अर्जन सिंह कहते थे-1965 की जंग जल्दी खत्म न होती तो पाकिस्तान को मिटा देते

अर्जन सिंह कहते थे-1965 की जंग जल्दी खत्म न होती तो पाकिस्तान को मिटा देते नई दिल्ली: एयरफोर्स के मार्शल अर्जन सिंह (98) का शनिवार को निधन हो गया। वे आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती थे। नरेंद्र मोदी और डिफेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण अर्जन सिंह को देखने हॉस्पिटल पहुंचे थे। 1965 में पहली बार जब एयरफोर्स ने जंग में हिस्सा लिया तो अर्जन सिंह ही उसके चीफ थे। जंग शुरू होने पर डिफेंस मिनिस्टर यशवंत राव चह्वाण ने सिंह को ऑफिस में बुलाया। उनसे पूछा गया कि एयरफोर्स कितनी देर में आर्मी की मदद के लिए पहुंच सकती है। सिंह ने जवाब दिया... एक घंटे में, लेकिन महज 26 मिनट बाद हमारे लड़ाकू विमान पाकिस्तान की तरफ उड़ान भर चुके थे। हालांकि, अर्जन सिंह को यह जंग जल्दी खत्म होने का हमेशा मलाल रहा। उन्होंने एक इंटरव्यू में पायलट बनने से लेकर फाइव स्टार रैंक तक पहुंचने की कहानी बताई थी। तब उन्होंने कहा था कि जंग लंबी चलती तो पाक को मिटा देते। अर्जन सिंह सेकंड वर्ल्ड वॉर से लेकर अपनी आखिरी जंग तक अजेय रहे

‘मेरा जन्म पाकिस्तान के लायलपुर (अब फैसलाबाद) में हुअा। घर लाहौर-कराची एयर रूट में था। प्लेन को उड़ते देखकर ही पायलट बनने सपना देख लिया। मुझे 1938 में महज 19 की उम्र में फ्लाइट कैडेट चुना गया। ट्रेनिंग दो साल की थी। पर इससे पहले ही दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया और में युद्ध में भेज दिया गया। क्रैश लैंडिंग से लेकर कोर्ट मार्शल तक बहुत सी बातें हैं, जिन्हें याद कर सीना चौड़ा हो जाता है। पर इस बात का अफसोस भी है कि जब हम 1965 में युद्ध जीत चुके थे और पाकिस्तान को तबाह करने की स्थिति में थे, तभी युद्ध विराम हो गया। जबकि हम उस वक्त पाकिस्तान के किसी भी हिस्से को नष्ट कर सकते थे। हमारे पास मेहर सिंह और केके मजमदूार जैसे बेहतरीन पायलट थे। जबकि पाकिस्तान अंबाला पार करने की स्थिति में भी नहीं था। दिल्ली- मुंबई-अहमदाबाद पहुंचना तो उसके सपने से भी दूर था। पर हमारे नेताआें ने युद्ध खत्म करने का निर्णय लिया।’
कब बने मार्शल?

- अर्जन सिंह को 2002 में एयरफोर्स का पहला और इकलौता मार्शल बनाया गया। वे एयरफोर्स के पहले फाइव स्टार रैंक ऑफिसर बने। 1965 की जं
ग में उनके कंट्रिब्यूशन के लिए भारत ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा था। उन्हें 1965 में ही पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया। सिंह 1 अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ (CAS) रहे।किस उम्र में बने CAS?
- सिंह की लीडरशिप में पहली बार एयरफोर्स ने किसी जंग में हिस्सा लिया था। जब वे CAS बने तब उनकी उम्र महज 44 साल थी। उन्होंने 1939 में IAF ज्वाइन की और 1970 में 50 साल की उम्र में रिटायरमेंट लिया। इसके बाद उन्होंने स्विट्जरलैंड और वेटिकन के एम्बेस्डर के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं।
कितने एयरक्राफ्ट उड़ाए?

- अपने करियर के दौरान सिंह ने 60 अलग-अलग तरह के एयरक्राफ्ट्स उड़ाए। फ्लाइंग के लिए उनकी ये दीवानगी 1969 में रिटायरमेंट तक जारी रही। उन्होंने वर्ल्ड वार 2 के पहले के बाइप्लेंस से लेकर जीनट्स और वैम्पायर जैसे एयरक्राफ्ट भी उड़ाए। इसके अलावा सुपर कॉन्स्टेलेशन जैसे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी उड़ाए।
अविभाजित भारत मे जन्मे

- अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को अविभाजित भारत के लायलपुर में हुआ था। ये जगह अब पाकिस्तान के फैसलाबाद में है। 1938 को 19 साल की उम्र में RAF क्रेनवेल में उनका सेलेक्शन एम्पायर पायलट ट्रेनिंग के लिए हुआ। उनकी पहली पोस्टिंग नॉर्थ वेस्टर्न फ्रंटियर प्रॉविंस में वेस्टलैंड वापिटी बाइप्लेंस उड़ाने के लिए हुई। वे IAF की नंबर वन स्क्वॉड्रन के मेंबर थे। उन्हें कुछ वक्त के लिए नंबर 2 स्क्वॉर्डन में भी भेजा गया था। लेकिन, जब नंबर वन स्क्वॉड्रन को हॉकर हरिकेन प्लेन मिले तो सिंह को वापस बुला लिया गया। 1944 में उन्हें स्क्वॉड्रन लीडर बनाया गया और उन्होंने अराकान कैंपेन के दौरान जपानियों के खिलाफ टीम को लीड किया। बर्मा, इम्फाल में सक्सेसफुल कैंपेन लीड करने की वजह से 1944 में सिंह को डिस्टिंगुइश्ड फ्लाइंग क्रॉस (DFC) दिया गया।
आजादी के दिन 100 प्लेंस का फ्लाई-पास्ट लीड किया

- 15 अगस्त 1947 को सिंह को एक और सम्मान दिया गया। उन्हें दिल्ली के लाल किले के ऊपर से 100 IAF एयरक्राफ्ट्स के फ्लाई-पास्ट को लीड करने का मौका दिया गया। विंग कमांडर प्रमोट होने के बाद सिंह यूके के स्टाफ कॉलेज में भी गए और आजादी के तुरंत बाद उन्हें एयर ऑफिसर कमांडिंग, अंबाला बना दिया गया। 1949 में एयर कोमोडोर प्रमोट किए जाने के बाद सिंह ने एयर ऑफिसर कमांडिंग ऑफ ऑपरेशनल कमांड का जिम्मा संभाला। इसे ही बाद में वेस्टर्न एयर कमांड कहा गया। सिंह लगातार प्रमोट होते रहे और 1962 की जंग खत्म होते होते उन्हें DCAS बनाया गया और 1963 में वे VCAS बन गए।
जब डिफेंस मिनिस्टर ने किया था सवाल

- 1 अगस्त 1964 को एयर स्टाफ का चीफ बने। इस दौरान देश को जंग का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम लॉन्च किया। कश्मीर के अखनूर सेक्टर को पाकिस्तान के जवानों ने निशाना बनाया। यही वो वक्त था, जब तब के डिफेंस मिनिस्टर ने सिंह से एयर सपोर्ट के लिए कहा था।

एक घंटे में पाकिस्तान पर हमला बोला
- जब डिफेंस मिनिस्टर ने उनसे पूछा कि कितनी देर में एयर सपोर्ट मिल जाएगा तो सिंह ने कहा कि एक घंटे में। वाकई एक घंटे के भीतर एयरफोर्स ने पाकिस्तानी फौजों पर हमला बोल दिया। इस जंग में सिंह ने एयरफोर्स को लीड किया। अयूब खान की कश्मीर को हथियाने की कोशिश निश्चित तौर पर इंडियन आर्मी और इंडियन एयरफोर्स की बहादुरी की वजह से नाकाम हो गई।

सिंह के नाम पर रखा एयर बेस का नाम
- IAF ऑफिशियल के मुताबिक 2016 में पानागढ़ बेस का नाम एयरफोर्स स्टेशन अर्जन सिंह कर दिया गया। इससे पहले एयरफोर्स ने किसी शख्स के नाम पर बेस का नाम नहीं रखा था। यहां IAF के स्पेशल ऑपरेशंस प्लेन C0130J रखे जाते हैं।
रिटायर्ड एयरफोर्स पर्सनल को दिए 2 करोड़
- सिंह ने दिल्ली के पास अपने फार्म को बेचकर 2 करोड़ रुपए ट्रस्ट को दे दिए। ये ट्रस्ट रिटायर्ड एयरफोर्स पर्सनल्स की वेलफेयर के लिए बनाया गया था।

व्हील चेयर पर आए और खड़े होकर कलाम को किया था सैल्यूट
- 27 जुलाई, 2015 को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर लाया गया। तब कलाम के अंतिम दर्शन के लिए राष्ट्रपति और पीएम समेत कई नेता पहुंचे थे। लेकिन सबकी नजरें कांपते हाथों से सैल्यूट करते योद्धा अर्जन सिंह पर थीं। वे आए तो व्हीलचेयर पर थे, लेकिन कलाम को देखते ही खुद चलकर पास आए और तनकर सलामी भी दी थी।
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