी का तीन-चौथाई हिस्सा जलमग्न है फिर भी करीब 0.3 फीसदी जल ही पीने योग्य है।

विभिन्न उद्योगों और मानव बस्तियों के कचरे ने जल को इतना प्रदूषित कर दिया है कि पीने के करीब 0.3 फीसदी जल में से मात्र करीब 30 फीसदी जल ही वास्तव में पीने के लायक रह गया है। निरंतर बढ़ती जनसंख्या, पशु-संख्या, औद्योगीकरण, जल-स्रोतों के दुरुपयोग, वर्षा में कमी आदि कारणों से जल-प्रदूषण ने उग्र रूप धारण कर लिया और नदियों एवं अन्य जलस्रोतों में कारखानों से निष्कासित रासायनिक पदार्थ व गंदा पानी मिल जाने से वह प्रदूषित हुआ।

3. ध्वनि प्रदूषण: शहरों में वाहनों के बढ़ते ट्रैफिक और घरों में इले‍क्ट्रॉनिक सामान और समारोह में बजने वाले बाजे और लाउडस्पीकर्स की कृत्रिम ध्वनियों से हमने न केवल प्रकृति के मधुर कलरव को खो दिया है बल्कि अपनी कर्णशक्ति की अक्षमता और मानसिक विकारों के साथ ही नष्ट होती प्रकृति के शोर को भी अनदेखा कर दिया है। आज ध्वनि प्रदूषण कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक विकृतियों का कारण है जिसमें नींद न आना, चिड़चिड़ाहट, सिरदर्द एवं अन्य विकृतियां प्रमुख हैं। इस प्रदूषण से मनुष्य या प्रकृति ही नहीं, बल्कि धरती के अन्य जीव-जंतु भी प्रभावित हैं।

4. भूमि प्रदूषण: वनों का विनाश, खदानें, भू-क्षरण और कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक उपयोग से हमने भूमि की उर्वर क्षमता बढ़ाई नहीं बल्कि उसे प्रदूषित किया है। इनके कारण भूमि को लाभ पहुंचाने वाले मेंढक और केंचुए जैसे जीवों को नष्ट कर हमने फसलों को नष्ट करने वाले छोटे जीवों को पनपने की राह आसान की है। कृषि तथा अन्य कार्यों में कीटनाशकों के प्रयोग की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अधिकांश कीटनाशकों को विषैला घोषित किया है, बावजूद इसके हम इनका प्रयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं।

ये करना है तुम्हें
अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखो। सड़क पर कूड़ा मत फेंको और न ही कूड़े में आग लगाओ। कूड़ा रीसाइकल के लिए भेजो। क्या तुम्हें पता है, आज बड़े-बड़े प्लांट्स कूड़े से बिजली और फर्टिलाइजर बना रहे हैं।

प्लास्टिक, पेपर, ई-कचरे के लिए बने अलग-अलग कूड़ेदान में कूड़ा डालो ताकि वह आसानी से रीसाइकल के लिए जा सके।

पापा से कहो कि वे निजी वाहन की बजाय कार-पूलिंग, गाडियों, बस या ट्रेन का उपयोग करें।

कम दूरी के लिए साइकिल चलाना पर्यावरण और सेहत के लिहाज से बेहतर है।

पानी बचाने के लिए पापा से कहो कि वो घर में लो-फ्लशिंग सिस्टम लगवाएं, जिससे शौचालय में पानी कम खर्च हो। शॉवर से नहाने की बजाय बाल्टी से नहाओ।

ब्रश करते समय पानी का नल बंद रखो। हाथ धोने में भी पानी धीरे चलाओ।

गमलों में लगे पौधों को बॉल्टी-मग्गे से पानी दो।

नल में कोई भी लीकेज हो तो उसे प्लंबर अंकल से तुरंत ठीक करवाओ, ताकि पानी टपकने से बरबाद न हो।

नदी, तालाब जैसे जल स्त्रोतों के पास कूड़ा मत डालो। यह कूड़ा नदी में जाकर पानी को गंदा करता है।

घर की छत पर या बाहर आंगन में टब रखकर बारिश का पानी जमा कर सकते हो, जिसे फिल्टर करके इस्तेमाल करो।

दिल्ली को बचाओ!
जानकार कहते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी तेजी से बढ़ रहा है। सबसे अधिक प्रदूषण हवा में है। सड़क पर उड़ती धूल, उद्योग, वाहनों का धुआं इतना अधिक है कि अब सुबह के समय ताजी हवा में भी प्रदूषण पाया गया है। यहां बड़ी संख्या में निकलने वाले कूड़े को रीसाइकिल करना भी काफी मुश्किल भरा काम है। इसके अलावा ध्वनि और जल प्रदूषण भी चरम पर है। यहां की बदतर आबोहवा के कारण ही दिल्ली को 2014 के एशियन गेम्स के होस्ट बनने की दौड़ से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।

इन्हें बनाओ आदत...
पढ़ने की टेबल खिड़की के सामने रखो ताकि दिन में नेचुरल लाइट से पढ़ सको।

जब भी कमरे से बाहर जाओ तो पंखा और लाइट बंद कर दो।

ब्रश करते वक्त, खाना खाने के बाद या वॉश बेसिन-सिंक का नल बिना काम के खुला मत छोड़ कर रखो।

अपने दोस्तों को पेपर वाले बधाई-कार्ड की जगह ईमेल कार्ड भेजो।

जब तुम बाजार जाते हो तो अपने साथ कपड़े की एक थैली जरूर ले जाओ। प्लास्टिक बैग की खपत पर रोक लगेगी।

पौधे लगाओ, क्योंकि ये पौधे ही हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं।

छात्रों ने ठाना है कि...
हिमालय में बसे क्षेत्रों में निकल रही गंदगी को रीसाइकल करने के लिए वहां के छात्र सामने आए हैं। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के 9 स्कूलों के बच्चों ने मिलकर यह ठाना है कि वे इस गंदगी का प्रयोग कर विभिन्न तरह के मॉडल बनाएंगे। यह पूरा प्रयास ग्रीन हिल्स अल्मोड़ा नामक संगठन ने आरंभ किया, जिसमें 1300 मेंबर हैं। यह संगठन छात्रों की मदद करता है।  
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