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कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत, जो आज लेंगे भारत के 53वें CJI की शपथ?

जनता जनार्दन संवाददाता , Nov 24, 2025, 10:39 am IST
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कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत, जो आज लेंगे भारत के 53वें CJI की शपथ?

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत सोमवार, 24 नवंबर को देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेने वाले हैं. वह जस्टिस बी.आर. गवई के बाद इस पद की जिम्मेदारी संभालेंगे और उनका कार्यकाल फरवरी 2027 तक रहेगा. न्यायपालिका के भीतर उन्हें एक प्रगतिशील, व्यवहारिक और संवैधानिक दृष्टिकोण वाले न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है.

हरियाणा के हिसार में 10 फरवरी 1962 को जन्मे जस्टिस सूर्यकांत एक साधारण परिवार से निकलकर देश की सर्वोच्च संवैधानिक जिम्मेदारी तक पहुंचे हैं. उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत हिसार कोर्ट से की और बाद में पंजाब–हरियाणा हाई कोर्ट में एक जाने-माने अधिवक्ता के रूप में पहचान बनाई. 2004 में उन्हें पंजाब–हरियाणा हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2018 में वह हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. इसके बाद 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया.

अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐसे निर्णय दिए, जिनका प्रभाव न सिर्फ तत्काल राजनीतिक–प्रशासनिक ढांचे पर पड़ा, बल्कि भारत की संवैधानिक समझ को भी नई व्याख्या प्रदान की.

जस्टिस सूर्यकांत के 10 बड़े और महत्वपूर्ण फैसले- 

1. अनुच्छेद 370 पर ऐतिहासिक संविधान पीठ

जस्टिस सूर्यकांत उस पांच-सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिसने केंद्र सरकार द्वारा जम्मू–कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को वैध माना. यह फैसला हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक निर्णयों में गिना जाता है और भारत की संघीय संरचना पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला माना गया.

2. राजद्रोह कानून पर रोक लगाने की पहल

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124A यानी राजद्रोह कानून के उपयोग पर प्रभावी रोक लगाई थी. इस निर्णय में जस्टिस सूर्यकांत का योगदान महत्वपूर्ण माना गया. अदालत ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार इस कानून में संशोधन या पुनरावलोकन नहीं करती, तब तक इसे लागू न किया जाए.

3. पेगासस जासूसी प्रकरण: स्वतंत्र जांच का आदेश

पेगासस निगरानी विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों को स्वीकार नहीं किया और एक स्वतंत्र तकनीकी समिति बनाने का आदेश दिया. जस्टिस सूर्यकांत इस पीठ का हिस्सा रहे. अदालत का कहना था कि “राष्ट्रीय सुरक्षा” का हवाला देकर किसी भी सरकारी कार्रवाई को असीमित अधिकार नहीं दिए जा सकते.

4. बिहार की मतदाता सूची में बड़ी अनियमितता

बिहार में हटाई गई 65 लाख मतदाता प्रविष्टियों के मामले में जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने चुनाव आयोग से पूरा विवरण सार्वजनिक करने को कहा. अदालत ने कहा कि मतदाता सूची से जुड़े निर्णय पूर्ण पारदर्शिता से होने चाहिए, क्योंकि यह लोकतंत्र का मूल स्तंभ है.

5. स्थानीय निकायों में महिला प्रतिनिधित्व पर मजबूत रुख

उनके एक फैसले में एक महिला सरपंच को गलत तरीके से हटाए जाने को अदालत ने अवैध करार दिया और उन्हें पुनर्स्थापित करने के आदेश दिए. इसी क्रम में जस्टिस सूर्यकांत ने बार एसोसिएशनों में महिलाओं के लिए कम-से-कम एक-तिहाई सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया—यह फैसला कानूनी पेशे में लैंगिक समानता की दिशा में मील का पत्थर माना गया.

6. राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर महत्वपूर्ण सुनवाई

वह वर्तमान में उस विशेष संविधान पीठ का हिस्सा हैं जो राज्यपाल और राष्ट्रपति की संवैधानिक सीमाओं और शक्तियों पर चल रही सुनवाई कर रही है. यह सुनवाई आने वाले समय में भारत की संघीय राजनीति के लिए निर्णायक हो सकती है.

7. पीएम मोदी की सुरक्षा चूक पर उच्चस्तरीय जांच

2022 में पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई चूक के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस सूर्यकांत की पीठ के निर्देश पर जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र जांच समिति गठित की थी.

8. वन रैंक–वन पेंशन (OROP) को संवैधानिक करार

जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र सरकार की OROP नीति को संवैधानिक और वैध माना. यह फैसला सशस्त्र बलों के लाखों पूर्व सैनिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था.

9. कानूनी पेशे में महिलाओं की भूमिका पर दूरदर्शी मत

अपने एक विस्तृत निर्णय में उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका और वकालत दोनों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना एक संस्थागत ज़िम्मेदारी है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि लिंग समानता सिर्फ एक सामाजिक लक्ष्य नहीं, बल्कि संवैधानिक अपेक्षा है.

10. डिजिटल स्पेस में अभिव्यक्ति की मर्यादा पर टिप्पणी

एक मामले में उन्होंने पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को अनुचित टिप्पणी करने पर फटकार लगाते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब सामाजिक सम्मान को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है. इस टिप्पणी को डिजिटल स्पेस में जिम्मेदारी तय करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना गया.

अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय विधिक संस्थानों में योगदान

जस्टिस सूर्यकांत ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) सहित कई न्यायिक निकायों में कार्य किया है. वह विभिन्न विधिक समितियों के सदस्य रहे हैं और न्यायिक सुधार, कानूनी सहायता तथा मानवाधिकार से जुड़े कार्यक्रमों में सक्रिय रहे हैं.

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