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यहां इनसान उजाड़ रहा इनका बसेरा
जनता जनार्दन संवाददाता ,
May 15, 2011, 12:08 pm IST
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भोपाल: हर साल हजारों किलोमीटर समुद्रों, महाद्वीपों और विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा कर अलग-अलग स्थानों पर सैर के लिए आने वाले प्रवासी पक्षी क्या अगले वर्ष दोबारा इन ठिकानों पर आएंगे। इसे लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। प्रवासी पक्षियों की संख्या प्रत्येक वर्ष कम होती जा रही है। उनके ठिकाने लगातार मानवीय गतिविधियों के कारण उजड़ते जा रहे हैं।प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करने और उनके ठिकानों को मानवीय गतिविधियों से दूर रखने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 14-15 मई को दुनिया भर में प्रवासी पक्षी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल प्रवासी पक्षी दिवस का विचारणीय विषय है 'भूमि उपयोग में बदलाव एक पक्षी की नजर से'। इसके जरिए मानव गतिविधियों के उन नकारात्मक प्रभावों को बताया जा रहा है जो प्रवासी पक्षियों और वैश्विक पर्यावरण को प्रभावित कर रहे हैं। इस वर्ष का विषय 'भूमि उपयोग में बदलाव' कई प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियों के लुप्त होने के सबसे बड़े कारणों में से एक है। प्राकृतिक स्थलों का तेजी से हो रहा शहरीकरण तथा औद्योगिक विकास प्रवासी पक्षियों के ठिकानों को तेजी से उजाड़ रहा है। भूमि उपयोग के कई फैसले आज बिना यह समझे लिए जा रहे हैं कि इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा। सम्भव है कि वह स्थान पक्षियों की यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव हो, लेकिन इन बातों का भूमि उपयोग के फैसले करते वक्त कई बार ध्यान नहीं रखा जाता। यह एक सामान्य नियम बन गया है कि भूमि उपयोग का फैसला करते वक्त लम्बी अवधि के पर्यावरणीय संतुलन की जगह तात्कालिक लाभ को प्राथमिकता दी जाती है। रैमसर कॉनवेंसन (दलदली इलाकों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन) के उप महासचिव प्रोफेसर निक डैविडसन ने एक वेबसाइट पर इन प्रवासी पक्षियों को पर्यावरण में होने वाले बदलावों का भविष्य वक्ता बताया है। इसमें उन्होंने कहा है कि इन प्रवासी पक्षियों का दिशा ज्ञान इतना सही होता है कि भले ही ये पक्षी हर साल हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हों, लेकिन वे पिछले साल की यात्रा में आए हर पड़ावों को बिल्कुल सही-सही पहचान सकते हैं। आगे वह कहते हैं कि यहां सवाल यह उठता है कि इन पक्षियों ने पिछले साल की यात्रा में जिन-जिन जगहों पर डेरा डाला क्या वे जगह वहां हर साल बने रहेंगे। या हम छोटे-छोटे लाभों के लिए मानव जीवन पर पड़ने वाले इन ठिकानों के लम्बे प्रभाव की परवाह नहीं करेंगे और जब ये पक्षी वापस उस जगह पर अगले साल आएंगे, तो इन स्थानों पर या तो कोई बंदरगाह बन चुका होगा या कोई शहर बस चुका होगा या कोई उद्योग स्थापित हो चुका होगा। देश के केंद्रीय शहर भोपाल में हर साल उत्तर और पश्चिमोत्तर भारत से बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं और कुछ समय व्यतीत करने के बाद दक्षिण की ओर उड़ जाते हैं। भोपाल की हरियाली और दलदली इलाका इन पक्षियों को एक बसेरा प्रदान करता है। इस वर्ष भी कई किस्म के पक्षियों ने यहां वन विहार, कालीसूत, शाहपुरा झील, भदभदा और केरवा इलाकों में डेरा डाला। देश के दूसरे कई शहरों की तरह भोपाल भी तेजी से अपना प्राकृतिक पर्यावास खोता जा रहा है। पक्षियों का एक महत्वपूर्ण ठिकाना रहे कालीसूत में बड़े पैमाने पर निर्माण की गतिविधि चल रही है। इसी तरह शाहपुरा झील में शहर के कचड़े फेंके जा रहे हैं। इन गतिविधियों से भोपाल का पक्षी पर्यावास उजड़ रहा है, हालांकि अभी-भी अधिक देर नहीं हुई है। भोपाल में पक्षियों की विविधता और प्राकृतिक पर्यावास को बरकरार रखने के लिए भोपाल को इस दिशा में गम्भीरता से कदम उठाने होंगे। |
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