बुनकर मजदूरों को मजबूर बनाया किसने..?

माइटी इक़बाल , Sep 06, 2020, 17:34 pm IST
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बुनकर मजदूरों को मजबूर बनाया किसने..?
अब यह लिखने बताने की ज़रूरत नही शायद कि केवल बनारस आस पास के ज़िलें में ही बुनकरों की संख्या 5 लाख से अधिक हैं।
 
चूंकि बुनकरों का पुश्तैनी पेशा बिनकारी है लिहाज़ा 90% लोग इसी पेशे से जुड़े हुए हैं।और सच यह भी है कि,इन मे 85% लोग मुस्लिम कम्युनिटी के ही हैं।
 
बुनकरों का काम बिनकारी करना है।इन मे कुछ लोग हथकरघा पर काम करते,कुछ पावर लूम पर काम करते है,कोई डिज़ाइन बनाता है,कोई धागा रंगता है,,कोई कांटी भरत है, कोई कटिंग करता है।यानी एक साड़ी बनाने में कितने हाथ लगते हैं वो तो एक बुनकर ही जनता है।और बदकिस्मती देखिये कि लाखों का तन ढकने वाला मजदूर आज खुद कितना नँगा है।खाने के लिए पैसे नही,रहने के लिए मकान,न बच्चों को पढ़ा पाते, न ढंग से अपना व अपने परिवार का इलाज करा पाते।
 
कहना शायद गलत न हो कि,यही वो बुनकर मजदूर हैं जो रोज़ जीते और मरते हैं लेकिन अमीर बुनकरों को और भी अधिक अमीर बना देते हैं यह ग़रीब बुनकर सच यह भी है।और सच यह भी है कि इन ही मजदूरों के ज़िंदा लाशों पर इन अमीर बुनकरों बड़े बड़े कारोबार ऊंची ऊंची इमारतें शहर के हर चौराहे,मोड़ पर खड़ी नज़र आतीं हैं।और एक आखिरी सच यह भी है कि इन गरीब बुनकर मजदूरों को मजबूर भी इन अमीर बुनकरों ने ही बना दिया है।
 
बुनकरों में एक बुनकर वो हैं जो गृहस्त,गद्दीदार कहलाते हैं।यह वो लोग हैं जो शहर देहातों के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में अपना हथकरघा,पॉवरलूम की सैंकड़ों मशीनें बिठा कर,अपना सारा मटेरियल्स दे कर बुनकरों से रोजाना हाज़िरी की बुनियाद पर काम करवाते हैं।दूसरे बुनकर वो है जो अपने घरों में अपनी मशीन  लगा कर,करघा बिठा कर दो चार पॉवरलूम,करघे पर अपनी ज़िम्मेदारी पर काम तो करवाते हैं लेकिन इन्हें भी सारा मटेरियल्स उसी गद्दीदार,ग्रहस्ताओं से ही लेना पड़ता हैं यानी यह भी उन ही के आर्डर का काम करवाते हैं और साड़ी, वस्त्र उन ही के यहां पहुंचा के अपना मेहनताना वसूल कर लेते है।
 
तीसरा बुनकर वो हैं जो  इनके यहां रोज़ की मजदूरी पर काम करते है जिन्हें 8 से 10 घंटे मेहनत के बाद उन्हें 300 से 400 रुपये मिल जाते।वो भी रोज पेमेंट नही, सप्ताह 10 दिनों में इन्हें इनका मेहनताना काट पीट कर दे दिया जाता है।
 
इन्हें इस बात से कोई फ़र्क़ नही पड़ता कि ग्रहस्ता उनका अपना माल कहाँ सप्लाई करता है,कितने में करता है या उसे पैमेंट पार्टी कितने दिनों में करती है।वैसे सच्चाई यह भी है कि,चूंकि वाराणसी वस्त्र,बनारसी साड़ियों का पूरा कारोबार ही क्रेडिट बिजनेस पर आधारित है लिहाजा उन्हे अपने पेमेंट के लिए कम से कम 3 महीने का इंतज़ार तो करना ही पड़ता है।
 
ऐसा भी नही कि गरीब बुनकर मजदूरों को अपने ग्रहस्ता,गद्दीदारों,इलाके के सरदारों से कोई शिकायत नही,बिल्कुल है और वो यह है कि, वो अमीर बुनकर इन गरीब बुनकरों को आज भी उन्हें वही मजदूरी देते है जो मजदूरी पिछले 10/15 वर्ष पहले देते थे।
 
