कविता मेरा पहला प्रेम: रामदरश मिश्र

कविता मेरा पहला प्रेम: रामदरश मिश्र लखनऊ: हिंदी साहित्य के लिए इस वर्ष के साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता प्रख्यात साहित्यकार एवं कवि रामदरश मिश्र का कहना है कि ’कविता मेरा पहला प्रेम है’ और साहित्य अकादेमी तो एक ’आंगन’ की तरह है, जहां सभी भाषाएं एक साथ उठती-बैठती हैं। मिश्र ने हालांकि असहिष्णुता को लेकर देश में छिड़ी बहस को बकवास करार दिया और कहा कि साहित्य अकादमी से इन घटनाओं का कोई लेना-देना नहीं है।

साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार रामदरश मिश्र ने विशेष बातचीत के दौरान अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया। रामदरश मिश्र को उनके कविता संग्रह ’आग की हंसी’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला लिया गया है।

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में 15 अगस्त सन् 1924 को जन्मे रामदरश मिश्र ने अपनी शिक्षा दीक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ग्रहण की। यहीं से उन्होंने हाईस्कूल से लेकर पीएचडी तक की शिक्षा ग्रहण की। प्रख्यात कवि एवं साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी उनके गुरु रह चुके हैं।

91 वर्ष की उम्र में भी रामदरश मिश्र को कविताओं से लगाव है। उन्होंने बताया, “कविताएं तो मेरी चिरसहयात्री हैं। कविता मेरा पहला प्रेम है। मेरी अंतिम सांस तक यह मेरे साथ जुड़ी रहेगी। मैं जीवन के इस पड़ाव पर भी कविताएं व डायरी लिखता रहता हूं।

रामदरश ने कहा, “साहित्य अकादमी ने जो सम्मान दिया है, वह केवल मेरा सम्मान नहीं है, बल्कि पूर्वाचल की माटी का सम्मान है। पूर्वाचल की माटी से बहुत लगाव है। उम्मीद है कि यह पुरस्कार मिलने के बाद आने वाले दिनों में छात्रों का झुकाव हिन्दी साहित्य की तरफ और बढ़ेगा।“ देश में असहिष्णुता को लेकर छिड़ी बहस को लेकर पूछे गए सवाल पर रामदरश मिश्र हंस पड़े।

उन्होंने कहा, “जितने लोगों से मेरी बात हुई है, लगभग सभी ने यह सवाल किया है। बहरहाल मैं इसका जवाब देता हूं।“ बकौल रामदरश मिश्र, “सम्मान वापसी उचित नहीं है। यह सम्मान साहित्य अकादमी ने दिया है। साहित्य अकादमी तो एक ऐसा आंगन है जहां सारी भाषाएं उठती-बैठती हैं। यहां इस तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए। सम्मान वापस करने का कोई तर्क नजर नहीं आता।

प्रख्यात साहित्यकार एवं कवि रामदरश ने कहा, “यदि कुछ लोगों को लगता है कि देश में असहिष्णुता का माहौल है, और इसी वजह से बेकसूर इंसान मारे जा रहे हैं तो इसमें साहित्य अकादमी की क्या भूमिका है? साहित्य अकादमी ऐसी घटनाओं को हथियार बनाकर विरोध नहीं कर सकती। हैवानियत की घटनाओं पर दुख जाहिर करने के और भी कई तरीके हैं।

असहिष्णुता के बाद रामदरश मिश्र ने एक बार फिर अपने साहित्य की ओर रुख किया। उन्होंने कहा, “जीवन में बहुत से पुरस्कार मिले। कविता तो चिरसहयात्री की तरह है। वह मेरे साथ ही जाएगी। मैंने जीवन में कभी पुरस्कार पाने के लिए जोड़-तोड़ करने की कोशिश नहीं की। जब-जब पुरस्कार ने दरवाजा खटखटाया, तब तब दरवाजा खोलकर मैंने तहेदिल से उसका स्वागत किया।

कविता से लगाव की वजह से ही रामदरश उम्र के इस पड़ाव में भी एक कविता संग्रह ’मैं तो यहां हूं ’लिख रहे हैं। उनके मुताबिक, यह संग्रह जल्द ही पूरा हो जाएगा। रामरदरश मिश्र जितने समर्थ कवि हैं, उतने ही समर्थ साहित्यकार व उपान्यासकार और कहानीकार भी हैं। इनकी लंबी साहित्य यात्रा कई मोड़ों से गुजरी हैं और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई हैं। मिश्र ने अपनी सृजन यात्रा कविता से ही प्रारंभ की थी और आज तक उसे शिद्दत से जी रहे हैं।

उनका पहला काव्य संग्रह ’पंथ के गीत’ 1951 में प्रकाशित हुआ था। तब से आज तक उनके नौ कविता संग्रह आ चुके हैं। इनमें ’बैरंग-बेनाम चिटठियां’, ’पक गई है धूप’, ’कंधे पर सूरज’, ’दिन एक नदी बन गया’, ’जुलूस कहां जा रहा है’, ’आग कुछ नहीं बोलती’ और ’हंसी होंठ पर आंखें नम हैं’ जैसी बेहतरीन रचनाएं शामिल हैं।
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