|
राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की रचना के 150 वर्ष पूरे होने पर संसद में होगी चर्चा
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Dec 02, 2025, 11:01 am IST
Keywords: राष्ट्रगीत Vande Mataram Discussion वंदे मातरम् प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू सरदार पटेल सुभाष चंद्र बोस राजेंद्र प्रसाद मौलाना आजाद सरोजिनी नायडू कृपलानी
भारत के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ की रचना के 150 वर्ष पूरे होने पर संसद के शीतकालीन सत्र में एक विशेष चर्चा प्रस्तावित है. लोकसभा ने इसके लिए 10 घंटे का समय निर्धारित किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बहस में हिस्सा लेंगे. लोकसभा की बिज़नेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठक में सरकार ने इस विषय को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, जबकि विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस ने एसआईआर मुद्दे और चुनावी सुधारों पर बहस की मांग की. दिलचस्प बात यह है कि टीएमसी, जो अक्सर सरकार से मतभेद रखती है, इस बार वंदे मातरम् पर विशेष चर्चा के प्रस्ताव के समर्थन में दिखी. 7 नवंबर को हुए कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कांग्रेस पर लगाया था आरोप ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 7 नवंबर को दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ था. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर यह कहते हुए हमला बोला कि 1937 में, नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने गीत के मूल स्वरूप को बदला, जिसके कारण उसकी कई पंक्तियाँ अलग कर दी गईं. मोदी ने कहा, “1937 में कांग्रेस ने वंदे मातरम् के महत्वपूर्ण हिस्से हटाकर इसे टुकड़ों में बांट दिया. यह एक ऐसी भूल थी जिसने विभाजन की मानसिकता को भी जन्म दिया. ऐसा अन्याय क्यों हुआ?” इस कार्यक्रम में केंद्र सरकार ने विशेष स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किए, जो इस ऐतिहासिक रचना को समर्पित थे. 1937 की कांग्रेस बैठक और टैगोर की भूमिका क्या थी? अक्टूबर-नवंबर 1937 के बीच कोलकाता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई थी. इस बैठक में कई दिग्गज नेता शामिल थे, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, सरोजिनी नायडू, कृपलानी और अन्य.28 अक्टूबर 1937 को CWC ने वंदे मातरम् पर आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें टैगोर के सुझाव शामिल थे. टैगोर ने कहा था कि गीत की कुछ पंक्तियाँ धार्मिक प्रतीकों से जुड़ी हैं और मुस्लिम समुदाय उनकी व्याख्या को लेकर असहज महसूस कर सकता है. उसी आधार पर विद्यालयों और सरकारी आयोजनों में गीत का केवल कुछ हिस्सा अपनाया गया. कांग्रेस का कहना है कि यह विभाजन पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि सांप्रदायिक तनाव से बचने के लिए किया गया निर्णय था. वंदे मातरम् की रचना: इतिहास और महत्व भारत का राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ 1875 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था. यह पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित हुआ. बाद में इसे उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया गया, जो सन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आधारित था. यह विद्रोह बंगाल प्रेसीडेंसी में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध उभरी एक बड़ी क्रांति थी. तब बंगाल प्रेसीडेंसी में आज के बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे. ‘वंदे मातरम्’ स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख नारा बन गया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक. |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
|
हां
|
|
|
नहीं
|
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|
|