भारत स्मार्ट शहरों के लिए घरेलू समाधानों पर गौर करे

भारत स्मार्ट शहरों के लिए घरेलू समाधानों पर गौर करे नई दिल्लीः भारत की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए जहां एक तरफ कई देश होड़ लगाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र के एक नामचीन विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि भारत को इसके लिए घरेलू समाधानों पर ही गौर करना चाहिए।

टेरी द्वारा आयोजित हाल ही में संपन्न हुए विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन (डब्ल्यूएसडीएस) के मौके पर भारत में यूएनडीपी के स्थानीय प्रतिनिधि यूरी अफनासीव ने कहा, “भारत को दुनिया के किसी अन्य हिस्से से प्रेरित नहीं होना चाहिए। यह इतना विशाल, अद्वितीय और अनूठा देश है कि इसे अपनी राह अपने ढंग से तलाशनी चाहिए।”

अफनासीव ने पानी, नगर प्रशासन और प्रौद्योगिकी को भारत की प्रमुख चुनौतियां बताया।

उन्होंने कहा कि भारत को ऐसी विकास योजना की परिकल्पना करनी चाहिए, जो सबसे अनूठी हो और जिसे दुनियाभर में कहीं भी न आजमाया गया हो।

उन्होंने महापौर प्रणाली की कमी को स्थानीय प्रशासन की सबसे बड़ी कमी बताया।

अफनासीव ने कहा, “भारत में महापौरों की वश्विक संस्था नहीं है। उनके पास शक्तियां और बजट नहीं है। अगर आप दो करोड़, एक करोड़ या महज पचास लाख नागरिकों वाले शहर को विकसित करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पहले स्थानीय प्रशासन को विकसित करना पड़ेगा। हम जवाबदेही सुनिश्चित किए बिना या बजट की जिम्मेदारी के बिना किसी शहर को विकसित नहीं कर सकते। यह एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर विचार की जरूरत है।”

शहरी नियोजन बनाम जलवायु परिवर्तन को एक गंभीर चिंता मानते हुए अफनासीव ने कहा कि मॉनसून के दौरान दिल्ली, बेंगलुरू और गुड़गांव जैसे प्रमुख भारतीय शहरों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है, जिसका तकनीकी विफलताओं से गहरा संबंध है।

इस वर्ष देश के कई हिस्सों में गंभीर सूखे के कारण दिल्ली के कई फ्लाईओवर शरणार्थियों के बसेरा बन गए हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या जलवायु परिवर्तन और तृतीय श्रेणी के शहरों में संसाधनों की कमी के कारण शहरीकरण पलायन के लिए जिम्मेदार है? अफनासीव ने कहा, “हमारे पास कई सवालों का कोई जवाब नहीं है। दुनियाभर में कोई भी शहरीकरण रोकने में कामयाब नहीं हुआ है। लोग इसे नाउम्मीदी भरी लड़ाई कहते हैं। लेकिन वहीं, नई औद्योगिक या उत्तर औद्योगिक क्रांति के दौर में इंटरनेट और नई कार्य संस्कृति के कारण इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां रहते हैं। इसलिए विनिर्माण वितरित हो जाता है, जैसे कि गुजरात के किसी गांव में भी 3-डी प्रिंटिंग हो सकती है।”

यह कहते हुए कि पलायन को रोका नहीं जा सकता, अफनासीव ने इसे चीन की तर्ज पर नियंत्रित करने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा, “हर जगह विकसित देश में चार प्रतिशत आबादी देश का भरण-पोषण करती है, वहीं भारत में यह 34 या 44 प्रतिशत है, इसलिए आप मुकाबला नहीं कर सकते। लेकिन, काम की नई तकनीक की मदद से शहरीकरण को अपेक्षाकृत थोड़ा अधिक संयोजित किया जा सकता है।”

वाराणसी और दिल्ली जैसे ऐतिहासिक शहरों में बदलाव की बात करते हुए उन्होंने कहा, “ऐतिहासिक शहरों की सुरक्षा जरूरी है। अगर आप उन्हें ध्वस्त करके कोई नया शहर बसाते हैं, तो यह शर्मनाक होगा। लेकिन नए शहर लोगों को कुछ ऐतिहासिक या महत्वपूर्ण शहरों से दूर अपनी ओर आकर्षित करेंगे, जैसा कि दिल्ली में हो रहा है। जहां नोएडा और गुड़गांव के रूप में एक दूसरी दिल्ली बस गई है।”

अपने कार्बन फुटप्रिंट कम करने में लंदन, कोपेनहेगन, न्यूयॉर्क, बर्लिन और अन्य शहरों के बीच प्रतिस्पर्धा की बात पर उन्होंने उनकी सफलता का श्रेय प्रौद्योगिकियों के विकास को दिया।

अफनासीव ने कहा, “अगर भारत उस तर्ज पर चलता है, जिस पर शेष शहर पिछले 20-30 वर्षो से चल रहे हैं, जैसे कि भविष्य के शहर का निर्माण कर रहे कोरिया की तरह, तो यह गलत होगा। क्या आप नई दिल्ली को फिर से विकसित करने के बारे में सोच सकते हैं? यह एक दुस्वप्न जैसा होगा। भारत को 21वीं सदी के शहरी नियोजन, जीआईएस प्रौद्योगिकी, स्मार्ट ग्रिड और बुनियादी ढांचे और नए सार्वजनिक परिवहन के साथ द्वितीय श्रेणी के शहरों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।”
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