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संत प्रेमानंद महाराज का एक संदेश तेजी से चर्चा में है

जनता जनार्दन संवाददाता , Dec 21, 2025, 11:29 am IST
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संत प्रेमानंद महाराज का एक संदेश तेजी से चर्चा में है

आध्यात्मिक जीवन की राह पर आगे बढ़ने वालों के बीच इन दिनों संत प्रेमानंद महाराज का एक संदेश तेजी से चर्चा में है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो में उन्होंने भक्ति से जुड़ी एक ऐसी सच्चाई बताई है, जिस पर अक्सर लोग ध्यान नहीं देते. उनका कहना है कि भक्ति का मार्ग जितना पवित्र और सरल दिखाई देता है, उतना ही उसमें अहंकार का प्रवेश भी अनजाने में हो सकता है. और जहां अहंकार जन्म ले ले, वहां भक्ति की आत्मा धीरे-धीरे खोने लगती है.

प्रेमानंद महाराज के अनुसार, जब साधक यह सोचने लगता है कि वह दूसरों से अधिक भक्ति कर रहा है या उसकी साधना सबसे ऊंचे स्तर की है, वहीं से समस्या शुरू होती है. यह भावना धीरे-धीरे ‘मैं’ के भाव को मजबूत कर देती है. भक्ति, जो आत्म-शुद्धि और समर्पण का मार्ग है, उसी क्षण अहंकार का रूप लेने लगती है. व्यक्ति भगवान की ओर देखने के बजाय स्वयं को केंद्र में रख लेता है और यही भक्ति का सबसे बड़ा पतन है.

सच्ची भक्ति का वास्तविक स्वरूप

महाराज बताते हैं कि वास्तविक भक्ति में ‘मैं’ का कोई स्थान नहीं होता. जब मन पूरी तरह से भगवान के नाम, स्मरण और गुणगान में डूबा रहता है, तब भक्ति अपने शुद्ध रूप में प्रकट होती है. इस अवस्था में मन में विनम्रता, सरलता और समर्पण का भाव होता है. सच्चा भक्त अपनी भक्ति को दिखाने या साबित करने की कोशिश नहीं करता, बल्कि उसका ध्यान केवल भगवान के प्रेम और कृपा पर टिका रहता है.

अहंकार से मुक्त होने की राह

प्रेमानंद महाराज ने यह भी स्पष्ट किया कि भक्ति में अहंकार से बचना कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं. इसके लिए सबसे जरूरी है कि हर विचार और हर कर्म में भगवान का स्मरण बना रहे. साथ ही, दूसरों की भक्ति और उनके अनुभवों का सम्मान करना भी आवश्यक है, क्योंकि हर साधक की यात्रा अलग होती है. जब व्यक्ति स्वयं को भगवान का साधन मानता है, न कि भक्ति का स्वामी, तब अहंकार स्वतः ही कमजोर पड़ने लगता है. नम्रता और प्रेम को जीवन का आधार बनाना ही इस मार्ग की सबसे बड़ी साधना है.

प्रेमानंद महाराज का सार संदेश

महाराज का स्पष्ट संदेश है कि अहंकार के साथ की गई भक्ति केवल बाहरी आडंबर बनकर रह जाती है और उसका वास्तविक फल नहीं मिलता. सच्ची भक्ति वही है, जिसमें आत्मा पूरी तरह समर्पित हो, मन विनम्र हो और हृदय में केवल भगवान के प्रति प्रेम हो. यही भक्ति इंसान को भीतर से बदलती है और उसे वास्तविक शांति की ओर ले जाती है.

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