कोई कैंडिडेट पसंद नहीं आया तो आपके पास है NOTA का सोटा

जनता जनार्दन संवाददाता , Apr 11, 2024, 21:03 pm IST
Keywords: Lok Sabha Election Quiz   देश में 18वीं लोकसभा   चुनाव   आम चुनाव   Lok Sabha Election 2024 GK  
फ़ॉन्ट साइज :
कोई कैंडिडेट पसंद नहीं आया तो आपके पास है NOTA का सोटा सात चरणों में होने वाले मतदान से पहले एक बार फिर (NOTA) को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. चुनाव आयोग ने साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट के सामने नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने से जुड़ी अपनी इच्छा जाहिर की थी.

इसके बाद, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में आदेश दिया था कि जनता को मतदान के लिये नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए. भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (CJI) जस्टिस पी. सदाशिवम की अगुवाई वाली बेंच के इस आदेश के बाद भारत नकारात्मक मतदान का विकल्प उपलब्ध कराने वाला दुनिया का 14वां देश बन गया था.

भारत से पहले कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम, ग्रीस, नेपाल और बांग्लादेश के अलावा अमेरिका के कई राज्यों में चुनाव के दौरान नोटा के विकल्प का प्रावधान है. हालांकि, रूस ने इस विकल्प को 2006 में चुनाव से हटा दिया था.

नोटा के तहत ईवीएम मशीन में नोटा (NONE OF THE ABOVE-NOTA) के लिये गुलाबी बटन होता है. चुनाव के दौरान अगर सियासी पार्टियां सही उम्मीदवार नहीं देती हैं तो वोटर ईवीएम में नोटा का बटन दबाकर पार्टियों के सामने अपना विरोध दर्ज करा सकती है. 

देश में पहली बार 2013 में पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम विधानसभा चुनाव में इसे अमल में लाया गया था. उम्मीदवार पसंद नहीं होने पर वोटर इस नोटा विकल्प का इस्तेमाल करने लगे थे. तब से लगातार हर चुनाव में नोटा चुनने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. लोकसभा चुनाव हो विधानसभा चुनाव, मतदाताओं मे हमेशा नोटा के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर की है. लोकसभा चुनाव 2014 में देश भर के मतदाताओं के सामने ईवीएम में इसका विकल्प मौजूद था.

संसदीय और चुनावी राजनीति को विशेषज्ञों का मानना है कि नोटा (NOTA) का मकसद साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारने और आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए राजनीतिक दलों को तैयार करना था. हालांकि, इस बारे में अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाई है. हालांकि, चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया में सुधार के लिए लगातार कोशिश करता दिख रहा है.

लोकसभा चुनाव 2014 में करीब 60 लाख वोटर्स (1.08 फीसदी) और लोकसभा चुनाव 2019 में 65 लाख से ज्यादा (1.06 प्रतिशत) मतदाताओं ने नोटा (NOTA) का विकल्प चुना था. 2019 में चुनाव लड़ रही 15 पॉलिटिकल पार्टियों को नोटा से भी कम वोट मिले थे. इससे साफ है कि चुनाव दर चुनाव देश में नोटा का असर बढ़ता जा रहा है. इसका मतलब देश के मतदाता पहले से ज्यादा जागरूक हैं. निश्चित तौर पर इसके दूरगामी असर हो सकते हैं. समय के साथ चुनाव आयोग को इसमें कुछ नए संशोधन भी करने पड़ सकते हैं.

देश में विभिन्न चुनावों के दौरान कई जगह देखा गया है कि दो उम्मीदवारों के बीच जीत का अंतर जितने वोटों का है, उससे ज्यादा वोट नोटा को मिले हैं. इसका मतलब नोटा के नहीं रहने पर वह वोट किसी कैंडिडेट को जाते और जीत-हार का समीकरण बदल भी सकता था. चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक अगर किसी चुनाव में सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिलते हैं तो चुनाव दोबारा करवाने का प्रावधान है. हालांकि, देश में अब तक कहीं ऐसा मौका सामने नहीं आया है.

देश के कई इलाके में नोटा के जरिए सड़क, बिजली, स्कूल, पेयजल और मेडिकल सुविधाओं जैसी बुनियादी जरूरतों की कमियों से वोटर के गुस्से का इजहार हुआ है. ईवीएम पर दिखते नोटा का मौजूदा डिजाइन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद ने तैयार किया था.

अन्य चुनाव लेख
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल