गोपाल कृष्ण गोखले, भारत का एक ग्लेडस्टोन

गोपाल कृष्ण गोखले, भारत का एक ग्लेडस्टोन जयपुर: गोपाल कृष्ण गोखले भारत के स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक और सुधारक के रूप में हमेशा जाने जाते रहेंगे। 9 मई 1866 को जन्म गोखले ने आज के दिन यानी 19 फरवरी 1915 को दुनिया को अलविदा कह दिया था।

वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ग्लेडस्टोन कहा जाता है। यहां तक कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरू मानते थे।

ब्रिटिश राज के विरूद्ध चले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उत्कृष्ट सामाजिक और राजनैतिक नेता के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने वाले गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1886 को तत्कालीन बंबई प्रेसिडेंसी के अंतर्गत महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में हुआ था। एक गरीब ब्राहम्ण  परिवार से संबंधित होने के बावजूद गोखले की शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी भाषा में हुई ताकि आगे चलकर वह ब्रिटिश राज में एक क्लर्क के पद को प्राप्त कर सकें।

वर्ष 1884 में एल्फिंस्टन कॉलेज से स्नातक की उपाधि ग्रहण करने के साथ ही गोखले का नाम उस भारतीय पीढ़ी में शुमार हो गया, जिसने पहली बार विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त की थी। स्नातक होने के बाद गोपाल कृष्ण गोखले न्यू इंग्लिश स्कूल, पुणे में अंग्रेजी के अध्यापक नियुक्त हुए।

अंग्रेजी भाषा से निकटता होने के कारण गोपाल कृष्ण गोखले जॉन स्टुअर्ट मिल और एडमंड बुर्के के राजनैतिक विचारों से काफी प्रभावित हुए थे। हालांकि गोखले बेहिचक अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अपनी आवाज उठाते रहे, लेकिन फिर भी उन्होंने आजीवन अंग्रेजी भाषा और राजनैतिक विचारों का सम्मान किया था।

फाग्र्युसन कॉलेज में अध्यापन कार्य करते हुए गोपाल कृष्ण गोखले समाज सुधारक महादेव गोविंद रानाडे के संपर्क में आ गए, जिन्होंने गोखले को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। रानाडे के शिष्य के तौर पर गोपाल कृष्ण गोखले ने वर्ष 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। इनके पार्टी में प्रवेश करने से पहले ही बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट, लाला लाजपत राया, दादाभाई नैरोजी कांग्रेस में शामिल थे।

गोखले ने अपनी एक विशिष्ट राजनैतिक पहचान बनाने के लिए बहुत प्रयास किया। स्वभाव से नरम गोखले आम जनता की आवाज ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने के लिए पत्रों और वैधानिक माध्यमों का सहारा लेते थे। 1894 में आयरलैंड जाने के बाद गोखले एल्फ्रेड वेब्ब से मिले और उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए राजी किया।

1891-92 में जब अंग्रेजी सरकार द्वारा लड़कियों के विवाह की उम्र दस वर्ष से बढ़ाकर बारह वर्ष करने का बिल पास करवाने की तैयारी शुरू हुई तब गोखले ने अंग्रेजों के इस कदम का पूरा साथ दिया, लेकिन तिलक इस बात पर विरोध करने लगे कि भारतीयों के आंतरिक मसले पर अंग्रेजों को दखल नहीं देना चाहिए। इस मुद्दे पर गोखले और बाल गंगाधर तिलक के बीच विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद ने कांग्रेस को दो गुटों में विभाजित कर दिया, एक गरमपंथी और दूसरा नरमपंथी।

वर्ष 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले अपने राजनैतिक लोकप्रियता के चरम पर थे। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद उन्होंने भारतीय शिक्षा को विस्तार देने के लिए सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की। 1912 में गांधी जी के आमंत्रण पर गोपाल कृष्ण गोखले दक्षिण अफ्रीका गए। उसी समय गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अपना संघर्ष समाप्त किया था। गोखले से मिलने के बाद गांधी जी ने उनसे भारतीय राजनीति के हालात और आम आदमी की समस्या के विषय में जानकारियां लीं।

जीवन के अंतिम सालों में भी गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भागीदारी निभाने के साथ ऑफ इंडिया का नेतृत्व करते रहे। दिन- रात काम का दबाव और नई-नई परेशानियों के चलते वह बीमार रहने लगे। 19 फरवरी, 1915 को मात्र 49 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।
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