इन मजदूरों की मानें तो,अव्वल तो हमारी मजदूरी बढ़ाने के बारे में यह अमीर बुनकर कभी सोचते ही नही और जब कभी मांग उठती,उठाई भी जाती है तो ग्रहस्ता,गद्दीदार यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि,अव्वल तो कारोबार में मंदी आ चुका है दूसरी यह कि इसी मजदूरी में काम करना हो तो कारो वरना अपना रास्ता लो।नतीजा मरता क्या नही करता,मजदूरों को चुप हो जाना पड़ता है।दरअसल इन गरीब बुनकर मजदूरों का कोई यूनियन नही और जो बुनकर तंजीमें हैं भी तो यह मजदूरी बढ़ाने की बात कभी नही उठाते।
 
बताते चलें कि इन बुनकर समाज के हर इलाके का एक सरदार भी होता है। इन सरदारों का काम बुनकरों के दुख सुख में शरीक होने और पांच पंचायत,उत्पन्न समस्याओं को सुलझाने का फर्ज भी निभाना होता है, पर यह सरदार साहिबान भी ग़रीब बुनकरों की मजदूरी बढ़ाने या  इस समस्या को उठाने का प्रयास भी कभी नही करते।और इसका एक बड़ा कारण यह भी बताया जाता है कि इन सरदारों में अधिक्तर सरदार खुद ही साड़ियों के छोटे बड़े कारोबारी हैं।
 
इन बुनकर समाज के कई समाजी व फलाही इदारे भी हैं लेकिन यहां भी गरीब बुनकर मजदूरों की सुनने वाला कोई नही।
      
अब सवाल यही है कि जब यह गरीब बुनकर मजदूर रजिस्टर्ड हैं नही,न ही इनके पास कोई करघा या पॉवरलूम है तो बुनकरों को मिलने वाली योजनाओं का लाभ उठाता कौन है?तो जाहिर सी बात इसका सारा लाभ अमीर बुनकरों,बड़े ग्रहस्ता,गद्दीदार,कोठीदर को ही पहुंचता है।चाहे फिक्स्ड रेट बिजली की योजना हो या रेशम से धागे तक का सरकारी सब्सिडी।
 
यह सच है कि बनारसी साड़ी, वाराणसी वस्त्र का कारोबार फिलहाल पूरी तरह लड़खड़ा तो जा ही चुका था लेकिन इन 6 वर्षों में यानी 2014 के बाद नोट बंदी,जी इस टी,और अब कोरोना महामारी के दौरान तालाबंदी ने इस कारोबार को इतना प्रभावित क्या है कि फिलहाल जहां हज़ारों पॉवरलूम बन्द पड़े हैं वहीं लाखों बुनकर मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं।इन मजदूरों में कुछ मजदूर तो अब दूसरे पेशे से जुड़ कर अपनी रोज़ी रोटी हासिल करने लगे हैं और कुछ लोग फुटपाथों पर साग सब्जियां बेच कर अपना और अपने परिवार का पेट पालने पर मजबूर हो चुके हैं।और खबर यह भी है के उत्तरप्रदेश के बुनकर मजदूर भारी संख्या,सूरत,मुम्बई की ओर पलायन करने लगे हैं।
 
आज उनकी परेशानी का आलम यह है कि, अब उनके पास इतने भी पैसे नही कि, वो बिजली का बिल,बच्चों की स्कूल फीस दे सकें या उनके परिवार का कोई सदस्य बीमार पड़ जाए तो वो इलाज के लिए डॉक्टर के पास जा सकें।
 
शायद यही वो कारण है कि, यह गरीब बुनकर मजदूर अब या तो जीने खाने के लिए अपने घरों के समान बेचने लगे हैं या मौत की दुआ मांगने।लेकिन वाह रे अमीर बुनकरों की एक बड़ी जमाअत,बुनकरों के मसीहा जिन्हें इन बुनकरों की कोई चिंता नही।वो इतना भी नही सोचते कि यही वो गरीब बुनकर मजदूर है जिनके कारण आज हम करोड़ों में खेल रहें और आज जब अपना गरीब बुनकर सड़क पर आ चुके हैं तो हमें उनके लिए क्या करना चाहिये?
 
राज्य के योगी सरकार को भी इन गरीब बुनकर मजदूरों को किसी योजना के तहत इनकी आर्थिक सहयोग करनी चाहिये वरना यह गरीब बुनकर मज़दूर कोरोना से कम भूख से ज़्यादा मर जायेंगे।
           
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