सुख, सौभाग्य व मनोकामनाएं पूरा करने वाला पर्व छठ: व्रत कथा और वैज्ञानिक रहस्य
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Nov 02, 2016, 15:23 pm IST
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संस्कृत की षष्टी तिथि को छठ कहा जाता है. यह पर्व दीपावली के बाद आता है. यह चार दिवसीय उत्सव है जिसमें पवित्रता और तपस्या का बहुत महत्व है.
छठ को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है. इसके महत्व का इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती. इसलिए शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस पर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखा जाता है. इस त्योहार को जितने मन से महिलाएं रखती हैं पुरुष भी पूरे जोशो-खरोश से इस त्योहार को मनाते हैं औऱ व्रत रखते हैं. सूर्य उपासना और छठी मैया की पूजा के लिए चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का इतिहास भी बहुत पुराना है. ऐतिहासिक महत्त्वः पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें मां षष्ठी संग सूर्यदेव की पूजा की बात रही गयी है, फिर चाहे वो त्रेतायुग में भगवान राम हों या फिर सूर्य के समान पुत्र कर्ण की माता कुंती. छठ पूजा को लेकर परंपरा में कई कहानियां प्रचलित हैं. राम की सूर्यपूजा कहते हैं सूर्य और षष्ठी मां की उपासना का ये पर्व त्रेता युग में शुरू हुआ था. भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्त कर रावण का वध करके अयोध्या लौटे तो उन्होंने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को सूर्यदेव की उपासना की और उनसे आशीर्वाद मांगा. जब खुद भगवा, सूर्यदेव की उपासना करें तो भला उनकी प्रजा कैसे पीछे रह सकती थी. राम को देखकर सबने षष्ठी का व्रत रखना और पूजा करना शुरू कर दिया. कहते हैं उसी दिन से भक्त षष्ठी यानी छठ का पर्व मनाते हैं. राजा प्रियव्रत की कथा छठ पूजा से जुड़ी एक और मान्यता है. एक बार एक राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रयेष्टि यज्ञ कराया. लेकिन उनकी संतान पैदा होते ही इस दुनिया को छोड़कर चली गई. संतान की मौत से दुखी प्रियव्रत आत्महत्या करने चले गए तो षष्ठी देवी ने प्रकट होकर उन्हें कहा कि अगर तुम मेरी पूजा करो तो तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी. राजा ने षष्ठी देवी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं इसके बाद से ही छठ पूजा की जाती है. कुंती-कर्ण कथा कहते हैं कि कुंती जब कुंवारी थीं तब उन्होंने ऋषि दुर्वासा के वरदान का सत्य जानने के लिए सूर्य का आह्वान किया और पुत्र की इच्छा जताई. कुंवारी कुंती को सूर्य ने कर्ण जैसा पराक्रमी और दानवीर पुत्र दिया. एक मान्यता ये भी है कि कर्ण की तरह ही पराक्रमी पुत्र के लिए सूर्य की आराधना का नाम है छठ पर्व. वैज्ञानिक तथ्यः पर्व की शुरुआत चतुर्थी को होती है. इस तिथि को नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है. इसके बाद निरंतर 36 घंटे का उपवास रखना होता है. जो यह व्रत करता है उसे तन-मन की शुद्धि का ध्यान रखना होता है. इस पर्व का मुख्य आकर्षण होता है जलाशय में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना. इस दौरान जल, दुग्ध तथा प्रसाद अर्पित किया जाता है. छठ के व्रत में मन तथा इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होता है. जल में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने का भी खास महत्व है. चूंकि दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है. इसलिए व्रत के साथ सूर्य की अग्नि के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे. इसके अलावा सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं. खासतौर से पाचन तंत्र से संबंधित परिर्वतन. छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है. इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, इस मौसम में शरीर में कई विजातीय द्रव्य जमा हो जाते हैं. जब उपवास, सूर्यदेव को अर्घ्य और जलाशय में पूजन करते हैं तो शरीर की जीवनी शक्ति ज्यादा मजबूत होती है, वह इन द्रव्यों का निष्कासन करने से स्वस्थ होता है. ज्योतिष के अनुसार, अगर कुंडली में किसी ग्रह का दोष हो और छठ पूजा में सूर्य का पूजन किया जाए तो उसका निवारण होता है. साथ ही सूर्य को अर्घ्य देने से भाग्योदय की प्राप्ति होती है. |
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