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बांग्लादेश-चीन के प्लान पर ऐसे पानी फेरेगा भारत, एक तीर से तीन शिकार!
जनता जनार्दन संवाददाता ,
May 28, 2025, 16:24 pm IST
Keywords: पाकिस्तान बांग्लादेश और चीन लालमोनिरहाट एयरबेस भारत china
![]() भारत की पूर्वोत्तर सीमाएं एक बार फिर से रणनीतिक दबाव में आ गई हैं. बांग्लादेश और चीन के बीच बढ़ती सैन्य साझेदारी और पुराने सैन्य ढांचों के पुनर्निर्माण ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है. बांग्लादेश के लालमोनिरहाट में एक पुराने एयरबेस को फिर से विकसित करने की योजना भारत के लिए खास चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि यह इलाका भारत के बेहद संवेदनशील ‘चिकन नेक’ यानी सिलिगुड़ी कॉरिडोर के बेहद करीब स्थित है. बांग्लादेश फिर से बना रहा है लालमोनिरहाट एयरबेस दूसरे विश्व युद्ध के समय बना लालमोनिरहाट एयरबेस अब फिर से चर्चा में है. ताजा रिपोर्टों के अनुसार, बांग्लादेश ने चीन की मदद से इस एयरबेस को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. भारत की दृष्टि से यह बेहद गंभीर मामला है, क्योंकि यह स्थान भारत के उत्तर बंगाल स्थित सिलिगुड़ी कॉरिडोर से महज 15-20 किलोमीटर दूर है. यह वही कॉरिडोर है जो भारत को उसके आठ पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है और जिसकी चौड़ाई महज 20-22 किलोमीटर है. अगर इस कॉरिडोर को कोई खतरा होता है तो पूर्वोत्तर भारत मुख्यभूमि से कट सकता है. भारत ने अपनाई जवाबी रणनीति चीन-बांग्लादेश के इस संभावित सैन्य गठजोड़ को संतुलित करने के लिए भारत ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है. इसी रणनीति के तहत त्रिपुरा के कैलाशहर में स्थित पुराने एयरबेस को पुनर्जीवित करने की योजना पर काम शुरू हो चुका है. यह एयरबेस 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण रणनीतिक केंद्र था और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय वायुसेना ने यहीं से कई मिशन संचालित किए थे. रिपोर्ट के अनुसार, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) और त्रिपुरा सरकार मिलकर इसे फिर से चालू करने की दिशा में कार्यरत हैं. रनवे को 1200 मीटर से बढ़ाकर 1700 मीटर किया जा रहा है ताकि ATR-72 जैसे विमान यहां आसानी से उतर सकें. 26 मई को AAI के पूर्वोत्तर क्षेत्रीय निदेशक एम. राजू कृष्ण और अगरतला एयरपोर्ट के निदेशक के. सी. मीना ने कैलाशहर एयरबेस का निरीक्षण किया और मौके की स्थिति का जायजा लिया. सिलिगुड़ी कॉरिडोर को लेकर रणनीतिक खतरे लालमोनिरहाट का दोबारा विकसित होना इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि अगर चीन को यहां लॉजिस्टिक्स और निगरानी तंत्र स्थापित करने का अवसर मिला, तो वह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में निगरानी, साइबर जासूसी और सिग्नल इंटरसेप्शन जैसी गतिविधियों को अंजाम दे सकता है. साथ ही चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति के तहत यह एक और मोती बन सकता है जो भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिशों में मदद करेगा. स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स और भारत की जवाबी नीति चीन पहले ही पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट, श्रीलंका के हम्बनटोटा, बांग्लादेश के चिटगांव और म्यांमार के क्यौकप्यू जैसे बंदरगाहों पर अपनी पकड़ बना चुका है. अगर लालमोनिरहाट एयरबेस भी इस श्रृंखला में जुड़ता है तो यह चीन की क्षेत्रीय रणनीति को और मजबूत करेगा. इस खतरे को देखते हुए भारत ने भी पूर्वोत्तर के कई एयरबेसों को ‘दोहरे इस्तेमाल’ लायक बनाया है — यानी वे नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए उपयोगी होंगे. |
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